सांस रोककर जिसका इंतज़ार हो रहा था, वो ख़बर आ ही गई. पिछले साल भारत की जीडीपी में गिरावट आशंका से कम रही है और साल की चौथी तिमाही में जितने सुधार का अनुमान लगाया गया था, उससे कुछ बेहतर आंकड़ा सामने आया है.
लेकिन यह जीडीपी के मोर्चे पर पिछले 40 साल से भी ज़्यादा वक़्त का सबसे ख़राब प्रदर्शन है.
वजह यह है कि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए जहां क़रीब 8 फ़ीसदी गिरावट का अनुमान लगाया जा रहा था. वहीं यह आंकड़ा 7.3 प्रतिशत पर ही थम गया है. और उस साल की चौथी तिमाही में यानी जनवरी से मार्च के बीच जहां 1.3% बढ़त का अंदाज़ा था वहां 1.6% बढ़त दर्ज हुई है.ज़्यादातर जानकारों को उम्मीद यही थी कि फ़रवरी 2021 में कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के बावजूद पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही यानी इस साल जनवरी से मार्च के बीच भी इकोनॉमी में कुछ सुधार ही नज़र आएगा.
स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया का नाउकास्टिंग मॉडल यानी भविष्यवाणी के बजाय वर्तमान का हाल बताने वाले गणित के हिसाब से इस दौरान जीडीपी में 1.3% की बढ़त दिखनी चाहिए थी.ज़ाहिर है तस्वीर बेहतर दिख रही है. लेकिन इन्हीं आंकड़ों में कुछ गहरी चिंताएं भी छिपी हैं. ख़ासकर चौथी तिमाही में जो ग्रोथ रेट दिख रही है वो परेशान करने वाली है.
याद रखिए कि पिछले साल मार्च में लगा लॉकडाउन जून में ख़त्म हो गया था और जुलाई से अनलॉक यानी दोबारा काम धंधे शुरू करने का काम चल रहा था. दिसंबर आते आते क़रीब क़रीब सब कुछ खुल चुका था.
कोरोना की दूसरी लहर का नामोंनिशान भी नहीं था और हालात सामान्य हो चुके थे. कम से कम मान तो लिया ही गया था कि सब कुछ ठीक है. ऐसे में उस तिमाही के लिए सिर्फ़ 1.6% की ग्रोथ दिखाती है कि अर्थव्यवस्था की हालत नाज़ुक है.उधर जीडीपी का आंकड़ा आने से कुछ ही पहले सरकार की तरफ़ से यह एलान भी आया कि साल 2020-21 में देश का फ़िस्कल डेफ़िसिट यानी सरकारी ख़ज़ाने का घाटा जीडीपी का 9.3% हो चुका था. हालांकि यह इससे पहले दिए गए 9.5% के अनुमान से कुछ कम रहा, यह भी मामूली राहत की बात है.
इस सवाल का जवाब घूम फिरकर वही है जो साल भर पहले बताया गया था कि सरकार को बड़े पैमाने पर ख़र्च करना होगा. लोगों की जेब में सीधे पैसा डालना होगा और रोज़गार बचाने या नए रोज़गार पैदा करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट बनाने होंगे और उन उद्योगों को सहारा देना होगा जिन पर मंदी की मार पड़ी है और जहां लोगों की रोज़ी-रोटी पर ख़तरा बड़ा है.
सीआईआई प्रेसिडेंट उदय कोटक सरकार से पूछ चुके हैं कि अब नहीं तो कब. बैंक आरबीआई से मांग कर चुके हैं कि जो लोग क़र्ज़ की किस्त नहीं भर पा रहे हैं उन्हें राहत देने का फिर कोई इंतज़ाम किया जाए. सीएमआईई के सर्वे दिखा रहे हैं कि देश में 97% लोगों की कमाई बढ़ने के बजाय साल भर में कम हो गई है.
और इसी एक साल में देश की लिस्टेड कंपनियों का मुनाफ़ा 57% बढ़ गया है. इसी का नतीजा है कि कंपनियों का कुल मुनाफ़ा अब देश की जीडीपी का 2.63% हो गया है जो दस साल में सबसे ऊंचा है. इस मुनाफ़े की वजह बिक्री या कारोबार बढ़ना नहीं बल्कि ख़र्च में कटौती है.
ऐसे में एकमात्र उम्मीद मोदी सरकार से यही है कि वो क़र्ज़ लेकर बांटे, नोट छापकर बांटे या कोई और नया तरीक़ा निकाले. लेकिन इकोनॉमी को गड्ढे से निकालने का काम अब सिर्फ सरकार के हाथ में है ,जनता थक चुकी है ,पस्त है.