नई दिल्ली, 16 मई (आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव के सातवें एवं अंतिम पड़ाव पर पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को महसूस होने लगा है कि भाजपा के ध्रुवीकरण के प्रयासों और शायद वाम मोर्चे की कीमत पर भाजपा को राज्य में जमीनी स्तर पर मजबूती मिलती दिख रही है।
राज्य में लोकसभा की कुल 42 सीटों में से बची हुई नौ सीटों पर रविवार को मतदान होना है। पिछले चुनाव में सत्ताधारी तृणमूल के खाते में कुल 34 सीटें आईं थी लेकिन इस बार पार्टी उसी तरह के प्रदर्शन को लेकर आश्वस्त नहीं है।
टीएमसी के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो इस बार वामपंथ समर्थक रहे मतदाताओं की अहम भूमिका होगी जोकि निर्धारित करेंगे कि ममजा बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी इस चुनाव में कैसा प्रदर्शन कर पाती है।
2014 के लोकसभा चुनावों में टीएमसी का कुल वोट शेयर 39.05 प्रतिशत रहा था जोकि इससे पहले हुए चुनाव से 8.13 प्रतिशत अधिक था। वहीं भाजपा को 2014 में 17.02 प्रतिशत वोट मिले थे जोकि 2009 के चुनाव से 10.88 प्रतिशत अधिक थे।
इस बार टीएमसी प्रदेश में 30 सीटें जीतने की उम्मीद कर रही है, मगर यह भी महसूस किया जा रहा है कि अगर 10 प्रतिशत लेफ्ट वोटर भी भाजपा के पाले में गए तो टीएमसी की सीटें 25 तक भी सिमट सकती हैं। इसका मतलब यह होगा कि पार्टी को पिछली बार के मुकाबले कुल 19 सीटों का नुकसान झेलना पड़ सकता है।
पार्टी में यह राय पाई जा रही है कि वामपंथी नेता खुद ही अपने समर्थकों से भाजपा के लिए मतदान करने के लिए कह रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वाममोर्चा, टीएमसी को हराने की स्थिति में नहीं है और इस मामले में भाजपा की स्थिति बेहतर है।
टीएमसी में यह राय पाई जा रही है भाजपा के ध्रुवीकरण के प्रयासों से उसे 15 हिदू बहुल इलाकों में फायदा हो सकता है और वह दस सीट तक जीत सकती है।
इस बार चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न स्थानों पर हिंसा हुई है और प्रदेश बहुत बुरे दौर का गवाह बना है। हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रैली के दौरान भी ऐसी ही हिंसा देखने को मिली। बंगाल के महापुरुष ईश्वर चंद्र विद्यासागर की प्रतिमा इस हिंसा में तोड़ दी गई।
इसके बाद चुनाव आयोग ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार को एक दिन पहले ही, गुरुवार रात दस बजे से रोक देने का आदेश दिया।