हरिद्वार-देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि आत्मतर्पण बंधन-मुक्ति का मार्ग है। उन्होंने प्रसन्नता जताई किगायत्री परिवार के आह्वान पर केदारनाथ तथा जम्मू एवं कश्मीर में आई भीषण बाढ़ में हताहत हुए लोगों की आत्मा की शांति व सद्गति के लिए श्राद्ध-तर्पण एवं विशेष मंत्र से यज्ञाहुतियां दी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की याद में श्रद्धाभाव से किया गया श्राद्ध कर्म निश्चित रूप से फलदायी होता है और श्राद्धकर्म के बाद पौधे रोपने से पुण्य कई गुना बढ़ जाता है।
डॉ. पण्ड्या ने कहा कि हिंदू संस्कृति के अनुसार, आश्विन मास का कृष्णपक्ष पितरों के लिए समर्पित होता है। 15 दिनों तक चलने वाले श्राद्धपक्ष में पौधरोपण, पंचबलि यज्ञ, सद्ज्ञान का प्रचार-प्रसार आदि कई ऐसे कार्य हैं, जिससे इहलोक व परलोक सुधरता है और समाज को पुण्य कार्य करने ही प्रेरणा मिलती है।
ज्ञात हो कि गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में श्राद्धपक्ष के पहले दिन से लेकर अब तक नियमित रूप से कई पारियों में सामूहिक श्राद्ध-तर्पण संस्कार किया जा रहा है। इसमें अंतेवासी कार्यकर्ताओं के अलावा देश के कोने-कोने से आने वाले लोग भागीदारी कर रहे हैं। श्राद्धकर्म में प्रयोग होने वाली समस्त सामग्री शांतिकुंज अपनी ओर से नि:शुल्क उपलब्ध कराता है। वहीं भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में स्थापित शक्तिपीठ, प्रज्ञापीठ एवं प्रज्ञा संस्थानों में भी यह क्रम चलाया जा रहा है।
डॉ. पण्ड्या ने बताया कि कई स्थानों पर जीवेच्छा-श्राद्ध के अंतर्गत स्व-तर्पण का क्रम भी चल रहा है। शास्त्रों में स्व-तर्पण का प्रावधान है।
उन्होंने कहा कि श्राद्ध का अर्थ होता है श्रद्धा, अपने पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए एक से तीन फलदार व छायादार पौधे लगाने का संकल्प भी लिया जा रहा है। उन्हें गायत्री तीर्थ स्थित उद्यान विभाग की ओर से ‘तरु प्रसाद’ दिया जा रहा है।
शांतिकुंज के एक स्वयंसेवी ने बताया कि श्राद्धपक्ष के मद्देनजर युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा रचित युगसाहित्य पर छूट दी जा रही है। साथ ही निर्मल गंगा जन अभियान के तहत गंगा मैया की स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है।