तेलंगाना-यह देखा जा रहा है कि संचार क्रांति के दौर में न्यायिक फैसलों और आदेशों के परिप्रेक्ष्य में सोशल मीडिया पर न्यायपालिका और फैसले सुनाने तथा मामलों की सुनवाई करने वाले न्यायाधीशों के बारे में आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करना और अनर्गल आरोप लगाना फैशन बन गया है. न्यायिक आदेश और फैसलों के साथ ही संबंधित न्यायाधीशों के बारे में सोशल मीडिया पर अपलोड होने वाली टिप्पणियों में अमर्यादित भाषा की भरमार देखी जा सकती है.न्याय व्यवस्था का एक सिद्धांत है: ‘कोई कितना भी बड़ा क्यों नहीं हो, कानून उसके ऊपर है ‘.
सोशल मीडिया पर न्यायपालिका और न्यायाधीशों के बारे में आपत्तिनजक और अमर्यादित भाषा का प्रयोग करने वालों की अब खैर नहीं है. इस दिशा में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने पहल करते हुये सोशल मीडिया पर न्यायपालिका और न्यायाधीशों के बारे में पोस्ट की गयी आपत्तिजनक टिप्पणियों का संज्ञान लेते हुये एक सांसद और एक पूर्व विधायक सहित कम से कम 49 व्यक्तियों को न्यायालय की अवमानना के नोटिस दिये हैं.
उच्च न्यायालय ने सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के सांसद नंदीगाम सुरेश, पूर्व विधायक अमांची कृष्ण मोहन ओर कई अन्य नेताओं सहित 49 व्यक्तियों को न्यायालय की अवमानना के नोटिस दिये हैं. राज्य के महाधिवक्ता एस श्रीराम ने वीडियो क्लिप और सोशल मीडिया की पोस्ट के अवलोकन के बाद इन टिप्पणियों को अनावश्यक और अपमानजनक बताते हुये इन सभी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की लिखित में सहमति दी है.
इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने हाल ही में कतिपय महत्वपूर्ण मामलों में फैसला और आदेश सुनाने वाले उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की मंशा पर सवाल उठाते हुये उन पर भ्रष्टाचार और अन्य प्रकार के गंभीर आरोप लगाये और सोशल मीडिया पर कई पोस्ट किए.
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी प्रवीण कुमार की पीठ ने सोशल मीडिया पर चल रही इस तरह की गतिविधियों का स्वत: ही संज्ञान लिया. न्यायालय ने 49 व्यक्तियों को नोटिस जारी करते हुये टिप्पणी की है कि इंटरव्यू, भाषण और पोस्टिंग से ऐसा लगता है कि मानो यह न्यायाधीशों और उच्च न्यायालय को बदनाम करने और उसकी छवि को ठेस पहुंचाने की साजिश का हिस्सा है.
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संभवत: यह पहला मौका है जब किसी उच्च न्यायालय ने एक साथ इतने ज्यादा व्यक्तियों को और वह भी सोशल मीडिया पर की गयी टिप्पणियों को लेकर अवमानना के नोटिस जारी किये हैं. उच्च न्यायालय की यह कार्रवाई निश्चित ही सोशल मीडिया पर न्याययपालिका और न्यायाधीशों के प्रति अमर्यादित टिप्पणियों के प्रति उसकी गंभीरता को इंगित करती है.
न्यायपालिका और इसके सदस्यों के बारे में अक्सर ही सोशल मीडिया पर तरह-तरह की टिप्पणियां होती रहती हैं लेकिन न्यायालय ने इसको कभी महत्व नहीं दिया. उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों की 12 जनवरी, 2018 की प्रेस कांफ्रेंस के बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की कार्यशैली और मुकदमों के आवंटन को लेकर सोशल मीडिया में की गयी टिप्पणियां किसी से भी छिपी नहीं है.