नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (धर्मपथ)। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने गुरुवार को कहा कि केरल के सबरीमाला मंदिर के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरोध ने ‘कुछ राजनीतिक पार्टियों और जाति संगठनों के पाखंड व पितृसत्तात्मक सोच का वैश्विक स्तर पर पर्दाफाश किया है।’
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में 10-50 वर्ष की महिला के प्रवेश करने की अनुमति दी थी।
माकपा ने अपने जर्नल ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ के संपादकीय में कहा, “आरएसएस ने 2016 में एक पक्ष लिया था कि महिलाओं को सभी मंदिरों में जाने का अधिकार है। लेकिन जब सबरीमाला मंदिर का सवाल आया तो इस पक्ष को बदल दिया गया।”
माकपा ने कहा, “आरएसएस के महासचिव सुरेश जोशी ने दावा किया कि सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश की पाबंदी लाखों श्रद्धालुओं के परंपरा व विश्वास का मामला है, जिनकी ‘भावनाओं’ को दरकिनार नहीं किया जा सकता। केरल में, आरएसएस के प्रमुख गोपालनकुट्टी ने कहा कि संघ फैसले का आदर करेगा लेकिन अगले ही दिन वह इससे पलट गए।”
संपादकीय में कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध ‘श्रद्धालुओं’ द्वारा प्रदर्शन भाजपा व आरएसएस द्वारा आयोजित करवाए गए, जिसमें नायर सर्विस सोसायटी भी शामिल थी।
संपादकीय के अनुसार, “इन समाजिक रूढ़िवादियों की ओर से लिए गए पक्ष की उम्मीद थी। लेकिन जिसकी उम्मीद नहीं थी,वह केरल में कांग्रेस द्वारा पाखंडी और अवसरवादी रवैया अपनाने की।”
माकपा ने कहा, कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने नई दिल्ली में कहा कि पार्टी सर्वोच्च न्यायालय के इस प्रगतिशील व दूरगामी निर्णय का खुले दिल से स्वागत करती है, लेकिन केरल में कांग्रेस ने इसके विपरीत रुख अपनाया।