पटना, 5 दिसंबर –एक ओर जहां बिहार में धीरे-धीरे तापमान में गिरावट दर्ज की जा रही है, वहीं अब यहां के बाग-बगीचों और ताल-तलैयों में प्रवासी पक्षी भी देखने को मिलने लगे हैं।
माना जाता है कि जब इनके मूल निवास (प्रजनन स्थल) पर प्रकृति का प्रकोप बढ़ता है, चारों ओर बर्फ जम जाती है इनके भोजन एवं आवास, जीवन पर संकट खड़ा हो जाता है तब ये पक्षी उष्म इलाकों की ओर अपना बसेरा बना लेते हैं। ठंड के प्रारंभ होते ही बिहार समेत देश के सभी क्षेत्रों में प्रवासी पक्षी का आगमन प्रारंभ हो जाता है।
आंकड़ों के मुताबिक, भारत में पक्षियों की करीब 1,300 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें लगभग 300 प्रजातियां प्रवासी होते हैं, जो शीतकाल में यहां आते हैं। कुछेक प्रजातियां जैसे पाइड क्रेस्टेड कक्कु (चातक) ऐसा पक्षी है जो बिहार में बरसात के समय प्रवास पर आता है।
पक्षियों की कई प्रजातियां अपने ही देश की सीमा में सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करती हैं, जिन्हें स्थानीय स्तर के प्रवासी पक्षी कहा जाता है। पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार, जो पक्षी यहां प्रजनन करते हैं वे स्थानीय पक्षी होते हैं।
इंडियन बर्ड कन्जर्वेशन नेटवर्क के स्टेट को-ऑर्डिनेटर एवं मंदार नेचर क्लब, भागलपुर के संस्थापक सदस्य अरविंद मिश्रा ने आईएएनएस को बताया कि वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा ‘वर्डस इन बिहार’ में 412 से ज्यादा प्रजातियों की सूची तैयार की गई है जिसमें 35 से 40 प्रतिशत प्रजातियां प्रवासी पक्षियों की है।
सितंबर माह से ही बिहार में प्रवासी पक्षियों का आना शुरू हो जाता है, जिसमें सबसे पहले आने वाले पक्षियों में खंजन (वागटेल्स) और अबाबील (स्वालोज) सहित कई पक्षी शामिल हैं। नवंबर महीने से जल पक्षियों जैसे बत्तख एवं चाहा समूह के पक्षी बड़ी संख्या में बिहार में दिखाई देने लगते हैं जो मार्च महीने के आते-आते लगभग यहां से उड़ जाते हैं।
उनका दावा है कि बिहार में सबसे ज्यादा जलीय प्रवासी पक्षी पहुंचते हैं। इसके अलावे ऐसे पक्षी भी आते हैं जो बाग-बगीचे और जंगलों में रहने वाले होते हैं। इनमें रेड ब्रेस्टेड लाईकैचर, ब्लैक रेड स्टार्ट पक्षी शामिल हैं। कई पक्षी तो शहरों के ‘किचेन गार्डेन’ तक में पहुंच जाते हैं।
कई तरह के बाज एवं अन्य शिकारी पक्षी तथा क्रेन एवं स्टोर्क जैसे बड़े-बड़े पक्षी भी हमारे देश में एवं बिहार में प्रवास के लिए आते हैं।
हाल के दिनों में देखा गया है कि प्रवासी पक्षी को शिकारियों से गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भौगोलिक स्थिति में परिवर्तन (हैबिटैट चेंज), वनों की कटाई, शहरीकरण, जीवन शैली में परिवर्तन, जलाशयों की भराई के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन पक्षियों के प्रवसन को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
इधर, पक्षियों का प्रवास अभी भी वैज्ञानिकों की नजर में रहस्य बना हुआ है। फिर भी छल्ले पहनाने की प्रक्रियाओं एवं ट्रांसमीटर की सहायता से इनके प्रवास की गतिविधियों को समझने की कोशिश की जा रही है। इसमें बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी का मुख्य योगदान है।
मिश्रा कहते हैं कि अब तक के अध्ययन से यह साबित होता है कि हमारे देश में प्रवासी पक्षी हिमालय के पार मध्य एवं उत्तरी एशिया एवं पूर्वी व उत्तरीय यूरोप से आते हैं। इनमें लद्दाख, चीन, तिब्बत, जापान, रूस के देशों, साइबेरिया, अफगानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान, मंगोलिया एवं भूटान जैसे देश शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी द्वारा इम्पोर्टेड बर्ड एरियाज इन इंडिया के नए संस्करण में बिहार के करीब 20 महत्वपूर्ण पक्षी स्थलों को शामिल करने पर विचार किया जा रहा है।
पक्षियों को पर्यावरण के स्वास्थ्य का सूचक माना जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महवपूर्ण जलाशयों की सूची को निर्धारित करने के लिए रामसर कन्वेन्शन ब्यूरो ने भी पक्षियों को ही मुख्य सूचक माना है। अभी देश में 26 जलाशय रामसर सूची में शामिल हैं, लेकिन इस सूची में बिहार का कोई जलाशय शामिल नहीं है।