मुंबई, 20 अक्टूबर – महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) असमंजस में उलझ गई है। राज्य की 288 सदस्यीय विधानसभा में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला है। ऐसे में यहां राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति पैदा हो सकती है। हालांकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने राज्य को इस स्थिति से उबारने के लिए पहल की है।
राज्य विधानसभा में 123 सीटों (भाजपा-122 और एक सहयोगी) के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद भाजपा राज्य में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, और न ही वह विपक्ष में बैठना चाहती है।
शिवसेना और भाजपा के बीच व्यवहार्य गठबंधन के लिए राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। दोनों पार्टियों का 25 साल पुराना गठबंधन चुनाव से ठीक पहले सीटों के बंटवारे को लेकर टूट गया था।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने बिना शर्त समर्थन का वादा कर भाजपा को कुछ राहत दी है, लेकिन इसके पीछे इसकी कई छिपी हुई आकांक्षाएं होंगी और यदि भाजपा राकांपा से समर्थन लेती है तो उसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की नाराजगी भी झेलनी पड़ेगी।
वैसे भी चुनाव अभियान के दौरान भाजपा राकांपा को स्वाभाविक रूप से भ्रष्ट पार्टी करार दे चुकी है। ऐसे में चुनाव के तत्काल बाद उसका समर्थन लेना उसके लिए उचित नहीं होगा।
एक विकल्प शिवसेना से संपर्क करना और फिर से गठबंधन करने की कोशिश करना हो सकता है।
लेकिन इसमें भी एक अड़चन है, जैसा कि भाजपा ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता और उनकी सरकार में उपमुख्यमंत्री का पद भी नहीं होगा। हालांकि इस तरह के अनुमान भी लगाए जा रहे हैं कि भाजपा शिवसेना को पांच प्रमुख मंत्रालय दे सकती है।
शिवसेना के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “ऐसी स्थिति में उनको समर्थन देने या उनके साथ जुड़ने में हमारा क्या हित रह जाता है।”
शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पहले ही साफ कह दिया है कि भाजपा सरकार बनाने के लिए किसी से भी मदद लेने के लिए स्वतंत्र है, लेकिन शिवसेना किसी भी परिस्थिति में अकारण समर्थन नहीं देगी।
हालांकि, शिव सेना ने अपना दरवाजा खुला रखा है और कहा है कि अगर भाजपा राज्य की अखंडता को बरकरार रखने की गारंटी देती है, तो शिव सेना किसी अनुकूल प्रस्ताव पर विचार करेगी।
उद्धव ने कहा, “यदि जरूरत पड़ी, तो शिवसेना विपक्ष में बैठने के लिए तैयार है।”
चुनाव परिणाम से साफ हो गया है कि आंकड़ों का खेल हर मोर्चे पर मुश्किल हो गया है।
भाजपा को साधारण बहुमत के लिए 22 अतिरिक्त सीटों की जरूरत है, राकांपा के पास 41 सीटें हैं और इसका समर्थन लेकर आसानी से सरकार बन सकती है।
एक अन्य संभावित स्थिति यह हो सकती है कि कांग्रेस (42), राकापा (41) एकजुट होकर शिवसेना (63) को बाहर से समर्थन देने का प्रस्ताव करें। तीनों दलों की संयुक्त सीट संख्या 146 ठहरती है।
कुछ छोटी पार्टियां और निर्दलीय, जो भाजपा को सत्ता से बाहर देखना चाहते हैं, वे भी इस गठबंधन को समर्थन दे सकते हैं।
राकांपा नेता अजित पवार ने सोमवार को कहा कि कांग्रेस ने सचमुच शिवसेना को समर्थन देकर उसकी सरकार बनवाने की योजना बनाई है, लेकिन राकांपा ने इस कदम को खारिज कर दिया है।
इस तरह की राजनीति कांग्रेस के लिए कोई नई बात नहीं है। इसने समय-समय पर छोटी-छोटी अवधि के लिए केंद्र में चरण सिंह, वी.पी.सिंह, चंद्रशेखर, एच.डी.देवेगौड़ा, आई.के.गुजराल सरकार को बाहर से समर्थन दिया है।
राकांपा अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि कांग्रेस-राकांपा अपने बूते सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए राज्य में स्थिर सरकार के लिए राकांपा ने भाजपा को समर्थन करने का फैसला किया है।
पवार ने कहा, “अतीत में कांग्रेस ने जब भी किसी को समर्थन देकर सरकार बनवाई है, वह सरकार गिरी है।”
सेना सूत्रों ने कहा है कि भाजपा के लिए एक अन्य विकल्प यह होगा कि वह पंकजा मुंडे को अगला मुख्यमंत्री बनाए, जिनके साथ दोनों दलों में भावनात्मक जुड़ाव है। उनके साथ अतिरिक्त योग्यता यह होगी कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग से महाराष्ट्र की पहली महिला मुख्यमंत्री होंगी।
बहरहाल, सभी पार्टियां अपने पत्ते अभी छुपाए रखी हैं और कोई स्पष्ट तस्वीर अगले दो दिनों में ही साफ हो सकती है।