मानव जाति की बुनियादी जरूरतों की बात करें तो रोटी, कपड़ा और मकान का ही नाम आता है। इनमें रोटी सर्वोपरि है। रोटी यानी भोजन की अनिवार्यता के बीच आज विश्व के लिए शर्मनाक तस्वीर यह है कि वैश्विक आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी भुखमरी का शिकार है।
अगर भुखमरी की इस समस्या को भारत के संदर्भ में देखें तो संयुक्त राष्ट्र द्वारा भुखमरी पर जारी रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के सर्वाधिक भुखमरी से पीड़ित देशों में भारत का नाम भी है।
खाद्यान्न वितरण प्रणाली में सुधार तथा अधिक पैदावार के लिए कृषि क्षेत्र में निरंतर नए अनुसंधान के बावजूद भारत में भुखमरी के हालात बदतर होते जा रहे हैं, जिस वजह से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में यह तीन पायदान नीचे उतर गया है।
दुनियाभर के देशों में भुखमरी के हालात का विश्लेषण करने वाली गैर सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार गत वर्ष भारत दुनिया के 119 देशों के हंगर इंडेक्स में 97वें स्थान पर था, जो इस साल फिसलकर 100 वें स्थान पर पहुंच गया है और इस मामले में एशियाई देशों में उसकी स्थिति बस पाकिस्तान और अफगानिस्तान से थोड़ी ही बेहतर है। इंडेक्स में पाकिस्तान और अफगानिस्तान का हाल सबसे बुरा है।
हंगर इंडेक्स में किसी भी देश में भुखमरी के हालात का आकलन वहां के बच्चों में कुपोषण की स्थिति, शारीरिक अवरुद्धता और बाल मृत्युदर के आधार पर किया जाता है। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बच्चों में कुपोषण की स्थिति भयावह है। देश में 21 फीसदी बच्चों का पूर्ण शारीरिक विकास नहीं हो पाता, इसकी बड़ी वजह कुपोषण है।
रिपोर्ट के अनुसार, सरकार द्वारा पोषण युक्त आहार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चलाए जा रहे अभियान के बावजूद सूखे और मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण देश में गरीब तबके का एक बड़ा हिस्सा कुपोषण के खतरे का सामना कर रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, भुखमरी के लिहाज से एशिया में भारत की स्थिति अपने कई पड़ोसी देशों से खराब है। हंगर इंडेक्स में चीन 29वें, नेपाल 72वें, म्यामार 77 वें, इराक 78वें, श्रीलंका 84वें और उत्तर कोरिया 93वें स्थान पर है, जबकि भारत 100 वें स्थान पर फिसल गया है। भारत से नीचे केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं। पाकिस्तान 106वें और अफगानिस्तान 107वें पायदान पर है।
रिपोर्ट में भुखमरी की स्थिति के लिहाज से दुनिया के 119 देशों को अत्याधिक खतरनाक, खतरनाक और गंभीर जैसी तीन श्रेणियों में रखा गया है। इनमें भारत गंभीर की श्रेणी में है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत की इस स्थिति के कारण ही दक्षिण एशिया का प्रदर्शन हंगर इंडेक्स में और बिगड़ा है। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक भारत में कुपोषण के हालात खराब जरूर हैं, लेकिन 2022 तक देश को कुपोषण से मुक्त करने के लिए सरकार ने जो कार्य योजना बनाई है, वह सराहनीय है। इसमें आने वाले वर्षों में देश से कुपोषण खत्म करने की सरकार की ²ढ़ प्रतिबद्धता झलकती है।
उन्होंने कहा कि सरकारी प्रयासों से साल 2000 के बाद से देश में बाल शारीरिक अवरुद्धता के मामलों में 29 प्रतिशत की कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद यह 38.4 प्रतिशत के स्तर पर है जिसमें सुधार के लिए काफी कुछ किया जाना बाकी है। उम्मीद है कि सरकारी प्रयासों से यह संभव हो पाएगा। दुनिया के देशों के बीच भारत की छवि एक ऐसे मुल्क की है, जिसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। लेकिन तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले इस देश की एक सच्चाई यह भी है कि यहां के बच्चे भुखमरी के शिकार हो रहे हैं।
एक ऐसा देश जो अगले एक दशक में दुनिया के सर्वाधिक प्रभावशाली देशो की सूची में शामिल हो सकता है, वहां से ऐसे आंकड़े सामने आनाए बेहद चिंतनीय माना जा रहा है। सबसे ज्यादा आबादी वाला देश चीन भी इस सूची से स्वयं को बचा नहीं पाया है। चीन को ग्लोबल हंगर इंडेक्स की लिस्ट में 20वें नंबर पर रखा गया है। भारत के दूसरे पड़ोसी देशों की हालात ज्यादा अच्छी है क्योंकि इंडेक्स में उनके नाम भारत से पहले हैं। हमारा पड़ोसी देश नेपाल 72वें स्थान पर है, जबकि म्यांमार 77वेंए श्रीलंका 84वें और बांग्लादेश 90वें स्थान पर है।
इस इंडेक्स रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के अलग-अलग देशों में वहां के नागरिकों को खाने-पीने की सामग्री कितनी और कैसी मिलती है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स हर साल ताजा आंकड़ों के साथ जारी किया जाता है। इसमें विश्वभर में भूख के खिलाफ चल रहे अभियान की उपलब्धियों और नाकामियों को दशार्या जाता है। इस रिपोर्ट को देखते हुए तमाम सवाल उठते हैं। भुखमरी को लेकर भारत की सभी सरकारों की गंभीरता पर प्रश्नचिन्ह खड़े करते हैं।
नेपाल और श्रीलंका जैसे देश भारत से सहायता प्राप्त करने वालों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में ये सवाल गंभीर हो उठता है कि जो श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार हमसे आर्थिक से लेकर तमाम तरह की मोटी मदद पाते हैं, मगर भुखमरी पर रोकथाम के मामले में हमारी हालत उनसे भी बदतर क्यों हो रही है?
इस सवाल पर यह तर्क दिया जा सकता है कि श्रीलंका व नेपाल जैसे कम आबादी वाले देशों से भारत की तुलना नहीं की जा सकती। यह बात सही है, लेकिन साथ ही इस पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि भारत की आबादी श्रीलंका और नेपाल से जितनी अधिक है, भारत के पास क्षमता व संसाधन भी उतने ही अधिक हैं।
महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि हर वर्ष हमारे देश में खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन होने के बावजूद क्यों देश की लगभग एक चौथाई आबादी को भुखमरी से गुजरना पड़ता है। यहां मामला ये है कि हमारे यहां हर वर्ष अनाज का रिकार्ड उत्पादन तो होता है, पर उस अनाज का एक बड़ा हिस्सा लोगों तक पहुंचने की बजाय कुछ सरकारी गोदामों में तो कुछ इधर-उधर अव्यवस्थित ढंग से रखे-रखे सड़ जाता है।
संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के मुताबिक, देश का लगभग 20 फीसद अनाज भंडारण क्षमता के अभाव में बेकार हो जाता है। इसके अतिरिक्त जो अनाज गोदामों में सुरक्षित रखा जाता है, उसका भी एक बड़ा हिस्सा समुचित वितरण प्रणाली के अभाव में जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने की बजाय बेकार पड़ा रह जाता है। खाद्य की बबार्दी की ये समस्या सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, पूरी दुनिया में प्रतिवर्ष 1.3 अरब टन खाद्यान्न खराब होने के कारण फेंक दिया जाता है। कितनी बड़ी विडंबना है कि एक तरफ दुनिया में इतना खाद्यान्न बर्बाद होता है और दूसरी तरफ दुनिया के लगभग 85 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हैं। क्या यह अनाज इन लोगों की भूख मिटाने के काम नहीं आ सकता, पर व्यवस्था के अभाव में ऐसा नहीं हो रहा।
भारत में भुखमरी से निपटने के लिए कई योजनाएं बनी हैं, लेकिन उनकी सही तरीके से पालना नहीं होती है। महंगाई और खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल ने गरीबों और निम्न आय के लोगों को असहाय बना दिया है। हमारे देश में सरकारों द्वारा भुखमरी को लेकर कभी उतनी गंभीरता दिखाई ही नहीं गई जितनी कि होनी चाहिए।
यहां सरकारों द्वारा हमेशा भुखमरी से निपटने के लिए सस्ता अनाज देने संबंधी योजनाओं पर ही विशेष बल दिया गया। कभी भी उस सस्ते अनाज की वितरण प्रणाली को दुरुस्त करने को लेकर कुछ ठोस नहीं किया गया। सार्वजनिक वितरण प्रणाली हांफ रही है और मिड-डे मील जैसी आकर्षक परियोजनाएं भी भ्रष्टाचार और प्रक्रियात्मक विसंगतियों में डूबी हुई हैं।
(लेखक रमेश सर्राफ धमोरा स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये इनके निजी विचार हैं)