– सत्येन्द्र खरे
एक संस्कृति, एक विरासत-एक इतिहास, क्षेत्र की नदियां भी एक। इनती एकाओं के बावजूद इन्हीं एक नदियों की बाढ़ की विभीषिका में फंसे है दो देष- भारत और पाकिस्तान। जम्मू-कष्मीर में आई भयानक बाढ़ और तेज बारिष के चलते हालात बाकई चिंताजनक बने हुए है। भारत ने तो पिछले वर्ष ही तो उत्तराखंड की भयानक त्रासदी झेली है और अब जम्मू-कष्मीर में हुए जन-धन के नुकसान की भरपाई के लिए हमारी सेना, एनडीआरएफ की टीम और जम्मू-कष्मीर सरकार के साथ भारत सरकार भी पूरी जिम्मेदारी के साथ मौके पर है। वहीं पाकिस्तान भी इस मुष्किल हालात से निपटने के लिए दिन-रात एक कर रहा है। पाकिस्तान तो अभी आर्थिक तौर पर इतना सक्षम भी नहीं है कि वह बाढ़ पीडि़तों की पूरी तरह मदद कर सके। भारत ने मानवता के आधार पर पाक अधिकृत कष्मीर में फंसे लोगों की मदद के लिए पहल की थी जिसे भी पाकिस्तान ने नकार कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिये और घाटी में अमन-चैन के पक्ष में नहीं है। पाकिस्तान यह समझने का प्रयास नहीं कर रहा है कि जम्मू-कष्मीर से निकलने वाली नदियां सिंधु, रावी, चिनाव, झेलम और तवी दोनों देषों के मध्य बहती है। लेकिन इन नदियों का अधिकांष भाग पाकिस्तान से गुजरकर अरब सागर में मिल जाता है। तो मतलब साफ है कि भारत शुरूआती दंष झेल रहा है तो पाकिस्तान को अभी सिंध, पंजाब में बाढ़ के कहर से निपटना बाकी है।
बाढ़ का जो कहर इन दोनों देषों पर बरपा है उसके लिए हमें पहले भारत-पाकिस्तान में बह रही इन नदियों की भौगोलिक स्थिति को समझना जरूरी होगा। सिंधु, रावी, चिनाव, झेलम, तवी, नीलम और सतलुज ये वे नदियां है जो भारत से होकर पाकिस्तान जाती है। हिमालय से निकलने वाली नदियों को लेकर भारत-पाक में एक समझौता भी हो चुका है। भारत-पाकिस्तान में नदियों के पानी के बंटवारे के लिए 1960 में ‘सिंधु जल-संधि’ पर भारत के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी के सद्र अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे। पानी के बंटवारे को लेकर विष्व बैंक की मध्यस्थता के बीच संधि में स्पष्ट लिखा है कि सिंधु, झेलम और चिनाव नदियों को भारत अविरल बहनें देगा। इस पर किसी प्रकार के बांध का निर्माण भारत की ओर से नहीं किया जायेगा। इससे एक बात तो स्पष्ट हो गई कि इस भयंकर बाढ़ में सबसे ज्यादा झेलम नदी उफान पर थी और पाकिस्तान के अखबारों एवं मीडिया-चैनलों ने खबरें दी कि भारत ने अपने लोगों को बचानें के लिए पाकिस्तान की ओर कई लाख क्यूबेक पानी छोड़ दिया। संधि के मुताबिक गौर करें तो पाकिस्तान को जबाव मिल गया होगा कि भारत ने न झेलम पर बांध बनाया है और न ही पानी छोड़ा है। यह प्राकृतिक आपदा है, जिसकी भयानक त्रासदी का दंष दोनों देष और जनता वर्तमान में भोग रही है।
भारत और पाकिस्तान के बीच भले ही तीन बड़े युद्ध हो चुके है, एक नये देष बांग्लादेष का निर्माण भी हो चुका है। लेकिन भारत ने कभी सिंधु जल संधि का उल्लंघन नहीं किया। झेलम में आई हालिया बाढ़ में भी भारत के प्रधानमंत्री ने जम्मू-कष्मीर का दौरा कर जम्मू-कष्मीर के लिए बाढ़ राहत राषि जारी कर नागरिक सुरक्षा के आदेष दिये साथ ही पाक अधिकृत कष्मीर के लिए भी हर संभव मदद की पेषकष पाकिस्तान से की। लेकिन पाकिस्तान के वज़ीर-ऐ-आजम नवाज़ शरीफ ने इस मदद को ठुकराया ही नहीं बल्कि शेखी बघारते हुए यह भी कह दिया कि भारत को जरूरत हो तो पाकिस्तान मदद करनें को तैयार है। अब इस बयान से एक बात तो समझ में आती है कि पाकिस्तान के उपर कितनी ही त्रासदी क्यों न आये लेकिन वह पाकि अधिकृत कष्मीर में भारतीय सेना को नहीं आने देना चाहेगा, लेकिन पाकिस्तान बाढ़ राहत में भारत की मदद करेगा, यह हास्यास्पद है। एक ओर भारत अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए पहले जम्मू-कष्मीर को 1100 करोड़ रूपये, दूसरे दिन 1000 करोड़ रू. की आर्थिक सहायता मुहैया कराता है, तो साथ में 5000 कैम्प, 1 लाख कंबल की सहायता फौरन उपलब्ध करानें के आदेष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देते है, वही पाकिस्तान ने अपने क्षेत्र में राहत के तौर पर महज 10 करोड़ रू. की मदद की घोषणा की है। पाकिस्तान तो वर्तमान में राजनैतिक संकट से भी जूझ रहा है, नवाज शरीफ तो इस्लामाबाद से ईमरान खान और अब्दुल कादरी के समर्थकों को हटाने में भी नाकाम रहे है। वे गुजरात, सियालकोट, लाहौर, गोजरानवालह, फैसलाबाद जिलों सहित पंजाब प्रांत में बाढ़ पीढि़तों से कैसे निपटेगें और यहीं नहीं आने वाले कुछ घंटों में बाढ़ का पानी मुल्तान और सिंध प्रांत के हैदराबाद बडे शहरों तक भी पहुंचेगा और कुछ दिन बाद बाढ के कारण होने वाली महामारियों से दोनों देष की सरकारे अब भी बेफिक्र दिखाई दे रही है, फिलहाल बाढ से निपटने के लिए दिल्ली और श्रीनगर तो आॅपरेषन मेघदूत को पूरा करनें के लिए दिन-रात एक रही है। लेकिन इस्लामाबाद और मुज्जफराबाद पर संकट के घने बादल अब भी छाये हुए है।
ऐसा नहीं है कि दोनों देष अपने स्तर पर बाढ़ से निपटने के प्रयास नहीं कर रहे, लेकिन बेहतर होता कि पाकिस्तान के वजी़र-ए-आजम नवाज शरीफ भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की पेषकष स्वीकारते और पाक अधिकृत कष्मीर मंे न सहीं लेकिन अन्य स्थानों पर भारत की मदद की बात मान लेते। जम्मू-कष्मीर भारत और पाकिस्तान की आजादी के साथ विवादित क्षेत्र बना हुआ है, लाईन आॅफ कंट्रोल पर तनाव तो हमेषा बना रहता है, चार दिन पहले आरएसपुरा सेक्टर, पुंछ मंे जहां दोनों देषों की तोपें गूंज रही थी, सैनिक जो अपने देष की सीमाओं की रक्षा में लगे थे, वहां आज सिर्फ पानी ही पानी है, सैनिक अपने हथियार छोड़कर नागरिकों को बचानें में लगे है। बहुत संभव है कि भारत को अभी पाकिस्तान की जरूरत भी पड़े, क्योंकि हो सकता है कि झेलम, तवी, चिनाव नदी में आई बाढ़ में कई भारतीय बहकर पाकिस्तान पहुंचे हो और पाकिस्तान को भी इसमें मानवीय पहल कर बाढ़ में बहे एवं मृत हुए लोगों के शव और जीवित बचे हुए लोगों को सुरक्षित भारत को वापस देकर अपनी नैतिकता का परिचय देना होगा। इतना ही नही भारत भी पाकिस्तान से यह अपेक्षा रखेगा कि बाढ़ में घिरी सीमाओं का प्रयोग पाकिस्तान आतंकवादियों को भेजने में न करे ओर प्राकृतिक आपदा का फायदा उठाकर सीमाओं को पार न करें, जैसा कि पाकिस्तान 1999 में ठंड के मौसम का फायदा उठाकर कारगिल में किया था।
बाढ़ से घिरे दोनों देष अभी इतने सक्षम नहीं है कि बाढ़ का पूर्वानुमान लगा सके। भारत ने उत्तराखंड त्रासदी से कोई सबक नहीं लिया। जम्मू-कष्मीर में तेज बारिष की चेतावनी तो मौसम विभाग ने दी थी लेकिन जम्मू सरकार ने ऐहतियात के तौर पर कोई कदम नहीं उठाये। भारत की एक और संस्था ब्ॅब् ;ब्मदजमतंस ॅंजमत ब्वउउपेेपवदद्ध की 6 सितंबर की रिपोर्ट में नदियों के बढ़ते जलस्तर को लेकर जो आंकड़े प्रस्तुत किये गये, उसमें जम्मू-कष्मीर की एक भी नदी का आंकड़ा नहीं था। यही हाल पाकिस्तान का है कि पाकिस्तान के मौसम विभाग ने तो तेज बारिष की जानकारी तो दी थी लेकिन प्राकृतिक आपदाओं से निपटने वाली एजेंसी एनडीएमए ने इस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया। दोनों देषों की सरकारें हमेषा से प्राकृतिक आपदा होने के बाद सक्रिय होती आई है। इसके कई उदाहरण पूर्व में हमारे सामने आ चुके है। ताजा हालातों में जो फुर्ती दिखाई गई, वह है बाढ़ के बाद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में आपातकाल घोषित कर दिया गया है तो चिनाव दी में बांध पर संभावित दरार के चलते रेड-अलर्ट जारी किया जा चुका है। वहीं भारत में प्रधानमंत्री मोदी ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित कर देषवासियों से मदद के लिए आगे आने का आग्रह किया है।
भारत पाकिस्तान दोनों देष की सरकार, समाज और सेनाओं को समझना होगा कि वे अभी इतने सक्षम नहीं हुए है कि बार-बार आ रही भीषण त्रासदियों से निपट सके। सीमा सुरक्षा पर जितना अधिक पैसा दोनों देष खर्च करते है उसमें कमी लाकर अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए अन्य तंत्रों को मजबूत करनें के प्रयासों में तेजी लाए तो बेहतर होगा। लेख लिखने तक तो जम्मू-कष्मीर में मौसम खुल चुका है। पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम नवाज शरीफ ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर पाक अधिकृत कष्मीर में बाढ़ पीडि़तों की मदद की पहल का स्वागत किया है। उम्मीद की जा सकती है कि खुले आसमान के नीचे कराहते लोगों की मदद के लिए दोनों देष की सरकारें मिलकर बचाव काम में तेजी लायेगी और घाटी में अमन-चैन बनायें रखनें के लिए संयुक्त प्रयास शुरू करेंगी।
(लेखक- स्वतंत्र पत्रकार एवं माखनलाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विष्वविद्यालय में पत्रकारिता के छात्र है) मो. 9993888677