नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने राज्यसभा में पेगासस से जुड़े हुए सवाल पर जवाब को खारिज करने की मांग की है, जिसमें पूछा गया था कि सरकार ने इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप के साथ कोई समझौता किया था या नहीं?
बता दें कि इजरायल की एनएसओ ग्रुप ही पेगासस स्पायवेयर बेचती है. एनएसओ ग्रुप इन दिनों पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं के फोन कथित तौर पर हैक करने के लिए पेगासस स्पायवेयर के दुरुपयोग को लेकर वैश्विक विवाद के केंद्र में है.सरकार ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कई जनहित याचिकाएं दायर किए जाने के बाद से पेगासस का मामला विचाराधीन है.
माकपा सांसद बिजॉय विश्वम द्वारा पूछे गए एक अनंतिम रूप से स्वीकृत प्रश्न (पीएक्यू) का केंद्र सरकार को 12 अगस्त को राज्यसभा में जवाब देना था.
केंद्र सरकार ने इस सप्ताह की शुरुआत में राज्यसभा सचिवालय को पत्र लिखकर कहा था कि माकपा सांसद बिनॉय विश्वम द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब नहीं दिया जाना चाहिए.
हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में विश्वम ने बताया कि उन्हें अनौपचारिक रूप से सूचित किया गया कि उनके प्रश्न को अस्वीकार कर दिया गया है, लेकिन उन्हें अभी तक इस पर औपचारिक जवाब नहीं मिला है.
उन्होंने केंद्र सरकार पर पेगासस से जुड़े सवालों से बचने के लिए राज्यसभा नियमों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया है.
माकपा सांसद ने अपने सवाल में पूछा था, ‘क्या विदेश मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे (1) सरकार ने विदेशी कंपनियों के साथ कितने एमओयू (मेमोरैंडम ऑफ अंडरस्टैंडिग या समझौता पत्र) किए हैं, क्षेत्रवार ब्योरा क्या है? (2) क्या इनमें से कोई समझौता विदेशी कंपनियों के साथ साइबर सुरक्षा के माध्यम से आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए किया गया है और (3) क्या सरकार ने देश में साइबर सुरक्षा के माध्यम से आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए एनएसओ ग्रुप के साथ किसी तरह का समझौता किया है, यदि हां तो इसका ब्योरा मुहैया कराएं?’
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से अपनी जनहित याचिकाओं की कॉपी केंद्र सरकार को भी भेजने को कहा है. अब इस मामले पर 10 अगस्त को दोबारा सुनवाई होगी.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में इन जनहित याचिकाओं का हवाला देते हुए अब तक पेगासस मामले पर चर्चा की विपक्ष की मांग को खारिज करती आई है. सरकार का कहना है कि मामला फिलहाल अदालत में विचाराधीन है, इसलिए सांसद विश्वम के प्रश्न को मंजूरी नहीं दी जा सकती.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने पूर्व में बताया था कि ऐसे भी अवसर हुए हैं, जब स्पीकर ने फैसला किया कि अगर मामला व्यापक जनहित में है और मामला विचाराधीन भी है तो सदन में इस पर चर्चा की जा सकती है.
उन्होंने कहा था, ‘सदन ने खुद पर ही पाबंदियां लगा दी हैं और समय के साथ यह स्थिति बदली है. विचाराधीन शब्द की कठोरता कम हो गई है. अब आप सभी विचाराधीन मामलों पर यह नियम लागू नहीं कर सकते.’