धर्मपथ- कोरोना वायरस से सांस संबंधी बीमारी होती है. यह वायरस बुनियादी तौर पर उन छोटी छोटी बूंदों के जरिए फैलता है जो खांसी या फिर झींक के दौरान हवा में छोड़ी जाती हैं.
लंदन के स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रोपिकल मेडिसिन में गणितज्ञ और महामारी विशेषज्ञ एडम कुचारस्की की गणना बताती है कि इस वायरस से मरने की दर 0.5 प्रतिशत से दो प्रतिशत के बीच होती है. इसका मतलब है कि हर संक्रमित 100 लोगों में से एक या दो लोगों की मौत.
जर्मनी के फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ रिस्क एसेसमेंट (बीएफआर) के अनुसार शुरुआती लैब टेस्ट बताते हैं कि SARS-CoV-2 हवा में तीन से चार घंटे रहने के बावजूद संक्रमित करने की ताकत रखता है. तांबे की सतह पर यह चार घंटे तक, कार्डबोर्ड पर 24 घंटे तक और स्टेनलेस स्टील और प्लास्टिक पर यह दो से तीन दिन तक रह सकता है.
लेकिन अच्छी बात यह है कि इस वायरस को बने रहने के लिए किसी जीवित प्राणी की जरूरत होती है. जीवित मेजबान ना मिलने पर यह वायरस मर जाता है क्योंकि यह अपने जैसे और वायरस तैयार नहीं कर पाता. किसी चीज की सतह पर कई घंटे और कई दिन रहने के बाद इसके संक्रमण की क्षमता भी कम होती है.
इतना ही नहीं, इस वायरस की क्षमता को परखने वाले टेस्ट प्रयोगशाला की आदर्श परिस्थितियों में हुए हैं, जिनमें तापमान में बदलाव और धूप जैसे बाहरी कारकों को शामिल नहीं किया गया है जबकि ये भी वायरस की स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं.