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 कुख्यात डकैत नेत्रपाल अब शांतिदूत | dharmpath.com

Sunday , 24 November 2024

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कुख्यात डकैत नेत्रपाल अब शांतिदूत

indexमुजफ्फरनगर-उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पिछले साल हुए सांप्रदायिक झगड़े के बाद सांप्रदायिक सौहार्द से परिपूर्ण कार्यक्रमों का आयोजन लगातार किया जा रहा है और इसमें अब कभी चंबल में नामी गिरामी बागी डकैत रहा नेत्रपाल यहां के लोगों को समझा-बुझाकर कह रहा है कि जितनी शांति सांप्रदायिक सौहार्द में है, इतना सुकून बाकी कहीं नहीं मिलेगा।

चंबल में कभी खून की होली खेलकर अपने सिर पर 53 हत्याओं और अन्य मुकदमों को लादे नेत्रपाल एक समय लाखन गैंग का दायां हाथ रहा है, लेकिन जब उसने डॉ. एस.एन. सुब्बाराव की प्रेरणा से समर्पण किया और सजा काटी तो उसका ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि वह समाजसेवा और शांति के अलख जगा रहा है।

खूनी खेल खेलने वाला कुख्यात डाकू नेत्रपाल समाज की मुख्यधारा में आकर शांति का पैगाम देने के लिए मुजफ्फरनगर पहुंचा। अब बूढ़े शेर की तरह चमकती आंखें और चेहरे पर झुर्रियां भले ही दिखाई दे रही हों, लेकिन उसने कभी चंबल के बीहड़ को अपनी दहशत से थर्रा दिया था।

मुजफ्फरनगर में एक सप्ताह तक चले शांति और सद्भाव शिविर में शांतिदूत नेत्रपाल मुजफ्फरनगर में गांव से लेकर गली गली घूमा। श्रीराम कालेज में चल रहे शांति सद्भाव शिविर में नेत्रपाल ने लोगों से हाथ जोड़कर अपील की कि वे शांति का रास्ता अपनाएं। विनोभा भावे और जयप्रकाश नारायण से प्रभावित बागी नेत्रपाल अब अपने जीवन अनुभव से औरों को सीख दे रहा है।

नेत्रपाल ने बताया कि उसके पिता का नाम अकबर सिंह है और वह जनपद फिरोजाबाद के थाना मखनपुर क्षेत्र के गांव हिम्मतपुर का रहने वाला है। 76 वर्षीय नेत्रपाल ने बताया कि उसने सन् 1954 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की थी। उसके बाद वह 1955 में सेना में भर्ती हो गया था, लेकिन सात माह कि बाद वह सेना की नौकरी छोड़कर वापस आ गया था।

उसने बताया कि वह 1956 में पटवारी बन गया और सरकारी नौकरी करने लगा। सन् 1958 में उसकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया। गांव के ही एक परिवार ने रंजिश के चलते उसके परदादा की हत्या कर दी। नेत्रपाल के मुताबिक, उसने परदादा की हत्या के बाद सरकारी नौकरी छोड़ दी और उस दौरान के चंबल के मशहूर डाकू लाखन सिंह के गिरोह में शामिल हो गया था।

नेत्रपाल ने बताया कि पुलिस मुठभेड़ के दौरान सन् 1960 में लाखन सिंह का पूरा गिरोह मारा गया था, केवल वही किसी तरह जिंदा रहा था। फिर उसने नेत्रपाल के नाम से एक नया गिरोह बनाया और 18 वर्षो तक उसने अपने गिरोह कि साथ मिलकर 53 लोगों को मौत के घाट उतारा। वहीं गरीबों का खून चूसने वाले 176 साहूकारों के यहां पर डकैती डाली और 87 अपहरण किए।

नेत्रपाल ने बताया कि सन् 1976 में डॉ. एस.एन. सुब्बाराव, संत विनोबा भावे व जयप्रकाश नारायण की टीम डाकू माधव सिंह के जरिए उससे मिले। डॉ. सुब्बाराव ने नेत्रपाल से कहा था, “तुम निर्दोष की हत्या कर लूटपाट करते हो, उसमें गरीब, बेसहारा व मासूम भी मारे जाते है।”

नेत्रपाल ने बताया कि डॉ. सुब्बाराव की बातों ने उस दौरान उसके दिमाग को बदलकर रख दिया था। उसने सुब्बाराव से कहा था, “हमारी 20 शर्ते हैं, अगर सरकार शर्ते मान ले तो वह गिरोह सहित हथियार डाल देगा।”

उसने बताया कि सन् 1976 में डॉ. सुब्बाराव के नेतृत्व में उसका 413 डाकुओं का गिरोह प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से मिला और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसकी सभी 20 शर्ते मान ली थीं। उसके बाद उसे 10 साल की कैद हुई और वह सन् 1986 में बरी हो गया।

नेत्रपाल ने बताया कि जेल से छूटने के बाद से ही वह डॉ. सुब्बाराव के साथ समाज हित में कार्य कर रहा है।

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