पंडित हरि ओम शर्मा ‘हरि’
नई दिल्ली, 22 अक्टूबर- “लक्ष्मी जी” का मतलब है ‘धन-दौलत’, ‘सोना चांदी’, ‘जमीन जायदाद’, ‘सुख समृद्धि’ आदि। जो व्यक्ति लक्ष्मी जी के इस स्वरूप को कैद करने, अपना गुलाम बनाने या इसके बहाव को रोकने की गलती करता है तो वह व्यक्ति स्वयं ही जेल के सीखचों में पहुंच जाता है। चाहे वह व्यक्ति कितना ही साधन सम्पन्न, वरिष्ठ अधिकारी, या फिर कोई नेता या अभिनेता ही क्यों न हो।
यह सभी जानते हैं कि लक्ष्मी जी को कैद करने के प्रयास का मतलब है जेल के सीखचों में पहुंचना। फिर भी लोग नहीं मानते हैं अज्ञानतावश, लक्ष्मी जी को कैद करने की चेष्टा करते हैं! उन्हें तिजोरी में, लॉकर में, घर में, आंगन में, तहखाने में कैद करने की भरपूर कोशिश करते हैं। तब भी वह लक्ष्मी जी को तो कैद नहीं कर पाते हैं अलबत्ता स्वयं अवश्य कैद हो जाते हैं। इस तरह के अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं जिन्हें यहां वर्णित करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं।
यह एक शाश्वत सत्य है कि लक्ष्मी जी चलायमान हैं, चंचल हैं, गतिशील हैं, हमेशा चलती ही रहती हैं, जिस व्यक्ति ने भी इनकी गति को रोकने का प्रयास किया है वह व्यक्ति गर्त के गड्ढे में चला गया है और जिस व्यक्ति ने लक्ष्मी जी की गति को व उनके वेग को समझा है वह उन्नति के शिखर पर पहुंच गया है। साथ ही बन गया है लखपति, करोड़पति, अरबपति और उद्योगपति।
व्यक्ति क्या बनना चाहता है यह उसके ऊपर निर्भर है, यदि व्यक्ति जेल के सीखचों में या पतन के रास्ते पर जाना चाहता है तो लक्ष्मी जी के वेग को रोकने की उनको कैद करने की कुचेष्टा अवश्य करे, लक्ष्मी जी को मजबूत लॉकर में या फिर गोदरेज की मजबूत तिजोरी में बन्द करने या फिर कहीं जमीन में छिपाने का प्रयास करे, तब भी लक्ष्मी जी रुक नहीं सकती हैं उनकी गतिशीलता बराबर बनी रहेगी।
दुनिया की कोई भी ताकत ‘लक्ष्मी जी’ को कैद नहीं कर सकती है। तो फिर व्यक्ति कौन बड़ी चीज है लक्ष्मी जी के लिए! अलबत्ता एक बात अवश्य है लक्ष्मी जी पहले उस व्यक्ति को कैद में भेजेंगी तब वह उस व्यक्ति की कैद से मुक्त होगी। इतने पर भी इंसान क्यों नहीं समझता है लक्ष्मी जी के स्वभाव को।
लक्ष्मी जी और जल का एक ही स्वभाव है बहते रहना और चलते रहना अब आप सोचिए कि क्या कोई जल के बहाव को रोक सकता है? अगर किसी ने जल के बहाव को रोक भी लिया तो जल सड़ने लगता है उसमें इतनी बदबू आने लगती है कि पीने की तो बात छोड़ दीजिए आप सड़े हुए जल के पास खड़े भी नहीं हो सकते हैं। महान संत और कवि रहीम दास जी लिखते हैं –
“ज्यों जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम। दोनो हाथ उलीचिए, यही सज्जन का काम”।।
अर्थात जब नाव में पानी बढ़ने लगे और घर में दाम बढ़ने लगे तो दोनों हाथों से उलीचना चाहिए अर्थात धन खर्च करना चाहिए, दान करना चाहिए, मानवता की सेवा में लगाना चाहिए। सच मानिए! आपके इस पुनीत कार्य से धन में कमी नहीं आयेगी अपितु धन में अपार वृद्धि होगी और आप बन जायेंगे धनपति और खरबपति।
धन दान करने से कम नहीं होता है, बल्कि बढ़ता है क्योंकि धन व जल का एक ही स्वभाव है चलते रहना, बढ़ते रहना। अत: धन के वेग को रोकने की गलती जिस व्यक्ति ने भी की है वह व्यक्ति धन के वेग को तो रोक तो नहीं पाया है अलबत्ता उस व्यक्ति का पतन अवश्य हो गया है साथ ही उसकी जिंदगी हमेशा के लिए ठहर गई है।
दूसरी ओर यदि आप उन्नति के शिखर पर पहुंचना चाहते हैं तथा आप अपार धन सम्पदा के स्वामी बनना चाहते हैं एवं अरबपति व करोड़पतियों की सूची में अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं तो लक्ष्मी जी को कैद करने की कुचेष्टा के स्थान पर लक्ष्मी जी की सत्ता व उनके वेग को स्वीकार कीजिए उनकी गति से अपनी गति मिलाइए, जिस गति से वह दौड़े उसी गति से आप भी दौड़िए, जिस गति से लक्ष्मी जी आपके घर में प्रवेश करे उसी गति से उसी तेजी से आप धन को खर्च करने की योजना बना लीजिए फिर देखिये धन की स्पीड, धन की गति में और कितनी तेजी आ जाती है।
लेकिन यहां एक बात विशेष ध्यान देने की है धन का व्यय अच्छे कार्यो में ही होना चाहिए, समाज की भलाई में ही होना चाहिए, समाज की सेवा में ही होना चाहिए, सत्कर्मो में ही होना चाहिए, शराब, जुआ और अन्य दुव्यर्सनों में कदापि नहीं होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति धन का अपव्यय करता है, धन का मखौल उड़ाता है, धन को बुरे कामों पर खर्च करता है तो लक्ष्मी जी उसके घर से शीघ्र ही विदा हो जाती हैं।
अत: आप यह चाहते हैं कि आपके ऊपर लक्ष्मी जी की कृपा सदा बनी रहे तो लक्ष्मी जी द्वारा दी गई धन सम्पदा का सदुपयोग करें, दुरुपयोग नहीं! यदि आप सदुपयोग करते हैं तो फिर आपसे अधिक सौभाग्यशाली कोई नहीं है। आपके घर लक्ष्मी जी छप्पर फाड़कर आएंगी उन्हें ऐसा करने से कोई भी ताकत व अवरोध रोक नहीं सकते हैं। मुझे इस अवसर पर एक किवदन्ती याद आ रही है जिसे यहां वर्णित करना सामयिक है।
मथुरा में एक बहुत बड़े सेठ रहते थे करोड़ीमल जी। लक्ष्मी जी की बड़ी कृपा थी सेठ जी के ऊपर किन्तु सेठ जी की नीयत में खोट आ गया था, सेठ जी में अहम आ गया था वह अपार धन सम्पदा को हमेशा के लिए कैद करने की सोचने लगे सो उन्हें एक उपाय सूझा उन्होंने अपने घर में लगे सभी चौखट व दरवाजों को अन्दर से खोखला करवाकर उनमें हीरे मोती व सोने की अशर्फिया भरवा दी।
लक्ष्मी जी उन सेठ जी की हरकतों से कुपित हो गई और स्वप्न में लक्ष्मी जी ने सेठ जी से कहा कि अब तुम्हारी नीयत में खोट आ गया है, गरीबों की मदद की जगह अब तुम गरीबों का शोषण कर रहे हो तथा उनका हक उनसे छीनकर अपनी सात पीढ़ी के लिए एकत्रित कर रहे हो इसलिए अब मैं तुम्हारे घर से विदा हो रही हूं और अब मैं आगरा में ‘नेकराम’ के यहां जा रही हूं क्योंकि नेकराम बहुत ही गरीब इन्सान है फिर भी वह हमेशा नेक काम करते रहते हैं और मेरा निवास स्थान नेक काम करने वाले व सन्मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति के यहां ही होता है।
इस सन्देश के बाद लक्ष्मी जी अन्तरध्यान हो गई। सेठ करोड़ीमल की जब आंख खुली तो वह हक्का-बक्का रह गए फिर उन्होंने यह सोचकर सन्तोष कर लिया कि वह तो सपना था, कहीं! सपने भी सच होते हैं? ऐसा सोचकर सेठ करोड़ीमल मस्ती से दिन गुजारने लगे किन्तु अपने व्यवहार में व अपने कर्म में कोई सुधार नहीं किया गरीबों का शोषण अनवरत गति से चलता रहा।
कुछ दिन के बाद ऐसी आंधी, तूफान व घनघोर वर्षा और भयंकर बाढ़ आयी कि सेठ जी का पूरा महल बाढ़ की चपेट मंे आकर यमुना नदी में बहने लगा, घर के सभी दरवाजे और चौखट यमुना नदी में बहते-बहते आगरा तक आ गए। आगरा के प्रशासन ने उन चौखट व दरवाजों को नीलामी में बेच दिया। संयोग की बात और लक्ष्मी जी की कृपा कि वह सभी चौखट व दरवाजे नेकराम जी ने खरीद लिए व घर लाकर संजोकर रख दी कि बरसात के बाद घर में लगवा दूंगा।
अभी तक नेकराम जी बिना दरवाजों के घर में ही रहते थे। नए खरीदने के लिए उनके पास रुपये नहीं थे सो पुराने दरवाजे, चौखट खरीद कर बहुत खुश थे। उधर सेठ करोड़ीमल बिलख बिलख कर अपने कारनामों पर पछता रहे थे लेकिन “अब पछतावे होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत”।
सेठ करोड़ीमल जी को रोते बिलखते उस रात के सपने की याद आई जिस सपने में ‘लक्ष्मी जी’ ने उनके घर से विदा लेने की बात कही थी सो सपने की सत्यता का पता लगाने के लिए सेठ करोड़ीमल आगरा के लिए रवाना हो गए। आगरा पहुंचने पर ‘नेकराम जी’ का पता पूछते-पूछते उनके घर पहुंच गए और अपना परिचय दिया व सपने का वृत्तान्त सुनाया साथ ही बताया कि इन चौखट व दरवाजों में करोड़ों, अरबों रुपयों के हीरे, मोती और अशर्फी भरे पड़े हैं।
जब चौखट तोड़कर देखी गई तो सचमुच उसमें हीरे ही हीरे निकले। नेकराम जी ने सेठ करोड़ीमल की बड़ी आवभगत की, स्वागत सत्कार किया साथ ही उनकी बदहाली को देखते हुए मदद करने के उद्देश्य से चलते समय रास्ते में नाश्ते के बहाने बूंदी के लड्डू भेंट किये और प्रत्येक लड्डू में छिपा कर एक एक मोती रख दिया। सेठ करोड़ीमल ने न चाहते हुए भी वह लड्डू ले लिए और चल पड़े।
रास्ते में एक हलवाई की दुकान पर सेठ करोड़ीमल जी ने यह सोचकर लड्डू बेच दिए कि जब सब कुछ बर्बाद ही हो चुका है तो इन लड्डुओं को घर ले जाकर क्या करुंगा, पत्नी को और दुख होगा। इस बीच नेकराम जी के घर मिलने वालों और बधाई देने वालों की लाइन लग गई सो नेकराम जी ने उन प्रशंसकों का मुंह मीठा कराने के लिए लड्डू खरीदने के लिए अपने बेटे को हलवाई के यहां भेजा।
हलवाई ने यह सोचकर वही लड्डू पैक कर दिए कि पता नहीं कैसे लड्डू हों? अत: पहले इन्ही से छुटकारा पाओ। बेटा लड्डू लेकर घर आ गया लेकिन यह क्या जिस लड्डू को तोड़ा उसी में मोती। तब नेकराम जी को यह समझते देर न लगी कि यह वही लड्डू हैं जो उन्होंने सेठ करोड़ीमल को भेंट किए थे।
तब उनके मुंह से बरबस ही निकल पड़ा – वाह रे! लक्ष्मी जी की कृपा जिसको देती है छप्पर फाड़कर देती है जो व्यक्ति लक्ष्मी जी को अपने से दूर करता भी है उसी के घर वापस लौट लौट कर आ जाती है जैसे करोड़ीमल को दिए गए लड्डू मेरे ही घर लौट कर आ गए।
तो यह है मेरे दोस्त! लक्ष्मी जी की कृपा! जब जब आप लक्ष्मी जी को रोकने व कैद करने की कोशिश करेंगे तब-तब लक्ष्मी जी आपसे दूर होती चली जाएंगी और जब-जब आप इनको अपने से दूर करने का प्रयास करेंगे तब-तब यह आपके पास दौड़ी चली आएंगी। बस आपकी नीयत साफ होनी चाहिए। जिस व्यक्ति की नीयत में खोट आया, जहां उसने लक्ष्मी जी को रोकने का प्रयास किया जहां लक्ष्मी जी को उसने कैद करने का प्रयास किया लक्ष्मी जी वहां से नदारद! आप दौड़ते रह जाएंगे, ढूंढ़ते रह जाएंगे लक्ष्मी जी को लेकिन लक्ष्मी जी के दर्शन नहीं हो पाएंगे।
अत: लक्ष्मी जी की तीव्रता को, उनके वेग को रोकने की कुचेष्टा मत करिये बल्कि लक्ष्मी मां को अपने मन मन्दिर में बैठाइये, पूजा अर्चना करिये, मां लक्ष्मी जी उनके द्वारा प्रदत्त प्रसाद को पूरी ईमानदारी व नेकनीयती से वितरित करते रहिए। सच मानिये! आपके प्रसाद में कभी कमी नहीं आएगी बल्कि दिन प्रतिदिन बढ़ोत्तरी होती चली जायेगी तब आप बन जाएंगे करोड़पति, अरबपति, उद्योगपति। लेकिन कब तक-जब तक कि आप इस कथन को स्वीकार करते रहेंगे और अपने जीवन में आत्मसात कर सन्मार्ग पर चलते रहेंगे। “ज्यों जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम। दोनो हाथ उलीचिए, यही सज्जन का काम”।