भोपाल-कोरोना की तीसरी आने की आशंका के बीच स्कूलों को खोलने के आदेश दे दिए गए हैं ,जहाँ सरकार कह रही है की तीसरी लहर में सबसे अधिक बच्चों को खतरे की आशंका है वहीँ बिना टीकाकरण पूर्ण हुए बच्चों के स्कूल खोलने का आदेश जारी कर दिया गया है. मप्र की साढ़े आठ करोड़ जनता में से अभी ढाई करोड़ को भी टीका नहीं लगा है यह मप्र की पूरी जनसँख्या का लगभग 25 प्रतिशत ही है. बात बच्चों की है तो उनका टीका अभी क्लीनिकल ट्रायल की स्थिति में है. एक्सपर्ट कहते हैं इस वायरस से बच्चों के बीमार पड़ने का रिस्क बहुत ही कम होता है.ज़्यादातर मां-बाप भी अभी स्कूल खोलने के पक्ष में नहीं हैं. हाल में लोकल सर्किल संस्था ने एक ऑनलाइन सर्वे करवाया था, जिसमें भारत के अलग-अलग हिस्सों से माता-पिता और दादा-दादी की ओर से 25 हज़ार से ज़्यादा प्रतिक्रियाएं मिलीं. 58% लोगों ने कहा कि वो नहीं चाहते, अभी स्कूल खुलें.जब सर्वे में लोगों से पूछा गया, उन्हें क्यों लगता है कि अभी स्कूल नहीं खुलने चाहिए? 47% लोगों ने कुछ इस तरह के कारण बताए – वो अपने बच्चों को ख़तरे में नहीं डालना चाहते, बच्चे अगर घर में संक्रमण ले आएंगे तो घर के बुज़ुर्गों को गंभीर ख़तरा हो सकता है, स्कूल में सोशल डिस्टेंसिंग मुश्किल होगी. इसके इलावा कुछ लोगों को ये भी लगता है कि स्कूल खुलने से कोविड-19 और ज़्यादा तेज़ी से फैलेगा.
हालांकि कुछ दिन पहले केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने स्कूल के घंटे कम करने पर विचार करने की बात कही थी, लेकिन फिर भी ज़्यादातर परिजन फिलहाल स्कूल खोले जाने के पक्ष में नहीं हैं.अबतक इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि कोरोना वायरस कैसे फैलता है.
अभी तक साफ़ तौर पर ऐसा कुछ पता नहीं चला है कि हल्के या बिना लक्षणों वाला व्यक्ति, चाहे वो किसी भी उम्र का हो, कोरोना को कितना फैला सकता है. इसे समझने के लिए हमें बड़े पैमाने पर एंटीबॉडी टेस्ट करने होंगे, ताकि पता चल सके कि पूरी आबादी में कौन-कौन वायरस के संपर्क में आया, और ये भी पता लगाना होगा कि उन लोगों में ये वायरस कैसे पहुंचा.
हालांकि ब्रिटेन सरकार के साइंटिफिक एडवाइज़री ग्रुप फॉर इमरजेंसीज़ (सेज) ने कहा है कि ऐसे कुछ, लेकिन “सीमित” सबूत मिले हैं कि व्यस्कों के मुक़ाबले बच्चों के वायरस फैलाने की संभावना कम है. यानी ऐसी संभावना कम है कि बच्चों के ज़रिए दूसरों में वायरस जा सकता है.
ऐसे सबूतों का आधार कुछ हद तक उन देशों को बनाया गया है जहां स्कूल खुल चुके हैं. डेटा बताता है कि स्कूल खुलने के कदम ने कम्युनिटी ट्रांस्मिशन में कोई ख़ास भूमिका नहीं निभाई.
हालांकि चीन के शेनजेन में 2020 की शुरुआत में हुए एक अध्ययन में कहा गया था कि बच्चों के कोरोना वायरस की चपेट में आने का ख़तरा उतना ही होता है. इस अध्ययन में ये चिंता भी जताई गई थी कि बिना कोई लक्षण दिखे बच्चे इस वायरस को दूसरों में फैला सकते हैं. लेकिन उसके बाद हुए अध्ययनों में ऐसी चिंताएं कम ही देखने को मिली.
चीन में कुछ परिवारों में मिले संक्रमण के क्लस्टरों का अध्ययन किया गया, जो कॉन्ट्रेक्ट ट्रेसिंग पर आधारित था. इससे पता चला कि किसी भी मामले में संक्रमण बच्चों से नहीं फैला.एक थ्योरी कहती है कि बच्चों में आम तौर पर लक्षण नहीं होने या हल्के लक्षण होने का कारण होता है कि उनके फेफड़ों में वो रिसेप्टर्स कम होते हैं, जिसका इस्तेमाल कर कोरोना सेल्स को इंफेक्ट करता है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अबतक ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है, जो इस थ्योरी को सपोर्ट करता हो.
स्कूल में ज़्यादा बच्चे आएंगे, इसका मतलब ज़्यादा शिक्षक भी काम पर आएंगे, और बच्चों के मां-बाप स्कूल के गेट पर होंगे, और ये साफ़ नहीं है कि जब इतने व्यस्क भी आपस में संपर्क में आएंगे तो कोरोना वायरस के फैलाव पर कितना असर पड़ेगा.
विशेषज्ञों को आशंका है कि इससे वायरस का फैलाव बढ़ सकता है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के एक अध्ययन में बताया गया है कि पर्याप्त कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के बिना अगर ब्रिटेन में स्कूल खुलते हैं तो इसकी दूसरे दौर की लहर में भूमिका होगी और दूसरे दौर की लहर में पहले दौर से ज़्यादा संक्रमण के मामले हो सकते हैं.
देश में 18 साल से कम उम्र वालों का वैक्सीनेशन भी नहीं हुआ है। देश में 12 से 18 साल से उम्र के बच्चों के लिए अगले कुछ महीनों में वैक्सीनेशन की शुरुआत हो सकती है। इसे लेकर ट्रायल चल रहे हैं। ऐसे में कई राज्यों में स्कूल और कॉलेजों को फिर से खोलने पर विचार-विमर्श किया जा रहा है। कई राज्यों ने फिर से स्कूल, कॉलेज खोलने पर ताजा अपडेट जारी किया है,
समस्या बच्चों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने की है जो असंभव कार्य है,बच्चे क्या खाएंगे ,दुकानों से क्या सामान लेंगे इस पर निगाह रखना नामुमकिन है हमने कुछ अभिभावकों से बात की तो उन्होंने कहा अभी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे,कोरोना की दूसरी लहर की विभीषिका देख अभिभावकों की हिम्मत असुरक्षित स्कूलों में बच्चों को भेजने की नहीं हो रही है.