नई दिल्ली, 5 फरवरी (आईएएनएस)। एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि हजारों योग्य अभ्यर्थियों के होने के बावजूद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद(आईसीएआर) ने अखिल भारतीय कोटे में से गत चार वर्षो के दौरान 2,500 से ज्यादा सीटें खाली छोड़ रखी है।
भारत में कृषि शिक्षा को समन्वित करने के लिए आईसीएआर कृषि मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त संस्था है। यह प्रवेश के लिए अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा(एआईईईए) के जरिए कृषि और इससे संबद्ध गतिविधियों(पशु चिकित्सा विज्ञान को छोड़कर) के क्षेत्र में स्नातक(यूजी) और परास्नातक(पीजी) के लिए पूरे देश में अपने सरकारी संस्थानों के लिए परीक्षाएं आयोजित करवाता है।
इन संस्थानों/विश्वविद्यालयों में यूजी की 15 प्रतिशत सीटों और पीजी की 25 प्रतिशत सीटों के लिए प्रवेश परीक्षाएं आयोजित की जाती है। कुछ संस्थान ऐसे भी हैं, जहां एआईआईए के तहत 100 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं।
सूचना के अधिकार(आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी के जवाब के अनुसार, इन संस्थानों/विश्वविद्यालयों में बीते चार वर्षो में यूजी व पीजी की सीटों को मिलाकर कुल 2,558 सीटें खाली छोड़ दी गईं। इसके लिए अंतिम बार परीक्षा 2018 में आयोजित की गई थी।
अलग-अलग आंकड़ों पर गौर करें तो, पीजी पाठ्यक्रमों के लिए कुल 1,095 सीटें छोड़ी गईं और यूजी पाठ्यक्रमों के लिए 1,463 सीटें छोड़ी गईं।
इसके अलावा, परिषद को छात्रों से काउंसिलिंग के लिए एकत्रित किए गए लाखों रुपये को वापस लौटाना है।
2018 में, पूरे भारत में स्नातक की कुल 1954 सीटों के लिए कुल 25,246 अभ्यर्थियों ने 2000 रुपये देकर काउंसिलिंग के लिए खुद को पंजीकृत करवाया।
10 दिसंबर, 2018 को प्राप्त आरटीआई के जवाब में यह खुलासा हुआ है कि जिन्हें दाखिला नहीं दिया गया, उन अभ्यर्थियों को आईसीएआर को 4,52,34000 रुपये लौटाने हैं। आईसीएआर को परास्नातक अभ्यर्थियों(9,447) को कुल 1,31,36000 रुपये लौटाने हैं।
सूचना प्रपत्र में पैसे लौटाने की समयसीमा का वर्णन नहीं किया गया है।
इस आरटीआई के आवेदक चंद्रशेखर गौर हैं, जिन्होंने आईएएनएस से कहा, “हजारों योग्य उम्मीदवार हैं, जिन्हें दाखिला दिया जाना चाहिए था। लेकिन आईसीएआर ने इन रिक्तियों को भरने का काम राज्यों को दे दिया, जिन्होंने जरा-सी भी परवाह नहीं की।”
दाखिला प्रक्रिया के तहत चयनित अभ्यर्थियों का ऑनलाइन काउंसिलिंग होता है, जिन्हें विश्वविद्यालय और पाठ्यक्रमों को चुनने का विकल्प दिया जाता है, लेकिन कॉलेज चुनने का विकल्प नहीं दिया जाता। इस प्रक्रिया के तहत कई तरह की काउंसिलिंग होती है।
आईसीएआर के सूचना प्रपत्र में कहा गया है कि अगर काउंसिलिंग के चरणों के बाद सीट नहीं भर पाती है तो इन सीटों को भरने का काम विश्वविद्यालय करेंगे।
गौर आईसीएआर के सूचना प्रपत्र के इस उपनियम पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि अगर सरकार ने परीक्षा करवाने का जिम्मा अपने ऊपर लिया है, तो उसे ही इन सीटों को भरने का दायित्व लेना चाहिए, जिसमें हर वर्ष हजारों छात्र शामिल होते हैं।
उन्होंने कहा, “काउंसिलिंग के बाद मॉपिंग-अप चरण होना चाहिए और उसके बाद भी कोई सीट खाली रह जाती है तो इसे स्पॉट काउंसिलिंग के जरिए भरना चाहिए। वे इस तरह से इसपर अपना हाथ नहीं झाड़ सकते।”
राज्य विश्वविद्यालय की परीक्षा में शामिल होने के बदले कई अभ्यर्थियों का एआईईईए की परीक्षा में बैठने का निर्णय लेने की मुख्य वजह यह है कि एआईईईए के तहत अभ्यर्थियों को दूसरे राज्यों के विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने का अवसर मिलता है।
आईसीएआर के महानिदेशक त्रिलोचन मोहापात्रा ने इस संबंध में आईएएनएस के ईमेल प्रश्नों के जवाब नहीं दिए।