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 अमरीका:डोनाल्ड ट्रम्प की गलत नीतियों पर गुस्सा अश्वेत नागरिक की हत्या से फूटा | dharmpath.com

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अमरीका:डोनाल्ड ट्रम्प की गलत नीतियों पर गुस्सा अश्वेत नागरिक की हत्या से फूटा

June 1, 2020 9:19 pm by: Category: धर्मंपथ Comments Off on अमरीका:डोनाल्ड ट्रम्प की गलत नीतियों पर गुस्सा अश्वेत नागरिक की हत्या से फूटा A+ / A-

वाशिंगटन-आम गोरे लोग ही नहीं, अमेरिका में सरकारी गोरी पुलिस भी अकसर कालों को सड़क पर मारती रहती है, कभीकभी जान से भी मार डालती है. ताज़ा मामला अमेरिका के मिनेसोटा राज्य के मिनियापोलिस शहर में 25 मई का है जिस का वीडियो वायरल होने के बाद पूरे अमेरिका में काले नागरिकों के साथ बड़े पैमाने पर होने वाले भेदभाव के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ा,कोरोना संक्रामण से हुयी सिलसिलेवार मौतों ने पहले से कहर बरपा रखा है,ट्रम्प ने covid_19 को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई इसके चलते अमरीकी नागरिकों की लाशों का अंबार लग गया, यहां तक कि नाराज़ प्रदर्शनकारियों ने मिनियापोलिस में एक पुलिस स्टेशन को आग के हवाले भी कर दिया.

दरअसल, गोरे अमेरिकी पुलिस अफसर ने सड़क के बीचोंबीच एक काले आदमी को गला दबा कर बेदर्दी से मार डाला था. पास से गुज़र रहे एक व्यक्ति ने अपने कैमरे से इस घटना की वीडियो बना ली जिस ने पूरे अमेरिका में भयानक विस्फोट कर दिया. एक बार फिर अमेरिका की घिनौनी तसवीर सामने आ गई कि इस देश में कालों के साथ कैसी दरिंदगी की जाती है.

वायरल वीडियो में गोरे अमेरिकी पुलिस अफ़सर को जौर्ज फ़्लोएड नाम के एक काले आदमी की गरदन अपने घुटने से दबाते दिखाया गया है. वीडियो देखने वालों का कहना था कि वीडियो का वह हिस्सा तो देखा नहीं जा रहा था जिस में फ़्लोएड गोरे जल्लाद से फ़रियाद कर रहा था कि तुम्हारा घुटना मेरी गरदन पर है…मेरी सांस नहीं आ रही है…. मेरा दम घुट रहा है…. मेरा दम घुट रहा है… मां….. मां… इस के बाद फ़्लोएड की आवाज़ बंद हो जाती है और वह दम तोड़ देता है. वह गोरे पुलिस अधिकारी से अपनी ज़िंदगी की भीख मांगता रहा, लेकिन अधिकारी पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

मिनियापोलिस में हिंसक प्रदर्शन भड़कने के बाद प्रशासन को कर्फ़्यू लगाने की घोषणा करना पड़ी. लेकिन कर्फ़्यू की परवा न करते हुए बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर निकल आए और उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया. फ़्लोएड की हत्या के बाद वाशिंगटन, न्यूयौर्क, लास एंजिल्स, शिकागो, डेनवर और फ़ीनिक्स समेत कई अन्य अमेरिकी शहरों में भी विरोध प्रदर्शन हुए.

पीड़ित परिवार और प्रदर्शनकारी मांग कर रहे थे कि फ़्लोएड की हत्या में शामिल पुलिस अधिकारियों को नौकरी से बरखास्त कर के उन्हें हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया जाए.

इस बीच, ट्रंप ने ट्वीट कर के प्रदर्शनकारियों को ठग बताते हुए कहा था कि जब लूटिंग होती है तो शूटिंग भी होती है. उन्होंने नेशनल गार्ड्स को जल्द से जल्द शांति बहाल करने का आदेश भी दिया था.

ट्रंप के ट्वीट से ज़ाहिर होता है कि वे इस दरिंदगी के फ़ेवर में थे. वे एकतरह से पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग करने को कह रहे थे.

ट्विटर ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस ट्वीट को हिंसा को बढ़ावा देने वाला क़रार दे कर उसे हाइड कर दिया था.

लेकिन, देशव्यापी प्रदर्शनों के सामने आख़िरकार व्हाइट हाउस ने घुटने टेक दिए और दोषी गोरे पुलिस अधिकारी को हत्या के आरोप में गिरफ़्तार करने का एलान किया. लगातार 4 दिनों तक हिंसा और विरोध प्रदर्शनों के बाद 29 मई को 44 वर्षीय पुलिस अधिकारी डेरेक चौविन को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया और उस के ख़िलाफ़ थर्डडिग्री व हत्या के आरोप में मुक़दमा दर्ज किया.न्याय की मांग करते हुए वहां के नागरिकोंं ने जमीन पर मुर्दे की तरह सो कर विरोध जताया…

अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में गोरों के खिलाफ प्रदर्शनकारियों की बहुत बड़ी संख्या ने ह्वाइट हाउस को घेर लिया, जिसे देखते हुए सीक्रेट सर्विसेज़ ने ह्वाइट हाउस की इमारत को कुछ देर के लिए लौकडाउन कर दिया. पूर्वोत्तरी वाशिंगटन में 29 मई को प्रदर्शनकारियों ने एक बड़े हिस्से में ट्रैफ़िक रोक दिया और व्हाइट हाउस जा पहुंचे. व्हाइट हाउस के सामने भारी संख्या में सुरक्षा बल सक्रिय हो गए जबकि प्रदर्शनकारी बड़ी तादाद में प्रदर्शन कर रहे थे.

व्हाइट हाउस के आसपास सुरक्षाबलों ने पोजीशन ले ली थी, जबकि प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस के बाहर जमा रहे. एक अवसर पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों में झड़प भी शुरू हो गई, मगर यह मामला जल्द ही संभल गया और कोई घायल नहीं हुआ.

इन हालात को देखते हुए व्हाइट हाउस को कुछ देर के लिए लौकडाउन करना पड़ा, जबकि इमारत के भीतर लगभग एक दर्जन पत्रकार भी फंस गए.अमेरिका की एक बार फिर अपने इतिहास से मुठभेड़ हो रही है। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सबसे बडे प्रवक्ता माने जाने वाले इस देश में काला समुदाय अपने नागरिक अधिकारों के लिए सड़कों पर उतर आया है।

लगभग 12 वर्ष पूर्व जब बराक ओबामा पहली बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे तो दुनिया भर में यह माना गया था कि यह मुल्क अपने इतिहास की खाई (नस्लभेद और रंगभेद) को पाट चुका है। ओबामा के रूप में एक काले व्यक्ति का दुनिया के इस सबसे ताकतवर मुल्क का राष्ट्रपति बनना ऐसी युगांतरकारी घटना थी जिसका सपना मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में देखा था और जिसको हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने जीवनभर अहिंसक संघर्ष किया था। ओबामा का राष्ट्रपति बनना एक तरह से मार्टिन लूथर किंग के अहिंसक संघर्ष की ही तार्किक परिणति थी। लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि ओबामा के कार्यकाल में ही वहां नस्लवादी और रंगभेदी नफ़रत ने बार-बार फन उठाया और वह सिलसिला आज भी जारी है।

वहां कभी किसी गुरुद्वारे पर हमला कर दिया जाता है तो कभी किसी सिख अथवा दक्षिण-पश्चिमी एशियाई मूल के किसी दाढ़ीधारी मुसलमान को आतंकवादी मानकर उस पर हमला कर दिया जाता है। कभी कोई गोरा पादरी किसी नीग्रो या किसी और मूल के काले जोड़े की शादी कराने से इनकार कर देता है तो कभी किसी भारतीय राजनेता, राजनयिक और कलाकार से सुरक्षा जांच के नाम बदसुलूकी जाती है तो कभी किसी भारतीय अथवा एशियाई मूल के व्यक्ति को रेलगाड़ी के आगे धक्का देकर मार दिया जाता है। हाल के वर्षों में वहां इस तरह की कई घटनाएं हुई हैं।

दरअसल, पश्चिमी देशों में अमेरिका एक ऐसा देश है, जहां विभिन्न नस्लों, राष्ट्रीयताओं और संस्कृतियों के लोग सबसे ज्यादा हैं। इसकी वजह यह है कि अमेरिका परंपरागत रूप से पश्चिमी सभ्यता का देश नहीं है। उसे यूरोप से गए हमलावरों या आप्रवासियों ने बसाया। अमेरिका के आदिवासी रेड इंडियनों को इन आप्रवासियों ने तबाह कर दिया, लेकिन वे अपने साथ अफ्रीकी गुलामों को भी ले आए। उसके बाद आसपास के देशों से लातिन अमेरिकी लोग वहां आने लगे और धीरे-धीरे सारे ही देशों के लोगों के लिए अमेरिका संभावनाओं और अवसरों का देश बन गया। अमेरिका में लातिनी लोगों के अलावा चीनी मूल के लोगों की भी बड़ी आबादी है। भारतीय मूल के लोग भी वहां बहुत हैं। जनसंख्या के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका की 72 प्रतिशत आबादी गोरे यूरोपीय मूल के लोगों की है, जबकि 15 प्रतिशत लातिनी और 13 प्रतिशत अफ्रीकी मूल के काले नागरिक हैं। भारतीय मूल के आप्रवासी कुल आबादी का एक प्रतिशत (लगभग 32 लाख) हैं, जो वहां प्रशासनिक कामकाज और आर्थिक गतिविधियों में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए अमेरिका की मुख्य धारा का हिस्सा बने हुए हैं।

एक तरफ तो अमेरिकी नागरिक समाज इतना जागरूक, उदार और न्यायप्रिय है कि एक काले नागरिक को दो-दो बार अपना राष्ट्रपति चुनता है, वहीं दूसरी ओर उसके भीतर नस्ली दुराग्रह की हिंसक मानसिकता आज भी जड़ें जमाए बैठी हैं। अमेरिका अपने को लोकतंत्र, सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और धार्मिक आजादी का सबसे बड़ा हिमायती मानता है। दुनिया के दूसरे मुल्कों को भी इस बारे में सीख देता रहता है। लेकिन उसके यहां जारी चमड़ी के रंग और नस्ल पर आधारित नफ़रत और हिंसा की घटनाएं उससे अपने गिरेबां में झांकने की मांग करती हैं।

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