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 निराशा को जन्म न दें- औघड़ गुरूपद संभव राम जी | dharmpath.com

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निराशा को जन्म न दें- औघड़ गुरूपद संभव राम जी

August 26, 2020 9:47 pm by: Category: धर्म-अध्यात्म Comments Off on निराशा को जन्म न दें- औघड़ गुरूपद संभव राम जी A+ / A-

वाराणसी-
अघोरेश्वर द्वारा स्थापित आश्रमों में, महापुरुष के सान्निध्य में, शक्तिपीठ में निवास करने वालों को अपने कर्तव्य, विचारधारा, मनोदशा, आचरण और व्यवहार पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। अघोरेश्वर द्वारा बताई गयी बातें हमारे साहित्यों में लिपिबद्ध हैं। अपने जीवन में उसका लाभ उठायें। हमारी यह संस्था मानव सेवा के लिए है। जो भी दैहिक, दैविक, भौतिक विपत्तियाँ आती हैं उसका हम धैर्य के साथ सामना करें। लेकिन मोह, लोभ, ईर्ष्या व घृणावश मनुष्य की कमजोरी सामने आकर उसके चित्त को दबोच लेती है। जो लोग ध्यान-धारणा या अपने साहित्यों का अध्ययन करते हैं या कर्त्तव्य में निष्ठा, श्रद्धा और विश्वास के साथ लगे हैं उन्हीं से सबकुछ चलता है। कोई सामाजिक कार्य हो, कोई सरकारी या गैर सरकारी कार्य हो या जहाँ से हमको अपनी आजीविका मिल रही है, अपने उस कर्तव्य को यदि हम मिल-जुलकर करते हैं तो वही कार्य सफलता की ओर ले जाता है। जो अनभिज्ञ हैं, जिनको इन सब बातों की जानकारी नहीं है और जानकारी है भी तो इसकी अनदेखी करते हैं, बोलते हैं कि यह सब तो पुरानी बातें हैं या हमलोगों के लायक नहीं हैं। लेकिन समय-काल, परिस्थिति सब सिखा देती है। कुछ दिन पहले जैसा जीवनयापन करते थे वह सबकुछ आज बदल गया है। पूज्य बाबा ने कहा कि कुछ ही लोग मिल-जुलकर किसी कार्य को पूर्ण करते हैं। हमें शिथिल नहीं होना है। समय-काल-पारिस्थिति को देखते हुए जो भी चीजें हैं उनसे अपने-आपको बचाते हुए सभी कार्यों को संपन्न करने के लिए प्रयत्नशील रहना होगा, प्रयत्न करना होगा। प्रयत्न को ही पुरुषार्थ कहा गया है। किसी तरह अपने कार्यों को करते रहें, रुकें नहीं। क्योंकि न पृथ्वी रुकी है, न चन्द्रमा रुक रहा है, न सूर्य रुक रहा है, सबकुछ चल रहा है, सबकुछ चलायमान है। तो हमलोग भी अपने कर्त्तव्य से क्यूँ रुक जायँ। बुद्धि-विवेक जो ईश्वर ने हमें दिया है या महापुरुषों द्वारा हमने प्राप्त किया है उसका अवलंबन लेकर कार्य करने से बहुत आसानी से, बहुत ही सहजता से, बहुत ही भाव से कोई भी कार्य संपन्न हो जाता है। किसी को अधिकार मिलता है तो अधिकार का मतलब यह नहीं कि वह अब दूसरे को नीचा दिखाने लगे। कोई-न-कोई तो कुछ संभालेगा ही, तो उसको वह जिम्मेदारी दी जाती है, अधिकार दिया जाता है कि उस अधिकार से वह उसको देखे। यह नहीं कि अधिकारी होकर किसी का दमन चालू कर दे। यह अहंकार है। और जब मनुष्य में अहंकार आ जाता है तो फिर उसको कहीं का नहीं रहने देता है। हम सबको अपने में कुछ-न-कुछ अधिकार उस ईश्वर की तरफ से मिले हैं। यदि कुछ गलत करते हैं तो हमलोग अपनी ही नजरों में गिर जाते हैं, हमारी आत्मा हमें कचोटने लगती है। जो गलतियाँ अब तक हो गयीं, उसको ढोने से भी कोई फायदा नहीं है। जब जागे तभी सबेरा। हमलोग कैसे रहें, किस तरह से करें, जिससे कि अपने-आपको इन आपदाओं से सुरक्षित रख सकें। यही सब बातें हैं आश्रमों में सीखी जाती हैं, बताई जाती हैं, बार-बार याद दिलाया जाता है। यदि हमें अपना उद्धार करना है, अपना ज्ञानवर्द्धन करना है तो अपने कर्तव्यों को भली प्रकार करते रहें।
पूज्य बाबा ने आगे कहा कि एक-दूसरे से भाईचारे की भावना होनी चाहिए। आजकल हमलोग देख ही रहे हैं कि समाज में धर्म, मजहब, जाति, क्षेत्र और भाषा के नाम पर आदमी को एक नशा-सा चढ़ गया है। उसी में वह बौड़ा रहा है, लड़ रहा है, झगड़ रहा है। आज लोगों में वह चरित्र भी नहीं रह गया है जो हमारे भारत का चरित्र था। ऐसे लोग जब हो जायेंगे तो किसी का कोई भला नहीं होना है, वह विनाश की ओर ही जा रहे हैं। ऐसी मति रहेगी, ऐसी गति रहेगी, दुरमति होगी तो दुर्गति होना स्वाभाविक है। ऐसे में हमारी जो शाखाएं हैं, हमारे जो सदस्य हैं, उन सबका यही कर्तव्य है कि लोगों को जागरूक करें। हाथ-पर-हाथ धरकर न बैठे रहें क्योंकि जिस दिन बैठ जायेंगे उस दिन बुढ़ापा हमें दबोच लेगा। किसी को गलत-सही बोलने, नीचा दिखाने, अहंकार को प्रदर्शित करने से तो हम अपने-आपको ही नष्ट कर देंगे। मुझे आशा है कि उन अभ्यासों को भी हम करते रहेंगे तब तो हमारे इस मानव जीवन की सार्थकता होगी। अपने-आपमें निराशा को जन्म न दें, हताशा को जन्म न दें। अपने-आप पर पूर्ण विश्वास और आस्था रखें तो वह ईश्वर भी हमें शक्ति देगा और निष्क्रिय हो जायेंगे, निकम्मे हो जायेंगे तो वह भी हमारी मदद नहीं करेगा। जैसा हम आज करेंगे, वैसा ही कल पायेंगे और इसी जन्म में पायेंगे। इसमें नहीं पाए, तो फिर से यहीं आकर पायेंगे। तो अपने जीवन को संवारना हमारे अपने हाथ में है। मैं आशा करता हूँ कि आप सभी लोग बहुत ही समझदार हैं, समझ से काम लेंगे और सभी विपदाओं से, सभी दुरात्माओं से बचाते हुए अपने-आपको सकुशल निकाल ले जायेंगे। अघोरेश्वर का वरदहस्त सैकड़ों वर्ष तक हमलोगों पर रहेगा, है, उसका अनुभव हमें हमारे आचरण-व्यवहार व कर्मों से ही होगा।
उक्त बातें दिनांक 25 अगस्त 2020 को अघोर पीठ, श्री सर्वेश्वरी समूह संस्थान देवस्थानम(Sri Sarveshwari Samooh, Parao – Ashrams in Varanasi), अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम, पड़ाव, वाराणसी (Avadhoot Bhagwan Ram Kustha Sewa Ashram) में आयोजित अघोरेश्वर जयंती के पावन अवसर पर सायं 5 बजे की पारिवारिक गोष्ठी में श्री सर्वेश्वरी समूह के अध्यक्ष पूज्यपाद अवधूत गुरुपद संभव राम जी ने कहा। गोष्ठी का प्रारंभ कुमारी गुंजन द्वारा प्रस्तुत श्री गुरुपदुकापंचकम के पाठ से हुआ। संस्था के उपाध्यक्ष डॉ० ब्रजभूषण सिंह, श्री देवेन्द्र बहादुर सिंह एवं श्री सुनील कुमार जी ने भी गोष्ठी को सम्बिधित किया। धन्यवाद ज्ञापन संस्था प्रचारमंत्री पारसनाथ यादव ने तथा सञ्चालन डॉ० वामदेव पाण्डेय ने किया। #KAPALIK #AGHORI #VARANASI #AGHORESHWAR #BHAGVAN #RAM

निराशा को जन्म न दें- औघड़ गुरूपद संभव राम जी Reviewed by on . वाराणसी- अघोरेश्वर द्वारा स्थापित आश्रमों में, महापुरुष के सान्निध्य में, शक्तिपीठ में निवास करने वालों को अपने कर्तव्य, विचारधारा, मनोदशा, आचरण और व्यवहार पर अ वाराणसी- अघोरेश्वर द्वारा स्थापित आश्रमों में, महापुरुष के सान्निध्य में, शक्तिपीठ में निवास करने वालों को अपने कर्तव्य, विचारधारा, मनोदशा, आचरण और व्यवहार पर अ Rating: 0
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