मप्र में राजनैतिक घमासान की शुरुआत हो चुकी है ,भाजपा और कांग्रेस के लिए करो या मरो वाली स्थिति सामने आ गयी है ,सत्ता की चाबी अपने हाथों में लेने के लिए भाजपा ने कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपना बना लिया है कारण काम सीटों के अंतर वाली विधानसभा में उनके प्रभाव के 15 विधायक और ऐसे जो महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही सब कुछ मानते हैं अपना भगवान् भी ,यह भी सत्य है की महल की कृपा से ही ये सभी विधायक बने हैं इनके पास महल की कृपा के अतिरक्त न कुछ था और न उन्हें आगे कुछ दिख रहा है,यह कृपा सिंधिया खानदान की वर्षों की संजोयी संपत्ति है ,ज्योतिरादित्य जब से कांग्रेस में आये हैं कांग्रेस पार्टी ने उन्हें सर-आँखों पर बैठा कर रखा वे कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के नेता उसी दिन से बने रहे जिस दिन से उन्होंने कांग्रेस दल को अपना बनाया।
बात आती है सिंधिया ने अपनी ताकत और भरोसे का फायदा जनता को क्या दिया ? यदि लोकतंत्र में बात करें तो सिंधिया जनहित के कार्य करने में असफल रहे आज उनकी जो ताकत है वह अपने पुरखों की ही कमाई है,सिंधिया का प्रभाव अपने क्षेत्र को छोड़ बाकी कहीं नहीं है ,वे आज भी अपनी मर्जी से लोगों से मिलते हैं नहीं मर्जी होती तो नहीं मिलते यह सभी को पता है लेकिन जो परिवार पिछले 50 वर्षों से लगभग इतने ही विधानसभा टिकट पार्टी में दिलवाने की क्षमता रखता हो उसके प्रभुत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की नजर इस क्षेत्र पर लगी हुयी थी इसलिए भाजपा ने अपना मप्र अध्यक्ष इसी क्षेत्र से दिया,केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी यहीं से आते हैं,भाजपा के कई कद्दावर नेता जो महल के विरोध की राजनीति करते हुए आगे बढे इसके पीछे भी सिंधिया खानदान की लोकप्रियता ही है.लेकिन अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने दल में शामिल कर कांग्रेस से सत्ता हासिल करने का दांव भाजपा को कमजोर करेगा या मजबूत यह समय ही बताएगा,भाजपा की कार्यशैली से सिंधिया की कार्यशैली कहीं भी मेल नहीं खाती है ,भाजपा में पार्टी लाइन के विरुद्ध बोलना अपराध की श्रेणी में आता है चाहे वह कितना भी जनहितैषी कार्य क्यों न हो और सिंधिया इसके लिए बने ही नहीं हैं वे अपनी लाइन से चल राजनीति करने के आदी हैं इसके मध्य वे टोका-टोकी भी सहन नहीं कर सकते हैं और भाजपा के लिए यह तासीर असहनीय है. राजनितिक आंकलनकर्ताओं का मानना है की यह मेलजोल अधिक नहीं चलने वाला है ,भाजपा के रणनीतिकर्ता भी इसे बेहतर जानते हैं लेकिन अभी उनके समक्ष पूरे भारत में घटती लोकप्रियता का कलंक लग रहा है जिसके चलते भाजपा ने तात्कालिक समझौता किया लगता है।
मैं सिंधिया के भोपाल आगमन के समय एयरपोर्ट से लेकर भाजपा कार्यालय तक उपस्थित था हमने वहां देखा जो भीड़ आगंतुकों की थी वह इनके क्षेत्र से ही थी न की भाजपा कार्यकर्ताओं की ,स्थानीय भाजपा नेता शामिल अवश्य थे लेकिन अनमने ढंग से ,चूंकि संगठन का आदेश था अतः उनकी प्रबंध समिति अपने प्रबंधन में लगी हुयी थी भीड़ और जोशीले नारे तो वही लोग लगा रहे थे जो महाराज के क्षेत्र से आये थे ,भाजपा के बड़े नेताओं का चेहरा ही यह बताने के लिए काफी था की वे क्या महसूस कर रहे हैं ,शिवराज ,नरोत्तम जैसे नेता जिनकी अगुआई और लोकप्रियता के चलते पिछले 15 वर्षों से हम लोग भाजपा कार्यालय में उनके चमकते-दमकते अंदाज से वाकिफ हैं आज वह चमक सत्ता आने की ख़ुशी के बावजूद गायब थी,जब सिंधिया ने भारत माता की जय के नारे मंच से लगाए तब उनके पीछे खड़े नेता भारत माता का जयकारा भी लगाने में असमर्थ दिखे सिर्फ वह भीड़ जो सिंधिया के लिए आयी थी जोश में थी ,फ़िल्मी डायलागों से भरे सिंधिया के भाषण के आगे शिवराज का भाषण फीका पड़ गया ,भाजपा के नेता सत्ता आने के प्रति आश्वस्त दिखे लेकिन अपनी स्वयं की राजनीति के प्रति आश्वस्त कम दिखे।
सिंधिया के अपमान और उपेक्षा का समय पर फायदा उठा सत्ता अपने हाथों में लेने के करीब भाजपा इस समय ख़ुशी से फूली नहीं समा रही है किन्तु यह ऊर्जा यदि भाजपा से संभाले नहीं सम्भली तो भाजपा एवं महाराज दोनों के लिए राजनैतिक आत्मघाती कदम होगा .
अनिल कुमार सिंह “धर्मपथ के लिए”