नई दिल्ली, 28 दिसंबर – संसद के शीतकालीन सत्र का समापन हाल ही में हुआ है। दोनों सदनों की कार्यवाही महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की सराहना के मुद्दे पर विपक्ष के हंगामे के कारण थम गई थी। सत्तापक्ष के एक सांसद ने गोडसे को देशभक्त बताया था और बाद में माफी मांग ली थी। गोडसे नाम मगर संसद के रिकार्ड से हटा दिया गया, क्योंकि इस नाम को ‘असंसदीय’ माना जाता है।
दरअसल, संसद में उपयोग नहीं करने लायक शब्दों की एक शब्दावली पहले से तैयार है, जिसमें नाथूराम गोडसे का नाम भी शामिल है।
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी पर आर्काइव रिकार्ड से असंसदीय शब्दों को हटाने की जिम्मेदारी दी गई है।
सत्र के आखिरी दिन उपसभापति पीजे कुरियन ने स्पष्ट किया कि नाथूराम गोडसे नाम को हटा दिया गया है, क्योंकि यह शब्द असंसदीय है।
इसी तरह हिटलर, मुसोलिनी, ईदी अमीन और रावण शब्द भी असंसदीय है और इनका प्रयोग संसद में वर्जित है।
अनार्किस्ट (अराजकतावादी) शब्द वर्जित है, लेकिन अनार्की (अराजकता) का उपयोग किया जा सकता है।
सांसदों को मिले हैंडबुक में लिखा है किकिसी भी शब्द को असंसदीय तय करने के मामले में अध्यक्ष का फैसला आखिरी होगा और उसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता पी. राजीव ने कहा, “सूची है, लेकिन फैसला अध्यक्ष लेते हैं। अध्यक्ष को अपने विवेक के आधार पर यह तय करना होता है कि किसी भी शब्द को रिकार्ड से हटाया जाए या नहीं।”
राजीव ने कहा, “आप गोडसे, रावण या हिटलर से किसी की तुलना नहीं कर सकते .. लेकिन यह परिस्थितियों पर निर्भर करती है और अध्यक्ष का फैसला आखिरी होता है। अलग-अलग स्थिति के आधार पर अलग-अलग समय में अलग-अलग फैसला लिया जा सकता है।”
उल्लेखनीय है कि कम्युनिस्ट शब्द भी असंसदीय है। यह सूची में इसलिए शामिल किया गया था, क्योंकि 1958 में एक सांसद ने कहा था, “दोस्ती का यह मतलब नहीं है कि मैं अपनी पत्नी किसी कम्युनिस्ट को दे दूं।”
लोकसभा सचिवालय में मौजूद पुस्तक में हिंदी और अंग्रेजी के असंसदीय शब्दों की सूची कई सौ पृष्ठों में फैली हुई है।
पुस्तक का नाम है ‘असंसदीय अभिव्यक्तियां।’ इसका आखिरी संस्करण 2009 में प्रकाशित हुआ था। इसकी कीमत 1700 रुपये है। पिछले वर्ष तक सांसदों के लिए 25 फीसदी की छूट थी, लेकिन हाल में जारी लोकसभा बुलेटिन में इस पुस्तक की जानकारी देने वाले अनुच्छेद में इस छूट का जिक्र नहीं है।
पुस्तक पहली बार वर्ष 1999 में तैयार की गई थी।
वर्ष 2003 में ‘विदेशी’ शब्द को भी असंसदीय घोषित कर दिया गया था, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक सांसद ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया था। वही भाजपा आज सत्ता में है।