रायपुर, – छत्तीसगढ़ की राजधानी की किन्नर 31 वर्षीय अमृता कल्पेश सोनी स्वास्थ्य विभाग की परियोजना एड्स कंट्रोल की नोडल अफसर नियुक्त की गई हैं। इसके साथ ही वह किन्नरों के लिए प्रेरणास्रोत भी बन गई हैं।
तमाम परेशानियां झेलकर एमबीए पास करने वाली अमृता अब प्रदेश में एड्य नियंत्रण के क्षेत्र में काम करेंगी। हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, छत्तीसगढ़ में लगभग 12 हजार एड्स पीड़ितों की पहचान हुई है। इनमें महिलाएं और किन्नर (थर्ड जेंडर) भी शामिल हैं।
अमृता ने बताया कि वह 10 जिलों में समूह को जांच से लेकर इलाज तक के लिए प्रोत्साहित करेंगी। उन्होंने बताया कि एड्स प्रभावित जिलों में माइग्रेटेड हेल्थ नाम से कैंप लगाए जाएंगे। वह स्वयं कैंपों में जांच से लेकर इलाज कराने की सारी प्रक्रियाओं की निगरानी करेंगी। इस दौरान विस्थापित लोगों पर फोकस रहेगा।
सोलापुर में जन्मी अमृता का जीवन बचपन से ही संघर्षो से भरा रहा। अमृता ने बताया, “जब मैं चौथी कक्षा में थी, उसी समय इस बात का अहसास हो गया था कि मैं सामान्य नहीं हूं। माता-पिता ने मेरी असामान्य हरकतों को देखते हुए मुझे चाचा के पास दिल्ली भेज दिया। जब मैं 15 साल की हुई तो चाचा ने मौके का फायदा उठाकर मेरा यौन शोषण करना शुरू कर दिया।”
अमृता ने आगे कहा, “मैंने जब घर में इस घटना का जिक्र किया तो माता-पिता ने मुझे ही दोषी मानकर घर से ही निकाल दिया। यहां से जीवन का असली संघर्ष शुरू हुआ। पेट पालने के लिए दिल्ली की गलियों में सेक्स वर्कर बनकर दर-दर भटकती रही। इस बीच प्राइवेट में पढ़ाई जारी रखी। दिल्ली यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में मैंने ग्रेजुएशन किया।”
अमृता ने बताया कि इसके बाद उन्होंने पुणे के सिंबोसिस यूनिवर्सिटी से एमबीए (मार्केटिंग एंड एचआर) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया।
बकौल अमृता, “एमबीए करने के बाद भी किन्नर होने के कारण किसी ने नौकरी नहीं दी। कॉल सेंटर में जॉब मिला, वहां भी मैनेजर ने यौन शोषण करना शुरू कर दिया। थक-हारकर बार गर्ल बनी। लेकिन अपने कैरियर और कुछ कर गुजरने की चाह की वजह से हिम्मत नहीं हारी और आज अपने मंसूबे में सफल रही।”
राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. एस.के. बिंझवार ने कहा,
“प्रदेश में पहली बार किसी योजना की कमान किन्नर के हाथों में दी गई है। एड्स जांच की जिम्मेदारी अमृता को दी गई है। उनके नेतृत्व में 10 स्थानों पर कैंप लगाए जाएंगे।”