नई दिल्ली – 25 मई को दायर अपनी याचिका में, जो इन सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिए, नए नियमों का पालन करने की अंतिम तिथि थी, व्हाट्सएप ने तीन मुख्य आधारों पर नियम 4(2) को चुनौती दी.
पहला, इसने आरोप लगाया कि ये नियम, 40 करोड़ से अधिक व्हाट्सएप यूज़र्स की निजता, और उनके बोलने तथा विचारों की अभिव्यक्ति के, मौलिक अधिकारों का हनन करता है, जिसकी संविधान की धाराओं 21 और 19 के तहत गारंटी दी गई है.
दूसरे, इसमें कहा गया है कि व्हाट्सएप को, अपने प्लेटफॉर्म में ‘मौलिक बदलाव’ के लिए कहकर, और किसी समयावधि कि बिना उसे बरसों तक डेटा को स्टोर करने के लिए मजबूर करके, ये क़ानून सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के दायरे से बाहर चला जाता है.
तीसरे, इसमें कहा गया है कि ये क़ानून, संविधान की धारा 14 का उल्लंघन करता है, और इसे ‘स्पष्ट रूप से मनमाना’ क़रार दिया गया है.
व्हाट्सएप ने एन्ड टु एन्ड एन्क्रिप्शन का भी, ये कहते हुए बचाव किया है, कि ये हैकिंग और पहचान चुराने जैसे अपराधों को रोकता है. इसने निवेदन किया है कि ये डॉक्टर-क्लाएंट विशेषाधिकार, वकील-क्लाएंट विशेषाधिकार, और जेंडर, धर्म, तथा सेक्सुएलिटी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर, निजी बातचीत को सुरक्षित करता है.
मैसेजिंग एप ने ये भी दावा किया है, कि भारत में सूचना के ओरिजिनेटर की पहचान की ज़रूरत को थोपने से, पत्रकारों पर ‘अलोकप्रिय मुद्दों की जांच के प्रतिशोध का ख़तरा हो सकता है,’ और सिविल या राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं पर ‘कुछ अधिकारों की चर्चा करने, या राजनीतिज्ञों अथवा नीतियों की, आलोचना या हिमायत करने के, प्रतिशोध का ख़तरा पैदा हो सकता है’.