भारत सरकार ने देश की प्राचीन चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने के लिए खास मुहिम की शुरुआत की है. भारत की नजर अरबों डॉलर के समग्र दवाओं के बाजार पर है.
भारत कैंसर से लेकर जुकाम तक के प्राकृतिक उपचार का दावा करता आया है लेकिन नेताओं का कहना है दुनिया में वैकल्पिक चिकित्सा की जिस तरह से मांग बढ़ी है वह उसे भुनाने में नाकाम रहा है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद शाकाहारी हैं और रोजाना योग करते हैं और कह चुके हैं कि वे चाहते हैं कि दुनिया आयुर्वेद को जीने का तरीका बनाए. ऐसा होने से बढ़ते हुए समग्र चिकित्सा के वैश्विक बाजार में भी भारत की हिस्सेदारी बढ़ेगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की जोरदार वकालत करने के बाद अपनी सरकार में आयुष का अलग मंत्रालय बनाया है, जिसमें योग सहित अन्य प्राचीन स्वास्थ्य पद्धतियां आती हैं.
हाल ही में मोदी ने अपने मंत्रिपरिषद का विस्तार करते हुए राज्य मंत्री श्रीपद यसो नायक को आयुष का स्वतंत्र प्रभार सौंपा है. आयुष के तहत आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी आते हैं. पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हाल ही में आयुर्वेद पर एक सम्मेलन में कहा, “आप जो चाहे कहें, आयुर्वेदिक दवाएं, हर्बल दवाएं या पारंपरिक दवाएं, आज इसका अनुमानित वैश्विक बाजार एक सौ अरब डॉलर का है. भारत का हिस्सा बहुत कम है क्योंकि गुणवत्ता मानकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुरूप बरकरार नहीं रखा जा सका है. सरकार ने इस कमी को संबोधित करने का फैसला किया है.”
आयुर्वेद का बड़ा बाजार
आलोचकों का कहना कि रोगों के लिए आयुर्वेद उपचार का कोई सिद्ध उपचारात्मक गुण नहीं है, बजाय इसके यह प्रयोगिक औषध के रूप में काम करता है. दिल्ली स्थित चिकित्सक पीके गोयल के मुताबिक, “यह अंधविश्वास की तरह है. आपके दिमाग में है कि वह मदद करता है. लेकिन असल जिंदगी में आपको वास्तविक फार्मा दवाओं की जरूरत होगी.”
लेकिन मोदी कहते आए हैं कि आयुर्वेदिक दवाओं को आधुनिक चिकित्सा के पूरक के रूप में देखा जाना चाहिए. वे कहते हैं, “अगर कोई आयुर्वेद को अपना लेता है तो वह खुदको कई संक्रमणों से सुरक्षित रख पाएगा. पहले स्वास्थ्य जीवन का एक हिस्सा था, लेकिन हमने स्वास्थ्य को आउटसोर्स कर दिया है. हम कभी एक डॉक्टर से सलाह लेते हैं तो कभी दूसरे से.”
भारत में घरेलू कंपनियां डाबर, इमामी और हिमालय ग्रुप हर्बल प्रोडक्ट्स बनाने के मामले में आगे हैं. कंपनियां अत्याधुनिक तकनीक के साथ प्राचीन पारंपरिक चिकित्सा को मिलाकर गोलियां, क्रीम और तेल बना रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक भारत की 65 फीसदी आबादी आयुर्वेदिक उपचारों का इस्तेमाल करती है, ज्यादातर ऐसा आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाएं तक पहुंच नहीं होने के कारण करती हैं.
dw.de से