नई दिल्ली, 27 मई (आईएएनएस)। भाजपानीत सरकार लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए अस्तित्व में आने जा रही है, ऐसे में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर उस पर दबाव बनाना चाह रहे हैं। संघ परिवार में इस बात को लेकर नाखुशी और बेसब्री दिख रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पांच साल के पहले कार्यकाल में यह मसला अनसुलझा रहा।
मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से इस मुद्दे पर एक बार को छोड़कर कभी प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कहा। इस साल जनवरी में एक साक्षात्कार में पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए।
भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में कहा था कि संविधान के दायरे में रहकर वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की सभी संभावनाओं को खंगालेगी।
पांच साल के कार्यकाल में मोदी सरकार यह कहती रही कि मामले का या तो कानूनी समाधान होगा या फिर बातचीत के द्वारा। लेकिन, भाजपा का यह रुख न तो संघ परिवार के गले उतरा न ही सहयोगी शिवसेना के जिसने लगातार यह बात उठाई कि मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक मामले में जिस तरह अध्यादेश लाया गया, वैसा ही अध्यादेश मंदिर मामले में क्यों नहीं लाया जाता।
जनवरी में साक्षात्कार में जब मोदी से मंदिर पर अध्यादेश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस बारे में तब ही सोचा जा सकता है जब कानूनी प्रक्रिया पूरी हो गई हो या अदालत ने अपना फैसला दे दिया हो। उन्होंने कहा था कि तीन तलाक पर अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद लाया गया।
इसी तरह संघ और अन्य हिन्दुत्ववादियों को तब निराशा महसूस हुई जब एक मई को चुनाव प्रचार के लिए अयोध्या पहुंचे मोदी ने रामलला के दर्शन नहीं किए। उन्होंने जयश्री राम का नारा तो लगाया लेकिन मंदिर निर्माण के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा।
2019 के घोषणापत्र में भी भाजपा ने कहा है कि राम मंदिर निर्माण की सभी संभावनाओं को तलाशा जाएगा।
लेकिन, संघ की बेचैनी अब सामने आने लगी है।
रविवार को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने उदयपुर में कहा कि ‘राम का काम करना है, राम का काम होकर ही रहेगा।’ उनका इशारा इसी तरफ था कि जहां बाबरी मस्जिद का ध्वंस हुआ था वहीं पर भव्य राम मंदिर निर्माण होकर रहेगा।