नई दिल्ली, 6 जनवरी (आईएएनएस)| दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को राज्य सरकार से आम आदमी पार्टी (आप) की याचिका पर जवाब देने के लिए कहा है। आप ने न्यायालय में लोगों की सहमति से उनके घरों में लगाए गए पार्टी के पोस्टरों को हटाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी थी। न्यायालय ने कहा कि पुलिस और दिल्ली नगर निगम को दिल्ली संपत्ति विरूपकरण रोकथाम (डीपीडीपी) अधिनियम के तहत घरों से पोस्टर हटाने से बचना चाहिए।
आम आदमी पार्टी की याचिका में दिल्ली के लोगों की सहमति के बाद उनके घर से चुनाव प्रचार संबंधी सामग्री न हटाने के लिए दिशा-निर्देश की मांग की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति आर.एस. एंडलॉ की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से सवाल किया कि अगर हर घर पर पोस्टर हुए तो क्या होगा?
यचिकाकतर्ता के वकील प्रशांत भूषण से अदालत ने कहा, “डीपीडीपी का उद्देश्य है कि जब आप सड़क पर चलें तो दृश्य सुंदर लगना चाहिए। अगर हर घर पर पोस्टर लगा होगा तब क्या होगा?”
भूषण ने अदालत से कहा कि लोगों को पोस्टर लगाने से रोकना अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन होगा।
उन्होंने आग्रह किया, “यह नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है और चूंकि चुनाव पास हैं, इसलिए यह प्रतिबंध तत्काल हटा देना चाहिए।”
न्यायालय की पीठ ने हालांकि, सवाल किया कि अभिव्यक्ति की आजादी की स्वतंत्रता का उल्लंघन कैसे हो रहा है?
अदालत ने कहा, “पोस्टर और बैनर लोगों के देखने के लिए होते हैं, खुद के लिए नहीं। आपकी अभिव्यक्ति की आजादी का हनन कैसे और क्यों हो रहा है? सरकार इसका जवाब दे।”
17 अक्टूबर 2013 को याचिकाकर्ता को अपने जवाब में निर्वाचन आयोग ने कहा था कि निजी संपत्ति पर, स्वयंसेवकों या समर्थकों के घरों पर बैनर और पोस्टर लगाना डीपीडीपी अधिनियम के तहत निषिद्ध है।