भोपाल(अनिल कुमार सिंह)-अंततः एक महीने से उपर अकेले मुख्यमंत्री के तौर पर शासन चलाने वाले शिवराज सिंह चौहान ने अपना मंत्रिमंडल गठित कर दिया,जहां हमने इस आपदा के समय कयास लगाए थे 4 मंत्री बनेंगे उसकी जगह 5 मंत्री बनाए गए वहीं विस्तार के लिए लगभग 22 वरिष्ठ विधायक कतार में थे जिन्हें यह कह टाल दिया गया की लाकडाउन खुलने के बाद विस्तार किया जाएगा, लेकिन जिस तरह शिवराज सिंह की राजनीति करने का तरीका है वे एकला चलो की नीति पर कार्य करना पसंद करते हैं और पुनः विस्तार इतनी जल्दी नहीं होगा यह तय है वे जितना इस विस्तार को खींच सकेंगे उतना खींचेंगे।
मंत्रिमंडल गठन इसलिए इस बार का महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार गिराकर बागी विधायकों को भी इसमे शामिल करना है चूंकि अब वे भाजपा के सदस्य हो गए हैं अतः मंत्रिमंडल विस्तार में क्षेत्रवाद का संतुलन भी देखना पड़ा जिससे भाजपा के कई कद्दावर नाराज हो गए हैं.
मंत्रिमंडल के गठन में शिवराज सिंह चौहान की ही तरह कांग्रेस के 22 विधायकों लेकर भाजपा में आने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी समझौता करना पड़ा। उनके तमाम प्रयासों के बाद भी वे अपने समर्थक सभी पूर्व मंत्रियों की पहली बार में ही शपथ नहीं करा सके हैं। खास बात यह है कि उनके समर्थक सबसे अधिक विधायक चंबल-ग्वालियर अंचल से है, लेकिन इस अंचल का उनका अपना एक भी विधायक मंत्री नहीं बन पाया है। सबसे ज्यादा 16 सीटों के लिए उप चुनाव भी इसी अंचल में होना है। ऐसे में मंत्री बनने से वंचित रहे सिंधिया समर्थक निराश है, लेकिन कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं है।
कांग्रेस से आए विधायक मंत्री बन खुश रहेंगे यह कहना कठिन है क्योंकि दोनों दलों की अपनी विचारधारा है कार्य करने के अपने तरीके है जो विपरीत ध्रुव की तरह है वर्तमान मंत्रिमंडल गठन में यह स्पष्ट हो गया ,सत्ता की मजबूरी में विभाग तो दिये लेकिन महत्व नहीं दिया कांग्रेस से आए ऊमीद्वारों को ,महत्वपूर्ण और बजट वाले विभाग भाजपा के विधायकों को मिले ताकि सत्ता-संगठन की सीधी पकड़ उन पर रहे वरना कांग्रेस से आए विधायकों से मनमाफिक कार्य करवाना दुष्कर होता। कांग्रेस से आए विधायकों को भाजपा की कार्यशैली सीखने में भी समय लगेगा जो उनके लिए अटपटा रहेगा अब देखना है दो विपरीत विचारधाराओं में कितना समन्वय बन पाता है।
लंबे इंतजार के बाद गठित इस छोटे मंत्रिमंडल में संतुलन साधने के प्रयासों की झलक दिख रही है। जातीय संतुलन के हिसाब से सामान्य वर्ग के दो, आदिवासी, पिछड़ा एवं दलित वर्ग से एक-एक मंत्री बनाया गया हैं। इसी तरह से क्षेत्रीय संतुलन के लिहाज से चंबल-ग्वालियर, बुंदेलखंड मध्यभारत, मालवा एवं विंध्य अंचल को प्रतिनिधित्व मिला है। इसमें महाकौशल ही ऐसा अंचल रहा है जिसे कोई मंत्री नहीं मिला है।
संगठन ने मंत्री पद के कई दावेदारों को तीन मई के बाद होने वाले विस्तार में शामिल करने का आश्वासन दिया है। इसमें भी सबसे बड़ी परेशानी एक ही क्षेत्र से कई दावेदारों के सामने आने से आ रही है। यह वे दावेदार हैं जो ,लगातार कई बार से चुनाव जीत रहे हैं। यदि मंदसौर-नीमच से हरदीप सिंह डंग को मंत्री बनाया जाता है जो भाजपा के लिए मजबूरी भी है तो उनके ही इलाके से आने वाले जगदीश देवड़ा, यशपाल सिंह सिसौदिया, ओमप्रकाश सकलेचा, राजेन्द्र पांडेय में नाराजगी हो सकती है। यह सभी डंग से वरिष्ठ हैं और लगातार चुनाव जीत रहे हैं। यही हाल विंध्य, ग्वालियर चंबल और बुंदेलखंड में भी है।
फिर भी भाजपा केडर बेस पार्टी है और संगठन का निर्णय सभी को मान्य होता है भाजपा में बगावत असंभव है हाँ यह हो सकता है की कुछ भीतरघात की जाय लेकिन वह भी दबे-छुपे तरीके से जिसके नुकसान का प्रतिशत बहुत कम होता है ।