नई दिल्ली, 12 जून (आईएएनएस)। आईएलएंडएफएस स्कैंडल जारी है और एसएफआईओ कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के तहत इसकी जांच कर रही है, जिससे बहुत चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसमें अब ऑडिट समिति की संदिग्ध भूमिका की जांच जारी है, साथ ही निदेशक मंडल की गलत और कुटिल कार्यप्रणाली संदेह के घेरे में है।
इसके साथ ही आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) की भूमिका भी सवालों के घेरे में है, जिसमें निदेशक मंडल पर पर्याप्त निगरानी नहीं बनाए रखी गई। आईएएनएस ने अपनी स्टोरीज की सीरीज में पहले भी आरबीआई की भूमिका को लेकर सवाल उठाए हैं। इसका नतीजा है कि एसएफआईओ और आरबीआई के बीच एक युद्ध की संभावना है। एसएफआईओ जहां एमसीए के तहत आता है, जो कि वित्तमंत्री को ही दोहरी जिम्मेदारी के तहत मिला है। वहीं, आरबीआई खुद को एक स्वायत्त संस्था मानता है।
नवनियुक्त वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को ऐसे में दोनों के बीच अंपायर की भूमिका निभानी होगी।
जांच से पता चलता है कि निदेशक मंडल के अध्यक्ष रवि पार्थसारथी ने संकेत दिया था कि चूंकि समूह मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे में लगा हुआ था और बैंक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए अनिच्छुक थे, इसलिए मार्च 2017 तक आरबीआई के अवलोकन के अनुसार समूह के जोखिम को कम करना मुश्किल होगा।
एसएफआईओ की जांच से पता चलता है, “कंपनी ने इसके अलावा आरबीआई के डिप्टी गवर्नर एस. एस. मुंधरा को भी मई 2017 में आरबीआई की परिभाषा का पालन करने में कठिनाई आने और उनसे इस मामले को देखने के लिए पत्र लिखा था। ऑडिट समिति/निदेशक मंडल को हमेशा बताया गया कि वे आरबीआई के साथ लगातार बातचीत कर रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि समूचा मामला जल्द ही सुलझ जाएगा।”
संयोग से सीजर की पत्नी की तरह की आरबीआई की भूमिका सभी तरह के संदेह से परे होनी चाहिए। लेकिन जब वित्त वर्ष 2015-16 का निरीक्षण ऑडिट/निदेशक मंडल के समक्ष दिसंबर 2017 में रखा गया, तब आरबीआई ने सलाह दी थी –
– आरबीआई ने परिभाषित किया था कि समूह के आगे कोई जोखिम नहीं है।
-आरबीआई ने समूह के जोखिम को कम करने की सलाह दी और इस संबंध में योजना प्रस्तुत करने को कहा।
– समूह ने जोखिम को कम करने के लिए कई विकल्प आरबीआई के समक्ष पेश किए, जिसमें 2020/2021 तक कुछेक कारोबार को बेचना, कर्ज की मैच्योरिटी को पूरा होना, कर्ज को दोबारा वित्तपोषित करना, और ऋण की परिपक्वता, ऋण की पुनर्वित्तीकरण और प्राप्य से वसूली शामिल है।
उपयुक्त तथ्यों के आलोक में जांच से निष्कर्ष निकलता है कि ऑडिट समिति पंजीकृत एनबीएफसीज के संबंध में आरबीआई के संबंधित प्रावधानों के साथ कंपनी अधिनियम के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रही।
ऑडिट समिति एक स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से खुद को संचालित करने में विफल रही थी। यह कंपनी के प्रबंधन के खिलाफ लगाए गए आरोपों के मामलों की स्वतंत्र जांच कराने में विफल रहा था। ऑडिट समिति बाहरी स्रोतों से कोई पेशेवर सलाह लेने में विफल रही थी। वह आरबीआई के निदेशरें का पालन करने में विफल रही थी और प्रबंधन के रुख का कठोरता से पालन किया था जो गैरकानूनी और अवैध था।