नई दिल्ली- 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले की सुनवाई कर रही एक विशेष अदालत ने पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा, उनकी पार्टी सहयोगी और डीएमके सांसद कनिमोझी तथा अन्य पर धन की हेराफेरी का आरोप तय किया और मामले की सुनवाई के लिए 11 नवंबर की तिथि तय की। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के विशेष न्यायाधीश ओ.पी. सैनी ने शुक्रवार को आरोप तय किया। आरोपियों पर प्रिवेंसन ऑफ मनी लाउंडरिंग एक्ट-2002 के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए हैं।
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दाखिल आरोप पत्र पर अदालत ने कहा, “प्रत्येक आरोपियों पर धन की हेराफेरी के आरोप के लिए प्रथम दृष्टया समुचित सामग्री है।”
अदालत गवाहों के बयान भी दर्ज करेगी, क्योंकि आरोपियों ने अपना दोष स्वीकार नहीं किया है और सुनवाई की मांग की है।
राजा और कनिमोझी के अलावा स्वान टेलीकॉम के शाहिद उस्मान बलवा और विनोद गोयनका, कुसेगांव फ्रुट्स एंड वेजिटेबल्स के आसिफ बलवा और राजीव अग्रवाल, फिल्म निर्माता करीम मोरानी, डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्माल और कलैगनार टीवी के शरद कुमार और पी. अमृतम के विरुद्ध भी आरोप तय किया गया है।
ये कंपनियां और इनके साथ सिनेयुग मीडिया एंड एंटरटेनमेंट, कलैगनार टीवी, डायनामिक्स रियल्टी, एवरस्माइल कंस्ट्रक्शन, कैनवुड कंस्ट्रक्शन एंड डेवलपर्स, डीबी रियल्टी एंड निहार कंस्ट्रक्शन पर भी आरोप तय किए गए हैं।
निदेशालय ने कहा कि यह पता चला है कि स्वान टेलीकॉम के प्रमोटरों ने अपने समूह की कंपनी डायनैमिक्स रियल्टी के जरिए कलैगनार टीवी को वैध वित्तीय लेन-देन दिखाते हुए 200 करोड़ रुपये दिए गए। यह राशि कुसेगांव और सिनेयुग से होते हुए कलैगनार टीवी तक पहुंची।
निदेशालय ने कहा कि आरोपियों ने कर्ज/प्रतिभूति आवेदन रकम के रूप में पैसे को स्थानांतरण दिखाने की कोशिश की।
निदेशालय ने आरोपपत्र में कहा कि यह भुगतान स्वान टेलीकॉम को दूरसंचार लाइसेंस दिए जाने के लिए तरफदारी करने के लिए राजा और उनके सहयोगियों के लिए और उनकी ओर से अवैध रिश्वत था।
अदालत ने कहा कि राजा ने दयालु अम्माल, कनीमोझी और शरद कुमार के साथ मिलकर शाहिद बलवा और विनोद गोयनका से मिली यह अवैध रकम कलैगनार टीवी में लगाई।
अदालत ने कहा कि राजा 223.55 करोड़ रुपये के कथित अपराध से हासिल हुई राशि को निस्तारित करने में भी शामिल थे, ताकि वह आरोपों से बच सके। इसलिए उन्होंने कानून की परिभाषा के मुताबिक धन की हेराफेरी को अंजाम दिया है।
अदालत ने कहा कि प्रत्येक आरोपी की भूमिका आरोपपत्र में बताई गई है। प्रत्येक आरोपी के विरुद्ध तथ्यों पर आधारित और विश्वास करने योग्य आरोप हैं।
अदालत ने कहा, “आरोप एक अभियोग है। इसकी सामग्री को अभियोक्ता द्वारा कटघरे में साबित किए जाने की जरूरत है।”
अदालत ने यह भी कहा, “इन आरोपों को साबित करने के लिए पुलिस के आरोप पत्र जैसे पुराने बयानों की जरूरत नहीं है। ये आरोपों के समर्थन में कुछ दर्ज बयान और दस्तावेज हैं।”