आज शाम दिल्ली में चुनाव प्रचार बंद हो जाएगा ,भारतीय इतिहास को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला यह चुनाव और सबसे बढ़कर उसमें अपनाया गया प्रचार का तरीका बनेगा, आप पार्टी जहाँ अपने पांच वर्ष के कार्य को लेकर मैदान में है वहीँ सीटों की संख्या में दूर-दूर तक नजर नहीं आने वाली पार्टी भाजपा ने चुनाव के अंतिम पखवाड़े में अपनी रणनीति के चलते दिल्ली ही नहीं पूरे राष्ट्र और विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी (आप) के 62 विधायक और भाजपा के चार विधायक हैं। बाकी सीटें अन्य दलों और निर्दलीयों के पास हैं। पिछली बार 7 फरवरी, 2015 को दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए थे। इस समय आप के अरविंद केजरीवाल राज्य के मुख्यमंत्री और मनीष सिसोदिया उप-मुख्यमंत्री हैं। आप से पहले कांग्रेस की शीला दीक्षित लगातार 15 वर्षों तक यहां की मुख्यमंत्री रही थीं।
आम आदमी पार्टी का दावा है कि इस बार चुनाव बिजली, पानी और शिक्षा जैसे मुद्दों पर लड़े जा रहे हैं. कभी असुविधाओं के लिए पहचाने जाने वाले सरकारी स्कूलों में सुधार के नाम पर वोट माँगे जा सकते हैं, कुछ साल पहले तक कोई सोच नहीं सकता था.
वहीँ भाजपा के अमित शाह अपनी चुनावी सभाओं में केंद्र सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं, जिनमें जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 का हटाया जाना, राम मंदिर का उनके पक्ष में आया फ़ैसला जैसी उपलब्धियाँ शामिल हैं.लेकिन दिल्ली के चुनाव का फ़ैसला राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं होगा. तो फिर ऐसे में इसके नतीजों का असर देश की सियासत पर कैसे और क्यों पड़ेगा? जबकि दिल्ली को एक पूर्ण राज्य का भी दर्जा तक हासिल नहीं है.
दिल्ली के चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष के अनुसार में दिल्ली का चुनाव एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय घटना है और 8 फ़रवरी को होने वाला दिल्ली विधानसभा चुनाव, केंद्र में सत्ता पर विराजमान भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद अहम है.उनके अनुसार बीजेपी की अगर हार होती है तो विपक्ष का मनोबल बढ़ेगा, “इससे विपक्ष का आत्मविश्वास बढ़ेगा कि अगर हम साथ चुनाव लड़ते हैं, तो मोदी को हराया जा सकता है. न ही वो अजेय हैं और न ही अमित शाह चाणक्य हैं.
दिल्ली चुनावों में बीजेपी काफ़ी ज़ोर ज़रूर लगा रही है लेकिन आम धारणा ये है कि जीत ‘आम आदमी पार्टी’ की होगी.
इसका एक कारण ये है कि बीजेपी में अरविंद केजरीवाल के मुक़ाबले में मुख्यमंत्री पद का कोई उमीदवार मैदान में नहीं है.
कांग्रेस अब भी काफ़ी कमज़ोर है और इस दौड़ में काफी पीछे है. इसका एक और कारण है दिल्ली बीजेपी के भीतर फूट और पार्टी के अंदर के लोग इसकी पुष्टि भी करते हैं. बीजेपी से जुड़े कई नेता जिनसे मैंने बात की, उन्होंने इस बात को स्वीकार किया.लेकिन अगर केजरीवाल इस दौड़ में आगे निकल जाते हैं तो इसका मुख्य कारण होगा उनकी सरकार का रिपोर्ट कार्ड. ऐसा समझा जाता है कि सत्ता में आने के बाद शुरुआती दौर में केजरीवाल ने काम पर ध्यान कम दिया और प्रधानमंत्री मोदी पर हमले अधिक किए.
भाजपा ने भारत के इतिहास में सबसे अधिक राजनैतिक गिरावट का प्रचार इस चुनाव में प्रयोग किया है ,भाजपा के रणनीतिकारों ने इस चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम चुनाव का रंग देने का प्रयास किया है और इस ओर जनता को झुकाने का पूरा प्रयास किया है ,भाजपा के इस चुनावी अनुप्रयोग का प्रचार-प्रसार पूरे भारत में हो गया है यह चुनाव प्रचार स्पष्ट्तः भारतीय संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन है ,भाजपा की सोशल मीडिया टीम ने इसे पूरे देश और देश के बाहर फैला दिया है ,यह भाजपा के सोचा -समझा राजनैतिक प्रयोग है क्योंकि विकास एवं बदहाल अर्थव्यवस्था के चलते भाजपा अन्य राज्यों में अपना आधार खोती जा रही है 2019 लोकसभा चुनाव में मिली जीत के पीछे पुलवामा हमले से उपजा जनसमर्थन रहा है विपक्ष आज भी इसके पीछे भाजपा रणनीतिकारों का ही हाथ होना मान रहा है.
बीजेपी के ख़ेमे में इस बात का अहसास है कि केजरीवाल का जवाब उनके पास नहीं है. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी की जगह दिल्ली में अमित शाह चुनावी सभाएं कर रहे हैं. राम लीला मैदान की रैली प्रधानमंत्री की पहली रैली थी और उसके बाद से ये काम अमित शाह को सौंप दिया गया है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत जिसकी भी हो इसमें कोई दो मत नहीं है कि इसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर असर पड़ेगा.
केजरीवाल की चुनावी मुहिम कच्ची आबादियों और झोपड़पट्टियों में केंद्रित है.
आम आदमी पार्टी लगातार अपनी सरकार की कामयाबियों में मोहल्ला क्लीनिक, बेहतर स्कूल प्रदर्शन और उम्दा शिक्षा, सस्ती बिजली, हर मोहल्ले में अच्छी गलियां और सड़कें बनवाने जैसी सफलताओं को गिना रही है.
झोपड़पट्टियों में लोग इस बात को स्वीकार करते हैं कि दिल्ली में स्वास्थ्य, बिजली, पानी और शिक्षा का स्तर बेहतर हुआ है. कुछ विशेषज्ञों का तर्क ये है कि नागरिकता संशोधन क़ानून जैसे मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल की चुप्पी आम आदमी पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है.
शुरू में मुसलमान वोटर ‘आप पार्टी’ से मायूस ज़रूर हुआ था लेकिन अब मुसलमान समुदाय के बीच ये धारणा बनी है कि बीजेपी को हारने के लिए केजरीवाल को वोट देना उनकी मजबूरी होगी.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत जिसकी भी हो इसमें कोई दो मत नहीं है कि इसका असर राष्ट्रीय राजनीति पर असर पड़ेगा.यदि भाजपा जीतती है तो वैश्विक धरातल पर उसका राजनैतिक कद बढ़ेगा एवं भारतीय विपक्षीय दल कमजोर होंगें लेकिन यदि भाजपा सत्ता पर काबिज नहीं हो पाती है तो इसका बहुत बड़ा खामियाज़ा भाजपा को उठाना पड़ेगा इन्तजार है 11 फरवरी 2020 का भारतीय राजनीती की दिशा किस ओर जाती है।
अनिल कुमार सिंह