इलाहाबाद- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के संपूर्ण परिसर का पुरातत्व सर्वेक्षण करने संबंधी वाराणसी की अदालत के आदेश पर बृहस्पतिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी.
हाईकोर्ट ने इसके साथ ही वाराणसी की एक सिविल अदालत में चल रहे ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर भूमि विवाद मामले में कार्यवाही पर भी रोक लगा दी है.
जस्टिस प्रकाश पाडिया ने उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधन समिति- अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया.
अदालत ने कहा, रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि इस अदालत ने सभी लंबित याचिकाओं पर निर्णय 15 मार्च, 2021 को सुरक्षित रख लिया था. निचली अदालत को इस बात की पूरी जानकारी थी. इसे ध्यान में रखते हुए निचली अदालत को आगे सुनवाई कर सर्वेक्षण का आदेश नहीं देना चाहिए था, बल्कि इस अदालत के समक्ष लंबित याचिकाओं पर फैसला आने का इंतजार करना चाहिए था.
अदालत ने प्रतिवादियों के सभी वकीलों को जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया और इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख आठ अक्टूबर निर्धारित की.
याचिकाकर्ताओं के मुताबिक, वाराणसी की स्थानीय अदालत ने 8 अप्रैल को एक आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था, जो कि अवैध और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है.
याचिकाकर्ताओं के मुताबिक, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी की अदालत में लंबित मुकदमा विचार करने योग्य है या नहीं, इस पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था, लेकिन वाराणसी की अदालत दूसरे पक्षकार (मंदिर न्यास) की दलीलें सुनती रही.
अयोध्या में बाबरी मस्जिद के साथ- जिसे 1992 में ध्वस्त कर दिया गया था- हिंदुत्ववादी समूहों ने विभिन्न मस्जिदों को मंदिरों में परिवर्तित करने का आह्वान किया था. वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में ईदगाह, दोनों ही मंदिरों के बगल में हैं और इस सूची (मस्जिदों को मंदिरों में परिवर्तित करने वाली) में सबसे ऊपर हैं.
ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर भूमि विवाद से संबंधित एक पक्ष के याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि साल 1699 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर को नष्ट कर दिया गया था.
उल्लेखनीय है कि वाराणसी की अदालत ने आठ अप्रैल, 2021 को दो हिंदू, दो मुस्लिम सदस्यों और एक पुरातत्व विशेषज्ञ की पांच सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया था, जो सदियों पुरानी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के समग्र भौतिक सर्वेक्षण का काम देखेगी.
इस मामले में दलील दी गई थी कि वाराणसी में यह मस्जिद, मंदिर (काशी विश्वनाथ) के हिस्से में बनाई गई है. मूल रूप से मुकदमा 1991 में वाराणसी की जिला अदालत में दायर किया गया था, जिसमें उस प्राचीन मंदिर की पूरी जगह उसे देने का अनुरोध किया गया, जहां वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है.
न्यायालय ने कहा था, ‘चूंकि प्रतिवादी पक्ष (ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति) ने बादशाह औरंगजेब के फरमान पर भगवान विश्वेश्वर काशी विश्वनाथ के मंदिर को ढहाने और उसे मस्जिद में तब्दील करने की बात को स्पष्ट रूप से नकार दिया है, इसलिए ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय की जिम्मेदारी है कि वे सच का पता लगाएं.’
सिविल अदालत के आदेश का ज्ञानव्यापी मस्जिद प्रबंधन समिति, अंजुमन इंताजामिया मसाजिद ने विरोध किया था. समिति ने 8 अप्रैल के आदेश पर रोक लगाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष एक तत्काल आवेदन दिया था.
बता दें कि भारत में धुर दक्षिणपंथी संगठनों की लंबे समय से मस्जिदों को हटाने की मांग रही है और इसे लेकर एक नारा भी चलाया जाता रहा है, जो इस तरह से है, ‘अयोध्या-बाबरी सिर्फ झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है.’
साल 1992 में अयोध्या स्थित बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने ढहा दिया था. साल क्रमश: 2019 और 2020 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने विवादित जमीन राम मंदिर ट्रस्ट को सौंप दी और एक विशेष सीबीआई अदालत ने सभी 32 आरोपियों को बरी कर दिया था.
इसके बाद साल 2020 में एक समूह ने मथुरा सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए दावा किया गया कि 1669-70 के दौरान मुगल बादशाद औरंगजेब के शासन में बनी मथुरा की ईदगाह मस्जिद कृष्ण का जन्मस्थान है. ज्ञानवापी मस्जिद की याचिका के समान याचिका में अतिक्रमण और अधिरचना को हटाने की मांग की गई थी.
हालांकि अक्टूबर 2020 में मथुरा की एक अदालत ने कृष्ण जन्मस्थान से ईदगाह मस्जिद हटाने की याचिका खारिज कर दी थी.