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 पत्रकारिता विश्वविद्यालय में वैचारिक संगठनों की दौड़ में पिसते विद्यार्थी ? भाजपा एवं कांग्रेस की नूराकुश्ती | dharmpath.com

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पत्रकारिता विश्वविद्यालय में वैचारिक संगठनों की दौड़ में पिसते विद्यार्थी ? भाजपा एवं कांग्रेस की नूराकुश्ती

July 23, 2019 4:18 pm by: Category: राज्य का पन्ना Comments Off on पत्रकारिता विश्वविद्यालय में वैचारिक संगठनों की दौड़ में पिसते विद्यार्थी ? भाजपा एवं कांग्रेस की नूराकुश्ती A+ / A-

भोपाल – पं. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भाजपा शासन में 15 वर्ष संघ एवं भाजपा की विचारधारा को बढ़ाने एवं उससे जुड़े लोगों का भला करने के कारण बदनाम और नाकारा हो गया था ,पूर्व विवादित कुलपति कुठियाला पर मुकदमा दर्ज कर जांच जारी है जिसमें अवैध नियुक्तियां,आर्थिक भ्रष्टाचार जैसे गंभीर आरोप हैं इनकी संपत्ति कुर्क करने और फरार घोषित करने की भी खबर आ रही है.

खबर यह है की सत्ता बदलाव के बाद यही काम कांग्रेस की सरकार ने शुरू कर दिया है.विश्वविद्यालय के नवीन सत्र के उदघाटन में जिन पत्रकारों को बुलाया गया उनका उद्बोधन देश के प्रतिष्ठित खबर पोर्टल भड़ास लिखता है,                                                                                                                                                                                                                    ” मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार के गठन के बाद से माखनलाल पत्रकारिता विवि का लगातार कांग्रेसीकरण किया जा रहा है. इसका असर अब विश्वविद्यालय के सत्रारंभ कार्यक्रम में भी देखने को मिला. आयोजन में मोदी विरोधियों को उद्बोधन के लिए बुलाया गया. नए छात्रों को पत्रकारिता की चुनौतियों से निपटने के नाम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को चुनौती के रूप में पेश किया गया. पूरे सत्र के दौरान मोदी को खलनायक के रूप में पेश किया गया.

पत्रकार अरफा खानम शेरवानी ने तो पूरे संबोधन में मोदी को ही मुद्दा बनाया और मोदी को पत्रकारिता के संकट के रूप में पेश किया. उन्होंने कहा कि आज मीडिया में 98 प्रतिशत लोग मोदी के गुलाम हैं.

उन्होंने कहा कि मोदी के कार्यकाल में लोकतंत्र को हाशिये पर ढकेल दिया गया है. गरीब, दलित और अल्पसंख्यकों को सताया जा रहा है. महिलाओं को प्रताड़ित किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि आज मोदी मीडिया के लिए खतरा है.

अभिसार शर्मा ने छात्रों को योगी सरकार और तत्कालीन रमन सिंह की सरकार के खिलाफ वीडियो दिखाया. अभिसार शर्मा ने तो सुरक्षाबलों के ऑपरेशन पर भी सवाल खड़े किए. छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जान हथेली पर रख कर ड्यूटी करने वाले जवानों पर सवाल कर दिए. दिलीप मंडल ने फेक न्यूज़ का पूरा दोषारोपण मोदी सरकार पर कर दिया.

इस आयोजन को लेकर भाजपा से जुड़े लोगों का कहना है कि एक एजेंडे के तहत विश्वविद्यालय के मंच का इस्तेमाल मोदी को बदनाम करने के लिए किया गया. विश्वविद्यालय के नए छात्रों को गुमराह कर केंद्र सरकार के प्रति नफ़रत फैलाने की साजिश रची गई जो विश्वविद्यालय, लोकतंत्र और भारतीय पत्रकारिता के लिए घातक है. ”

 

माखनलाल विवि संस्थान ने नए शैक्षणिक सत्र के लिए विजिटिंग फैकल्टीज के रूप में पुण्य प्रसून बाजपेयी के अलावा दिलीप मंडल, अरुण त्रिपाठी, मुकेश कुमार का भी चयन किया है. यानि ये चारों पत्रकार पत्रकारिता के छात्रों को पढ़ाएंगे, भड़ास लिखता है,. “मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आने के बाद माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के नेतृत्व में भी बदलाव हो गया. पहले संघी और भाजपाई बैकग्राउंड वाले मास्टर, टीचर, कुलपति आदि थे. अब कांग्रेसी, वापमंथी, लोकतांत्रिक, सरोकारी सोच-समझ वाले लोग यहां सक्रिय हो गए हैं”.

15 जुलाई से माखनलाल विवि का नया सत्र शुरू हो रहा है. विश्वविद्यालय ने चार वरिष्ठ पत्रकारों के साथ विजिटिंग फैकल्टी के लिए कांट्रैक्ट किया है. ये चारों अपने अपने फील्ड के चर्चित नाम हैं. पुण्य प्रसून बाजपेयी और मुकेश कुमार टीवी व प्रिंट दोनों में सक्रिय रहे हैं. दिलीप मंडल प्रिंट मीडिया में सक्रिय रहे हैं और सोशल मीडिया पर काफी चर्चित हैं. अरुण त्रिपाठी अखबारों में काम करने के अलावा शोध व अधायपन का कार्य लगातार करते रहते हैं.
विश्वविद्यालय में अतिथि व्याख्याताओं की नियुक्ति भी विवादों के घेरे में हैं जो पढ़ाएंगे उन पर मोदी विरोधी होने का ठप्पा चुनावों के दौरान लगा हुआ है लेकिन उनकी नियुक्तिओं ने भाजपा एवं संघ समर्थकों को मुखर होने का मौक़ा दे दिया है की वैचारिक विरोधियों को विश्वविद्यालय आगे बढ़ा रहा है यहां वे यह बिलकुल ही भूल जाते हैं की उन्होंने ही इस परम्परा को पाला -पोसा और आज उसी के विरोध में मुखर हो रहे हैं.

खरी न्यूज़ डाट काम के सम्पादक विनय द्विवेदी का मानना है की पूर्व में जो नियुक्तियां हुई थीं उनमें अधिकाँश वैचारिक संगठन के लोग थे जिन्हें पत्रकारिता का या उसके अध्यापन का अनुभव नहीं था उनकी योग्यता वैचारिक संगठन से जुड़ा होना थी ,उसके विपरीत आज नियुक्त लोगों पर वैचारिक सोच का आरोप नहीं लगाया जा सकता है अरुण त्रिपाठी जहाँ गांधीवादी-समाजवादी चिंतक हैं वहीँ उन्होंने कई पत्रों का सम्पादन भी किया है ,वर्धा युनिवर्सिटी में वर्षों उन्होंने पत्रकारिता विषय पर अध्यापन किया है,वहीँ अरफ़ा खानम शेरवानी पिछले दो दशकों से पत्रकारिता से जुडी हुयी हैं,ईराक और अफगानिस्तान युद्ध भी इन्होने कवर किया था।

विभागीय मंत्री पीसी शर्मा से बात करने की कोशिश की गयी लेकिन उनके सहायक ने आश्वासन के बाद भी बात नहीं करवाई,वहीँ विश्वविद्यालय के कुलपति ने भी फोन नहीं उठाया . जहाँ भाजपा एवं संघ से जुड़े लोग वैचारिक लोगों को फेकल्टी बनाये जाने का आरोप मढ़ रहे हैं वहीँ भाजपा स्वयं इस तरह की कारगुजारी से दो-चार विश्वविद्यालय को पहले ही कर चुकी है ,देखना है छात्रों के भविष्य का क्या होता है इस खींचतान में और वैसे पत्रकारिता की पढ़ाई के सूरते हाल तो पूर्व में ही बिगाड़ी जा चुकी है।

 

अनिल कुमार सिंह (धर्मपथ के लिए)

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