भोपाल :
मध्यप्रदेश में अनुसूचित-जनजाति और अन्य परम्परागत वन-निवासियों को उनकी काबिज भूमि पर अधिकार-पत्र सौंपने का कार्य वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत तेजी से किया जा रहा है। प्रदेश में अब तक अधिनियम के अंतर्गत वन अधिकार समितियों द्वारा सत्यापित दावों का 99.98 प्रतिशत निराकरण किया जा चुका है। प्रदेश में 2 लाख 66 हजार 208 मान्य दावों में से 2 लाख 55 हजार 152 दावेदारों को उनकी काबिज भूमि के हक प्रमाण-पत्र वितरित किये जा चुके हैं। शेष 11 हजार 56 दावेदारों के हक प्रमाण-पत्रों के वितरण की प्रक्रिया प्रचलन में है।
वन अधिकार अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये प्रदेश के सभी जिलों में ग्राम-स्तर पर ग्राम वन अधिकार समिति, उपखण्ड-स्तर पर उपखण्ड-स्तरीय वन अधिकार समिति और जिला-स्तर पर जिला-स्तरीय वन अधिकार समिति का गठन किया गया है। उल्लेखनीय है कि वन अधिकार समिति, ग्रामसभा एवं उपखण्ड-स्तर पर गठित समिति द्वारा सत्यापित दावों का 100 प्रतिशत निराकरण किया गया है। केवल जिला-स्तर पर 122 दावों का निराकरण लंबित है, जिसे अतिशीघ्र निराकृत कर लिया जायेगा।
वन अधिकार अधिनियम-2006 एवं नियम 2008 के तहत 31 मई, 2019 तक प्रदेश में कुल 6 लाख 26 हजार 511 दावे प्राप्त हुए। इसमें 5 लाख 84 हजार 457 व्यक्तिगत और 42 हजार 54 सामुदायिक दावे शामिल हैं। कुल प्राप्त दावों में अन्य परम्परागत वर्ग के 26.39 प्रतिशत, आदिवासी वर्ग के 73.61 और वन अधिकार समितियों द्वारा सत्यापित, ग्रामसभा द्वारा पारित संकल्प, उपखण्ड समितियों द्वारा प्रस्तुत दावे शामिल हैं। जिला स्तर पर 122 लंबित दावों में से 118 अजजा और 2-2 अन्य परम्परागत वर्ग के और सामुदायिक दावे हैं। जिला-स्तरीय समितियों द्वारा निरस्त दावों की संख्या 3 लाख 60 हजार 181 और मान्य दावों की संख्या 2 लाख 66 हजार 208 है। मान्य दावों में से 2 लाख 55 हजार 152 में हक प्रमाण-पत्र वितरित किये जा चुके हैं। शेष 11 हजार 56 हक प्रमाण-पत्र वितरण की कार्यवाही तेजी से की जा रही है। डिण्डोरी जिले में विशेष पिछड़ी जनजाति समूह के बैगा जनजाति की 7 बसाहटों में हैबीटेट राइट्स दिये गये हैं। इस मामले में मध्यप्रदेश देशभर में अग्रणी है।