नई दिल्ली- धार्मिक हिंसा जैसे संवेदनशील मामलों में मीडिया के गैर जिम्मेदारान रवैये और धार्मिक नेताओं के भड़काऊ भाषणों पर चिंता जाहिर करते हुए विभिन्न धर्मो के प्रतिनिधि चिंतकों, विद्वजनों एवं समाजसेवियों ने मंगलवार को राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में समाज को मूल रूप में हर धर्म की शिक्षा देने की जरूरत पर सहमति जताई। सर्व धर्म संवाद और किंग अब्दुल्ला सेंटर ऑफ डॉयलॉग (केएआईसीआईआईडी) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, “धर्म ग्रंथों को सिर्फ धर्म विशेष से जोड़कर देखने की बजाय ज्ञान के स्रोत की तरह देखे जाने की जरूरत है। मेरा मानना है कि धार्मिक नेताओं को समाज को सकारात्मकता की ओर ले जाना चाहिए और शांति को बढ़ावा देना चाहिए न कि घृणा फैलाने वाली बातें कहनी चाहिए।”
खुद को मुस्लिम प्रतिनिधि कहे जाने पर आरिफ मोहम्मद खान ने सख्त आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा कि हमें समाज के प्रतिनिधि के रूप में लोगों को पहचानना चाहिए न कि धर्म, जाति या संप्रदाय के नाम पर। खान ने इसके अलावा शिक्षा और कानून व्यवस्था को धार्मिक सौहार्द के लिए बेहद अहम बताया।
कार्यक्रम में उपस्थित प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु एवं समाजसेवी तथा केएआईसीआईआईडी के बोर्ड सदस्य स्वामी अग्निवेश ने मीडिया के रवैये की आलोचना करते हुए कहा, “मीडिया को गैर जिम्मेदाराना खबरें प्रसारित करने से बचना चाहिए। साथ ही धर्म गुरुओं को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और झूठे बयान देने से बचना चाहिए।”
स्वामी अग्निवेश ने पारंपरिक मीडिया की आलोचना करते हुए नए सोशल मीडिया की पुरजोर वकालत की और कहा, “अब तक लोग पारंपरिक मीडिया के भरोसे थे, लेकिन अब आम लोगों के हाथ में सोशल मीडिया की ताकत आ गई है। इसका हम जैसा इस्तेमाल करना चाहेंगे यह वैसा ही होगा।”
इसके अलावा कार्यक्रम में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की स्थायी सलाहकार समिति के सदस्य रह चुके तथा सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज के पूर्व अध्यक्ष एन. भास्कर राव, एनसीईआरटी के निदेशक रह चुके जाने माने शिक्षाविद, लेखक और स्तंभकार जे. एस. राजपूत और केएआईसीआईआईडी के वियना स्थित डॉयलॉग सेंटर के अध्यक्ष माइक वॉल्टनर ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।
जे.एस. राजपूत ने कहा, “आने वाली पीढ़ी को शुरुआत से ही सभी धर्मो की कम से कम मूल शिक्षा दिए बगैर समाज से हम इस गंभीर समस्या को दूर नहीं कर सकते। हमें अपने देश में परंपरा से चली आ रही धर्मनिरपेक्षता को जीवित करने की जरूरत है न कि राजनीतिक धर्मनिरपेक्षता की।”