अनिल श्रीवास्तव-झाबुआ — आज कल आम लोगों को इस भौतिकता के युग में आध्यात्मक एवं धर्म के प्रति जागृति का अभाव दिखाई दे रहा है । टेलीविजन के प्रभाव से सभी लोगों विषेष कर युवा वर्ग के विचार पथ भ्रष्ट हो रहे हैै। मानव जीवन में मोक्ष एवं परमार्थ जैसी भावना विलुप्त सी हो रही है । दिन रात इलेक्ट्रानिक मीडिया एवं चैनलों से सेक्स, हिंसा, क्रुरता, गुंण्डा गिर्दी ही परोस रहे है जिसके कारण युवा वर्ग की मानसिक विकृति भी उसी अनुसार ढल रही है । टेलीविजन, मोबाईल, वाट्सअप,इंटरनेट, चंेटिंग आदि आदि सोष्यल मीडिया के माध्यम से समाज में अच्छा संदेष नही पहूंच पा रहा है । हालांकि मीडिया महत्वपूर्ण एवं शक्तिषाली माध्यम है और मीडिया से ही लोग सर्वाधिक प्रभावित होते है । इस लिये आवष्यक है कि नववर्ष 2015 में दुनिया को मानवता के साथ ही एकता एवं साम्प्रदायिक सौहार्द्रता, परस्पर भाई चारे की भावना का विस्तार हो, और भारतीय संस्कृति का ज्यादा से ज्यादा कवरेज मीडिया के माध्यम से हो और देष में फिर से हम सत्य,धर्म,षांति,प्रेम,अहिंसा से परिपूर्ण समाज के नव निर्माण में अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकें । उक्त प्रेरक संदेष स्थानीय बावन जीनालय में पूज्य गुयदेव आगमप्रज्ञ जम्बुविजय जी मसा के षिष्य धर्मचंद्रविजय जी मसा के सुषिष्य पुण्डरीकरत्नजी मसा ने नववर्ष के आगमन पर युवापीढी के लिये देते हुए कही । स्थानीय बावन जीनालय में पूज्य पुण्डरिकरत्न जी मसा एवं ठाणा 5 ने अपने गुरूदेव जम्बुविजय जी मसा ने बताया कि उनके गुरूदेव जम्बुविजय जी मसा दर्षनषासत्र के प्रकाण्ड विद्वान होकर 15 भाषाओं के ज्ञाता थे । आडंबर से कोसों दूर रहने वालें इस महापुरूष के पास जापान, जर्मनी,ईटली,योरप आदि से कई स्कालर इण्डालाजी अर्थात विविध दर्षनषास्त्रों की षिक्षा ग्रहण करने के लिये आते रहते थे पोलेंड के वार्सो विष्वविद्यालय के वे मानद प्रेसिडेंट थे । सर्वधर्म परिषद से संबंद्ध होकर सर्वधर्म की एकता के हमेषा से हिमायती रहे है । इसी लिये जैन धर्म के चारों सम्प्रदाय में वे आदर की दृष्टि से देखते जाते थे । उनके द्वारा संपादित संषोधित ग्रंथों का स्कालर यहां आकर अध्ययन करते थे । वे हमषा छोटे छोटे गा्रमों में ही चातुर्मास करते थे । वे पांच योगों के धनि थे प्रथम भक्ति योग, दुसरा गुरूभक्ति, तीसरा श्रुत ज्ञान, चैथा मातृ एवं पितृ भक्ति मे वे बेजोड रहे है । नाकोडा से जैसलमेर में प्राचिप लिखित ग्रंथागार जहां तालपत्रियों पर हस्तलिखित प्राचिन साहित्य उपलब्ध है उसकी सुरक्षा व्यवस्था के सिलसिले में जारहे थे कि उनका नाकोउा से 45 किलो मीअर बायतु गा्रम से 11 किलोमीअर आगे कार से जोरदार टक्कर लगने से उनका देहावसान हो गया था ।हालांकी जिस मार्ग से वे जारहे थे वह मिलिट्री रोउ होकर चहल पहल कम होने के बाद भी साजिषवष उनकी संभवतया हत्या कर दी गई है । जिसकी जांच होना चाहिये । मुनि श्री पुण्डरिकरत्न ने आगे बताया कि युवाओं में आज कल धर्माचरण के प्रति जो उदासिनता दिखाई दे रही है उसका मुख्य कारण ही उनका बचपन से संस्कारों का नही मिलना मुख्य है। टेलीविजन एवं सोष्यल मीडिया के इस युग में युवावर्ग दिग्भ्रमित हो चुका है साधु संतों का उपदेष सुनने केवल वृद्ध लोग ही एकत्रित होते है और ऐसे मेे धर्म संदेष उन तक नही पहूंच पाता है ।उन्होने कथित रूप से आडंबरी साधुओं द्वारा धर्म के नाम पर दुकानदारी चलाये जाने को भी धृधित कृत्य बताते हुए कहा कि ऐसे लोगों को मार्केट वैल्यु चाहिये । उदाहरण देते हुए उन्होने कहा कि एक गणिका का मार्केट वैल्यू ही इस जमाने में अधिक होती है, किसी मां की मार्केट वैल्यु नही होती क्योकि वह निर्लिप्त भाव से अपनी संतानों को स्नेह दुलार देती है और प्रसिद्धी की चाह नही रखती है । पूज्य गुरूदेव ने आगे बताया कि जीवन षैली में व्यापक बदलाव आचुके है । नववर्ष सभी के लिये शारीरिक,मानसिंक,आध्यात्मिक से परिपूर्ण हो नईपीढी को नूतन वर्ष परस्पर सौहार्द्रता प्रम एवं भाईचारे से परिपूर्ण करने वाला हो । उन्होने कहा कि हमारे राजनेता भी प्रजा के उत्थान का कार्य करे तथा साधु संतों एवं धर्माचरण के मार्ग पर चल कर देष के सर्वागिण उत्थान के लिये काम करें । उन्होने कहा कि नेताओं की अधोगति के कारण ही देष की प्रगति संभव है । नीजि स्वार्थ को वे प्रधानता नही देकर समाजिक,सांस्कृतिक एवं देष के विकास में अपनी भूमिका निभावे । संतो ने धर्म के नाम पर जो दुकानदारी चला रखी है वह बंद होना चाहिये । उन्होने आगे कहा कि युवापीढी को अपने माता-पिता के प्रति मर्यादा एवं सम्मान की भावना को नही त्यागना चाहिये वे स्वयं साक्षात परमात्मा के स्वरूप होते है । मां बाप के उपकारों को वे जीवन भर नही चुका सकते है । झाबुआ के संदर्भ में इस धरा को धर्म भूमि बताते हुए नव वर्ष के आगमन के सुखद संयोग का जिक्र करते हुए कहा कि यहां पर पहली बार श्वेतांबर आमनाय के तीनों सम्प्रदाय के साधु साध्वी संतों जिसमें मूर्ति पूजक,स्थानकवासी, तेरी पंथी जैन मुनियों का आगमन हुआ है यह झाबुआ नगर के लिये ऐतिहासिक एवं सुखद संकेत देने वाला है । ज्ञातव्य है कि जैन साध्वी पूज्य जिनेन्द्रप्रभाजी आदि 5 ठाणा भी झाबुआ की धर्मधरा पर आध्यात्म एवं महावीर के संदेष को प्रस्फुटित करने के लिये यही विराजमान है ।
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