सोनभद्र (उत्तर प्रदेश), 23 जुलाई (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सोनभद्र हत्याकांड मामले की जांच के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति की जांच अटक गई है।
जिला राजस्व कार्यालय से 1955 के महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब हो गए हैं। जिला अधिकारी अंकित अग्रवाल ने पुष्टि करते हुए कहा कि दस्तावेज नहीं मिले हैं।
अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व विभाग) की अगुआई वाले पैनल को यह जांच करनी थी कि कैसे तीन गांवों- उभा, सपाई और मूर्तिया में ग्राम सभा की जमीन एक समिति के नाम कर दी गई थी और इसके बाद ग्राम प्रधान ने इस पर कब्जा कर लिया था।
निचली अदालत में तीनों गांवों के गोंड आदिवासियों की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता नित्यानंद द्विवेदी ने कहा कि जमींदारी प्रथा के अंत के बाद बधार के राजा आनंद ब्रह्म साहा की 600 बीघा जमीन को राजस्व विभाग में बंजर घोषित कर दिया गया और इसे ग्राम सभा की भूमि के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया जिसे खेती करने के लिए गोंड आदिवासियों को दिया गया।
साल 1952 में आईएएस अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा मिर्जापुर में तैनात थे। उन्होंने एक आदर्श सहकारी समिति लिमिटेड नाम की एक समिति बनाई, और बिहार के मुजफ्फरपुर निवासी अपने ससुर महेश्वरी प्रसाद सिन्हा को इसका अध्यक्ष तथा अपनी पत्नी आशा मिश्रा को पदाधिकारी बनाया।
इसके बाद 17 दिसंबर 1955 को लगभग 463 बीघा जमीन समिति के नाम स्थानांतरित हो गई, जिसके दस्तावेज गायब हो गए हैं।
सिन्हा की मौत होने तक जमीन उनके नाम पंजीकृत थी। छह सितंबर 1989 को 200 बीघा जमीन सिन्हा की बेटी आशा मिश्रा और पोती विनीता के नाम कर दी गई, जिन्होंने 144 बीघा जमीन दो करोड़ रुपये में ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त गुर्जर को बेच दी।
सोनभद्र के जिला अधिकारी अंकित अग्रवाल ने कहा, “हमारे पास 1995 की फाइल को छोड़कर सभी संबंधित दस्तावेज हैं।” उन्होंने कहा कि फाइल सोनभद्र के राजस्व विभाग में जमा नहीं कराई गई थी, जो 1989 में मिर्जापुर से निकाल कर अलग किया गया था।
गौर करने वाली बात है कि 1955 के दस्तावेजों के आधार पर योगी आदित्यनाथ ने जमीन विवाद के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया है।
उन्होंने कहा था, “कांग्रेस इन सबके लिए जिम्मेदार है क्योंकि यही पार्टी 1955 तथा 1989 में सत्ता में थी।”