भोपाल, 24 दिसंबर – मध्य प्रदेश में यह साल सियासी रंग बदलने वाला रहा, सत्ता पर 15 सालों से काबिज भारतीय जनता पार्टी को रुखतस होना पड़ा तो वहीं कांग्रेस का वनवास खत्म हो गया। सत्ता के बदले रंग ने लोगों मे आस जगा दी है तो कांग्रेस पर बड़ी जिम्मेदारी भी आन पड़ी है।
राज्य में साल के अंतिम माह में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़े अरसे बाद सफलता मिली, मगर सत्ता पर काबिज होने के लिए उसे दीगर लोगों का सहारा लेना पड़ा। कांग्रेस और विपक्षी दल भाजपा में ज्यादा अंतर नहीं है, कांग्रेस को जहां 114 सीटें मिलीं, वहीं भाजपा के पास 109 सीटें हैं। कांग्रेस के पास बहुमत से दो सीटें कम थीं, उसे चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा विधायक का समर्थन मिला और इस तरह उसके पास कुल 121 विधायकों का समर्थन है।
कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद के लिए कमलनाथ को चुन लिया, वे 17 दिसंबर को शपथ भी ले चुके हैं, मगर मंत्रिमंडल में किसे जगह दी जाए, इसको लेकर कांग्रेस के अंदरखाने खींचतान जारी है। कांग्रेस हमेशा से ही गुटों मे बंटी रही और अब सत्ता में आने पर भी लगभग वही हालात हैं। यह बात दीगर है कि गुटबाजी खुलकर सामने नहीं आ रही है।
राज्य की सियासत का रंग तो बदल गया है, मगर कांग्रेस का रंग बदलेगा यह बड़ा सवाल बना हुआ है। मुख्यमंत्री की कमान भले ही कमलनाथ के हाथ में आ गई हो, मगर उन्हें भी उस खींचतान के दौर से गुजरना पड़ रहा है, जो कांग्रेस की परंपरा रही है। बीते तीन दशक से राज्य की सियासत में कमलनाथ का गुट सक्रिय रहा है, यह बात अलग है कि उनकी राजनीति केंद्र की रही है।
कमलनाथ अब तक भले ही कांग्रेस की सरकारें बनाने और मुख्यमंत्री के चयन में अहम् भूमिका निभाते रहे हों, मगर पहली बार है जब उन्हें भी इस गुटबाजी से दो-चार होना पड़ा है। पहले मुख्यमंत्री बनने के लिए कई दिनों तक जूझे, अब अपना मंत्रिमंडल बनाने के लिए जूझ रहे हैं। उनका मुकाबला युवा चेहरे ज्योतिरादित्य सिंधिया से है, यह बात अलग है कि कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह भी खड़े और डटे हैं।
राजनीति के जानकार कहते हैं कि कांग्रेस ने यह चुनाव परोक्ष रूप से सिंधिया को आगे कर लड़ा था। भाजपा के निशाने पर भी सिंधिया ही थे। यही कारण रहा कि सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने की मांग उठी, मगर कांग्रेस ने अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर अपनी रणनीति बनाई और कमलनाथ को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। अब मंत्रिमंडल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के चयन की बात सामने है। कांग्रेस को इन दोनों मामलों में सिंधिया को महत्व देना होगा, ऐसा न करने पर कांग्रेस सवालों में घिर सकती है।
कांग्रेस किसानों का कर्ज माफ, बिजली बिल हाफ और युवाओं को रोजगार देने जैसे वादों के चलते सत्ता में आई है। कांग्रेस ने किसानों का कर्ज माफ का ऐलान कर दिया, मगर कुछ भ्रम पैदा होने से कांग्रेस के सामने उस भ्रम को खत्म करने की चुनौती आन पड़ी है। बिजली बिल अभी हाफ होना बाकी है तो युवाओं को रोजगार दिलाना सबसे बड़ी चुनौती बन सकता है।
अब सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस ने सत्ता तो पा ली है मगर क्या वह लोगों की अपेक्षाएं पूरी करने और कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाए रखने में कामयाब हो पाएगी? दूसरी ओर भाजपा भी विपक्ष में कमजोर नहीं है। इन स्थितियों से पार्टी को निकालना कमलनाथ के लिए आसान नहीं होगा।