नई दिल्ली- देशभर में अंधकार पर विजय का पर्व ‘दिवाली’ धूमधाम से मनाया जा रहा है। गुरुवार को शाम ढलते ही राजधानी दिल्ली सहित समूचा देश रोशनी से जगमगा उठा। आतिशबाजी और पटाखें जलाकर बच्चों से लेकर हर उम्र के पुरुषों और महिलाओं ने उल्लास-उमंग का इजहार किया। दिल्ली में लोगों ने पारंपरिक परिधानों में लक्ष्मी जी की पूजा के साथ दिवाली उत्सव की शुरुआत की। लोगों ने एक-दूसरे को मिठाइयां भेंटकर शुभकामनाएं दीं। युवाओं ने पटाखे जलाकर इस पर्व को मनाया।
इस दौरान लोगों ने अपने घरों को रंगोली और रंग-बिरंगी रोशनी वाले बल्बों से सजाया। मंदिरों में आज सुबह से ही लोगों का तांता लगा रहा। शहरवासी अपने परिजनों से मिलने के लिए भी घरों से निकले।
अंधकार पर विजय के प्रतीक स्वरूप लोगों ने शाम ढलते ही दीयों और मोमबत्तियों से घरों और आसपास को सजाया।
दिल्ली के प्रमुख मंदिरों, इमारतों के साथ ही लोगों ने अपने घरों को रंग-बिरंगी रोशनी वाले बल्बों को सजाया।
त्योहार के दौरान किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। इसके साथ ही सभी दमकल केंद्रों को सतर्क रहने के निर्देश दिए गए हैं। पटाखों में एवं अन्य आग से जलने वालों के लिए अस्पतालों में विशेष इंतजाम किए गए हैं।
उत्तर प्रदेश में भी दिवाली पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। लखनऊ, इलाहाबाद, मेरठ, फैजाबाद और बनारस सहित अन्य संवेदनशील स्थानों पर प्रशासन सतर्कता बरत रहा है।
इसी तरह मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों में रोशनी के इस पर्व की धूम है।
दिवाली मनाने की प्रचलित धारणाएं :
दिवाली पर आतिशबाजी : कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इंद्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दीपावली मनाई थी।
इसी दिन समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से लक्ष्मीजी प्रकट हुई थीं और भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था।
इस दिन जब रामचंद्र लंका से वापस आए तो उनका राज्यारोहण किया गया था। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने घरों में दीपक जलाए थे।
इसी समय कृषकों के घर में नवीन अन्न आते हैं, जिसकी खुशी में दीपक जलाए जाते हैं।
इसी दिन गुप्तवंशीय राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने ‘विक्रम संवत’ की स्थापना की थी। धर्म, गणित तथा ज्योतिष के दिग्गज विद्वानों को आमंत्रित कर यह मुहूर्त निकलवाया कि नया संवत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से मनाया जाए।
आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का इसी दिन निर्वाण हुआ था।