नई दिल्ली, 23 जनवरी (आईएएनएस)। प्लेटफॉर्म से जाती हुई ट्रेन को दौड़कर पकड़ते समय किसी यात्री की यदि हृदयाघात के कारण मौत हो जाती है या रेल में यात्रा करते समय यात्री के साथ अगर कोई अप्रिय घटना घट जाती है तो उसके लिए भारतीय रेलवे को मुआवजा देना होगा। यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की एक दलील पर सुनवाई करते हुए दिया।
एक मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती के मामले में केंद्र की दलील को ठुकरा दिया है। मद्रास उच्च न्यायालय ने रेलवे को एक यात्री दुरई सोमनाथन की विधवा और उसके बच्चे को चार लाख रुपये का मुआवजा देने के लिए कहा था।
सोमनाथन की बेटी और उसकी पत्नी ट्रेन से नीचे नहीं उतर पाए थे और उसके पहले ही ट्रेन चलने लगी थी, जिस पर सोमनाथन ने उसे दौड़कर पकड़ने का प्रयास किया और हृत्याघात से उनकी मृत्यु हो गई थी।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एल. दत्तू, न्यायमूर्ति ए.के. सिकरी और न्यायमूर्ति आर.के. अग्रवाल वाली सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने गुरुवार को केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर दिया। न्यायालय में महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने कहा कि क्या चलती हुई ट्रेन के साथ दौड़ने को अप्रिय घटना माना जा सकता है।
न्यायालय ने कहा कि मुआवजे की चार लाख रुपये की राशि को छह फीसदी ब्याज के साथ देना होगा।
याचिका की सुनवाई में न्यायालय की अरुचि को देखते हुए रोहतगी ने कहा कि रेलवे मुआवजे की राशि देने के लिए तैयार है। उन्होंने न्यायालय से याचिका पर सुनवाई जारी रखने का आग्रह किया।
सोमनाथन ने चार मार्च 2008 को डिंडीगुल जंक्शन से तमिलनाडु के कुम्भकोणम जाने के लिए टिकट लिया था। वे एक गलत ट्रेन में बैठ गए थे, लेकिन जैसे ही ट्रेन प्लेटफॉर्म से चलने लगी थी उन्हें पता चला कि वह गलत ट्रेन में बैठे हैं।
सोमनाथन ट्रेन से नीचे उतर आए लेकिन उनकी पत्नी और बच्चे नहीं उतर पाए। उन्हें उतारने के लिए सोमनाथन चलती ट्रेन के साथ दौड़ने लगे थे और हृदयाघात से उनकी मौत हो गई थी।