नई दिल्ली, 1 जनवरी – राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान (नीति) आयोग के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे। राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपाल इसके शासकीय परिषद में होंगे। आयोग के लिए 13 लक्ष्य तय किए गए हैं। आयोग के तहत क्षेत्रीय मुद्दों के लिए निश्चित अवधि वाले क्षेत्रीय पारिषदों का गठन किया जाएगा।
एक बयान के मुताबिक क्षेत्रीय आयोग का गठन प्रधानमंत्री करेंगे। इसमें संबंधित क्षेत्र के राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपाल होंगे। क्षेत्रीय आयोग की अध्यक्षता नीति आयोग के अध्यक्ष या उसके द्वारा नामित व्यक्ति करेंगे।
क्षेत्रीय आयोग में प्रासंगिक क्षेत्र के विशेषज्ञों को भी प्रधानमंत्री के आमंत्रण पर सदस्य बनाया जाएगा।
क्षेत्रीय आयोग में प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त एक उपाध्यक्ष और पूर्णकालिक सदस्य होंगे, जिनकी संख्या निश्चित नहीं की गई है।
प्रदेश सदस्य के तौर पर विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों या संबंधित संस्थानों से अधिकतम दो अंशकालिक सदस्य होंगे। अंशकालिक सदस्यों की नियुक्ति चक्रीय आधार पर होगी।
केंद्रीय मंत्रिमंडल से अधिकतम चार का मनोनयन पदेन सदस्य के तौर पर प्रधानमंत्री करेंगे।
प्रधानमंत्री केंद्र सरकार के सचिवों में से एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति करेंगे। जरूरत होने पर इसका सचिवालय भी बनाया जा सकता है।
नीति आयोग के निम्नलिखित 13 लक्ष्य होंगे :
– राष्ट्रीय विकास की एक साझा दृष्टि तैयार करना। इसके आधार पर एक राष्ट्रीय एजेंडा तैयार किया जाएगा, जिसपर प्रधानमंत्री तथा मुख्यमंत्री प्रमुखता से ध्यान देंगे।
– सहयोगात्मक संघवाद का विकास करना।
– गांव स्तर पर व्यावहारिक योजना बनाने की एक पद्धति का विकास और इससे सरकार के ऊपरी स्तर के लिए कार्ययोजना का विकास।
– आर्थिक रणनीति और नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना।
– हाशिए पर रह गए लोगों पर विशेष ध्यान देना।
– रणनीति तैयार कना, दीर्घकालिक योजना और कार्यक्रम बनाना और जरूरत पड़ने पर बीच में उसका संशोधन करना।
– परामर्श देना और महत्वपूर्ण संस्थानों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना।
– ज्ञान, नवाचार और उद्यमिता सहयोग प्रणाली का विकास करना।
– विकास कार्य में तेजी लाने के लिए विभिन्न विभागों और क्षेत्रों के बीच विवाद निपटारा के लिए मंच के रूप में काम करना।
– सुशासन और सर्वोत्तम कार्य-पद्धतियों पर अत्याधुनिक ज्ञान केंद्र का विकास करना और संबंधित पक्षों तक उसका प्रसार करना।
– कार्यक्रमों का सक्रिय पर्यवेक्षण और मूल्यांकन करना और उसकी सफलता के लिए जरूरी सहयोग करना।
– कार्यक्रम लागू करने के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन और क्षमता निर्माण करना।
– राष्ट्रीय विकास एजेंडे और उपर्युक्त मकसदों के कार्यान्वयन के लिए और भी जो कुछ जरूरी हो करना।