नई दिल्ली, 29 मई (आईएएनएस)। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात पर अड़े हुए हैं कि वह अपना इस्तीफा वापस नहीं लेंगे। इसके साथ ही वह पार्टी के पुराने नेता अशोक गहलोत, कमलनाथ और पी. चिदंबरम से काफी खफा हैं, जिन्होंने हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में अपने बेटों को जीत दिलाने का प्रयास किया और पार्टी के लिए काम नहीं करते दिखे।
हालांकि अब यह माना जा रहा है कि राहुल ने यह स्वीकार कर लिया है कि वह लोकसभा में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करेंगे, जहां पार्टी ने इस बार 52 सीटें जीती हैं, जोकि पिछली बार की सीटों की तुलना में केवल आठ ज्यादा है। सोनिया गांधी संप्रग की अध्यक्ष बनी रहेंगी और परिवार खुद को पार्टी के रोजाना की गतिविधियों से दूर रहेगा।
गांधी परिवार के तीनों सदस्य -सोनिया, राहुल और प्रियंका- पार्टी की रोजाना की गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे। एक अंतरिम कार्यकारी अध्यक्ष और दो या इससे ज्यादा उपाध्यक्ष एक अध्यक्ष-मंडल का निर्माण करेंगे, जो पार्टी का संचालन करेगा और चुनाव व प्रचार की योजना बनाएगा।
के.सी. वेणुगोपाल अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर, जबकि पृथ्वीराज चौहान उपाध्यक्षों में से एक के तौर पर उभर सकते हैं।
यह देखते हुए कि दक्षिण से इसबार 23 सांसद चुन कर आए हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिण भारत इस समय कांग्रेस के लिए सहारा बना हुआ है। या फिर अतीत को भूलाते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त करे और सचिन पायलट, मिलिंद देवड़ा और अन्य युवाओं को साथ लेकर वह पार्टी के भाग्य बदलने का काम करें।
कांग्रेस ने पूरे देश में 421 उम्मीदवारों को उतारा था, लेकिन इसमें से केवल 52 ही जीत सके। यह लगातार दूसरी बार है, जब पार्टी ने इतना खराब प्रदर्शन किया है। कांग्रेस ने सबसे अधिक 15 सीटें केरल में और पंजाब व तमिलनाडु में आठ-आठ सीटें जीती हैं।
चुनाव में हारने वाले नेताओं में कांग्रेस कार्यकारिणी में शामिल चार नेता भी हैं, जोकि पार्टी की शीर्ष निर्णय लेने वाली इकाई है।
लेकिन पार्टी की युवा शक्ति पार्टी के पुराने सिपाही को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए प्रतिबद्ध है। पायलट और सिंधिया राहुल के ‘क्लीन अप’ प्रयास में साथ देने के लिए सबसे आगे हैं। सूत्रों ने कहा कि लोकसभा हार के बाद सीडब्ल्यूसी बैठक में राहुल ने पार्टी के पुराने नेताओं पर निशाना साधा था।
हार का स्वाद चखने वाले युवा नेताओं को कोई खतरा नहीं है। वास्तव में पायलट और सिंधिया को राहुल गांधी के बदले पार्टी का चेहरा के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस राजस्थान में लगातार दूसरी बार सभी सीटें हार गई और मध्यप्रदेश में भी उसे हार का सामना करना पड़ा। खुद सिंधिया भी गुना से हार गए। लेकिन युवा नेताओं को लगता है कि यह पार्टी पर नियंत्रण स्थापित करने का अच्छा मौका है।