कांचीपुरम-कांची शंकर मठ के प्रमुख श्री श्री जयेंद्र सरस्वती के निधन के बाद विजयेंद्र सरस्वती को मठ का नया पीठाधीश्वर बनाया गया है.
कांची शंकर मठ का अपना एक इतिहास रहा है. आदि शंकर को मठ के पहले गुरू के रूप में जाना जाता है.
मठ की वेबसाइट के अनुसार उनका जन्म 2500 साल पहले 509 ईसा पूर्व में हुआ था. उन्होंने अपने अंतिम दिन कांची में बिताए और वहीं उन्होंने ‘मुक्ति’ प्राप्त की.
ये भी कहा जाता है कि मठ की स्थापना 482 ईसा पूर्व में हुई थी. आदि शंकर के बाद भी कांचीपुरम से ही मठ का कार्य उसके 62वें प्रमुख तक लगातार चलता रहा.
लेकिन बाद में कांचीपुरम में राजनीतिक हालात बदलने के बाद शंकर मठ के 62वें प्रमुख(1764-1783) को तमिलनाडु के अलग-अलग स्थानों में जाना पड़ा.
तंजावूर की स्थापना से एक साल पहले वहां कुंभकोणम में एक नए मठ की स्थापना की गई. यहीं पर 62वें, 63वें और 64वें मठ प्रमुख ने मुक्ति प्राप्त की.
इस मठ के अनुसार आदिशंकर ने ही चार अलग-अलग दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी.
उन्होंने ही ओडिशा (पूर्व) में गोवर्धन मठ, कर्नाटक (दक्षिण) में श्रींगेरी मठ, द्वारका (पश्चिम) में कालिका मठ और बद्रिकाश्रम (उत्तर) में ज्योतिर्मठ की स्थापना की थी.
ये चार मठ चारों वेदों का प्रतिनिधित्व भी करते हैं. हालांकि इन मठों के इतिहास में कहीं भी कांची मठ के बारे में जानकारी नहीं मिलती.
1987 के दौरान जयेंद्र सरस्वती स्वामी ने कांची मठ छोड़ दिया था और इसके साथ ही मठ के अगले प्रमुख पर चर्चा शुरू हो गई थी.
विजयेंद्र सरस्वती को जयेंद्र सरस्वती ने 1983 में ही अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुन लिया था. कांची के कामाक्षी मंदिर में पूरे विधि विधान के साथ उनकी नियुक्ति की गई.
और इस तरह विजयेंद्र सरस्वती को कांची शंकर मठ का अगला प्रमुख यानी शंकराचार्य बनने का अवसर मिला गया.