पीठ ने कहा, ‘किसी भी व्यक्ति को केवल मामूली आधार पर देश में कहीं भी रहने या स्वतंत्र रूप से घूमने के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.’
शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए केवल असाधारण मामलों में ही आवाजाही पर कड़ी रोक लगानी चाहिए.
अमरावती शहर पुलिस उपायुक्त जोन-1 ने महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 56 (1) (ए) (बी) के तहत पत्रकार रहमत खान की अमरावती शहर या अमरावती ग्रामीण जिले में एक साल तक आवाजाही पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे.
खान ने सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत आवेदन दाखिल कर प्रशासन से जोहा एजुकेशन एंड चेरिटेबल वेलफेयर ट्रस्ट द्वारा संचालित अल हरम इंटरनेशनल इंग्लिश स्कूल और मद्रासी बाबा एजुकेशनल वेलफेयर सोसाइटी द्वारा संचालित प्रियदर्शिनी उर्दू प्राइमरी और प्री-सेकेंडरी स्कूल समेत विभिन्न मदरसों के लिए धन वितरण में हुई कथित अनियमितताओं के बारे में जानकारी मांगी थी.
खान का कहना है कि उनके खिलाफ यह कार्रवाई इसलिए की गई, क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक धन के कथित दुरुपयोग पर लगाम लगाने के लिए और अवैध गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कदम उठाया था.
खान का कहना है कि उन्होंने 13 अक्टूबर 2017 को कलेक्टर और पुलिस से मदरसों की सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहे सरकारी अनुदान के कथित दुरुपयोग की जांच करने का आग्रह किया था, जिसके बाद प्रतिशोधस्वरूप प्रभावित लोगों ने उनके (खान) खिलाफ शिकायत दर्ज कराई.
इसके बाद अमरावती के गागड़े नगर संभाग के सहायक पुलिस आयुक्त के कार्यालय की ओर से तीन अप्रैल 2018 को खान के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसमें उन्हें बताया गया कि उनके खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम, 1951 की धारा 56 (1) (ए) (बी) के तहत जिला बदर कार्रवाई शुरू की गई है.
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धारा 56 से 59 का उद्देश्य अराजकता को रोकना और समाज में अराजक तत्वों के एक वर्ग से निपटना है, जिन्हें दंडात्मक कार्रवाई के स्थापित तरीकों से दंडित नहीं किया जा सकता.
जिलाबदर आदेश कई बार कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक हो सकता है. हालांकि, किसी क्षेत्र में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने और सार्वजनिक शांति भंग होने से रोकने के लिए असाधारण मामलों में ही जिला बदर की कार्रवाई की जानी चाहिए.
अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि अपीलकर्ता द्वारा सरकारी अधिकारियों, कुछ मदरसों और लोगों के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराने के बाद ही उनके (अपीलकर्ता) खिलाफ जिलाबदर आदेश जारी किया गया.
पीठ का कहना है कि अपीलकर्ता के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर स्पष्ट रूप से प्रतिशोधात्मक है, जिसका उद्देश्य अपीलकर्ता को सबक सिखाना और उनकी आवाज को दबाना है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता पर फिरौती की धमकी जैसे आरोप लगाना प्रथमदृष्टया शिकायत की गंभीरता को बढ़ाने के इरादे से किया गया.
इसी तरह बीते 27 अगस्त को नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शन के एक आयोजक के खिलाफ पुलिस के तड़ीपार (जिलाबदर) करने के आदेश को रद्द करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार के खिलाफ अपनी शिकायतें उठाने के लिए नागरिकों को बाहर नहीं निकाला जा सकता.
जस्टिस परेश उपाध्याय ने 39 वर्षीय कार्यकर्ता कलीम सिद्दीकी के खिलाफ अहमदाबाद पुलिस की ओर से जारी तड़ीपार करने के आदेश को निरस्त कर दिया था.
दिल्ली के शाहीन बाग में सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों से प्रेरित होकर, सिद्दीकी और कुछ अन्य ने पिछले साल जनवरी से मार्च के बीच अजीत मिल कंपाउंड (अहमदाबाद के रखियाल इलाके में) में धरना प्रदर्शन का आयोजन किया था.
दिसंबर 2019 में शहर की पुलिस ने सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रदर्शनों के लिए अज्ञात लोगों के खिलाफ गैरकानूनी ढंग से एकत्र होने की प्राथमिकी दर्ज की थी और दावा किया था कि सिद्दीकी उस भीड़ का हिस्सा थे.
नयी दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि किसी व्यक्ति को देश में कहीं भी रहने या स्वतंत्र रूप से घूमने के उसके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.
जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र के अमरावती शहर में जिला प्रशासन के अधिकारियों द्वारा एक पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता के खिलाफ जारी जिलाबदर आदेश को रद्द करते हुए की.