त्रिपुरा-बीजेपी पूर्वोत्तर के चुनावों में मिली इस जीत को इतना उछालेगी जैसे वह चीन से लड़ाई जीत कर आ गई हो. यह प्रोपेगैंडा तो होगा, लेकिन मुझे नहीं लगता कि असलियत में इससे कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश या छत्तीसगढ़ में होने वाले चुनावों पर असर पड़ेगा और 2019 तो अभी दूर है.
एक असर सीपीएम पर ज़रूर पड़ेगा क्योंकि सीपीएम के अंदर एक बड़ा झगड़ा चल रहा था. पार्टी के भीतर दो धड़े हैं, सीताराम येचुरी जो अभी पार्टी के वर्तमान महासचिव हैं और प्रकाश करात पूर्व महासचिव और सेंटर कमेटी के सदस्य हैं.
कांग्रेस के मुद्दे पर करात चाहते थे कि उससे दूरी बनाई जाए, जबकि येचुरी का मानना है कि देश को बीजेपी से अधिक ख़तरा है और इसलिए पार्टी को कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी के ख़िलाफ़ चुनावी गठबंधन करना चाहिए.
हालांकि उनका प्रस्ताव की पार्टी के भीतर ही 55-31 के वोट से हार हो गई थी.
अब पार्टी में त्रिपुरा की हार का असर देखने को मिलेगा क्योंकि सीपीएम ने देख लिया है कि बीजेपी कितनी विभाजनकारी हो सकती है और इससे उसे कितना अधिक ख़तरा हो सकता है.
लेकिन यह कहना कि त्रिपुरा में जीत से बीजेपी पूरे भारत में जीत जाएगी यह अभी अतिशयोक्ति होगी.
कांग्रेस को कितना नुकसान
‘कांग्रेस मुक्त भारत’ लगभग हो ही गया है, ऐसा तो लग ही रहा है कि देश के 27 राज्यों में बीजेपी की सरकार बन जाएगी.
कांग्रेस मेहनत ही नहीं करती है. कांग्रेस के एक नेता खुद ही बोल रहे थे कि राहुल गांधी इतनी देर से उत्तर पूर्व क्यों गए. यह सवाल तो पार्टी को खुद राहुल गांधी से करना चाहिए.
बीजेपी और आरएसएस त्रिपुरा में पिछले चार साल से मेहनत कर रहे थे और इसी वजह से वहां सीपीएम नीचे आई और बीजेपी जीत दर्ज करने में कामयाब हुई.
2019 का लक्ष्य कैसे पूरा करेगी कांग्रेस
गुजरात में राहुल गांधी ने अच्छा प्रदर्शन किया था, वहां बीजेपी जीत तो गई, लेकिन कांग्रेस ने वहां बीजेपी को भगा-भगा कर पीटा. बीजेपी ने गुजरात में अपनी सरकार बचाने के लिए सारे हथकंडे अपना लिए थे, नहीं तो उसकी हार तय थी.
केवल कांग्रेस क्या करती है इस बात से फर्क नहीं पड़ता है, इस बात से भी फ़र्क पड़ता है कि वहां की जनता क्या सोचती है.
क्या राजस्थान की जनता दोबारा वसुंधरा राजे और बीजेपी को चुनना चाहती है, मुझे तो फ़िलहाल ऐसा नहीं लगता.
एंटी इनकम्बेंसी सिर्फ़ त्रिपुरा और माणिक सरकार के ख़िलाफ़ ही नहीं रहेगी वह तो शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह के ख़िलाफ़ भी हो सकती है.
क्या रणनीति बदलने की ज़रूरत है
कांग्रेस की बात करें तो मेघालय में उसे वैसे हार नहीं मिली है. वहीं नगालैंड और त्रिपुरा में तो वह पहले से ही परिदृश्य में नहीं थी.
तो इन चुनावों के बाद कांग्रेस को कोई रणनीति बदलने की ज़रूरत नहीं है, उसे वही रणनीति अपनाए रखनी चाहिए जो उसने गुजरात और पंजाब में अपनाई थी.
कांग्रेस को ज़मीनी स्तर पर काम करने की ज़रूरत है. कांग्रेस को भी बूथ लेवल कमेटी, पन्ना इंचार्ज बनाना पड़ेगा. उसे भी पार्टी में ऐसे लोग चाहिए जो 60 लोगों को खुद से जोड़ सकें.लेकिन सीपीएम की रणनीति ज़रूर बदलेगी, मुझे लगता है कि प्रकाश करात को एक कदम पीछे हटकर सीताराम येचुरी की लाइन पकड़नी पड़ेगी. उन्हें ये मानना पड़ेगा कि सभी सेकुलर दलों को मिलकर बीजेपी के ख़िलाफ़ एकजुट होना पड़ेगा.
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