कोलकाता, 1 जनवरी (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को देश के वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे एकांतवास से बाहर निकलें और अपने अनुभवों को अन्य संस्थानों व राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के वैज्ञानिकों के साथ साझा करें।
प्रोफेसर एस.एन. बोस की 125वीं जयंती पर आयोजित समारोह के उद्घाटन पर वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए दिए अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “कई कारणों से हम खुद को एकांत में सीमित कर चुके हैं। हम अन्य संस्थानों और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के साथी वैज्ञानिकों का सहयोग नहीं करते और उनके साथ अपने अनुभवों को साझा नहीं करते हैं।”
प्रधानमंत्री ने कहा, “अपने असली सामथ्र्य प्राप्त करने व भारत में विज्ञान को इसके उचित गौरव दिलाने के लिए हमें क्वांटम पार्टिकल की तरह होना चाहिए, जो अपने बंधन से बाहर निकल जाता है। आज उससे भी ज्यादा अहम बात यह है कि विज्ञान अब बहुतायत में बहु-विधात्मक बन गया है, जिसके लिए संगठित प्रयासों की जरूरत होती है।”
मोदी ने कहा, “मुझे बताया गया है कि हमारा विज्ञान विभाग अब एक बहुपयोगी पद्धति पर काम कर रहा है। मैं समझता हूं कि वैज्ञानिक संरचनाओं को बांटने के लिए एक पोर्टल विकसित किया जा रहा है, जो पारदर्शिता और कुशल टैगिंग एवं संसाधनों को साझा करने की सुविधा प्रदान करेगा।”
उन्होंने कहा कि अकादमिक और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के बीच मजबूत सहयोग के लिए एक तंत्र स्थापित किया जा रहा है। उद्योग से स्टार्टअप एवं अकादमी से लेकर संस्थानों तक सभी विज्ञान और प्रौद्योगिकी भागीदारों को इकट्ठा करने के लिए शहर आधारित अनुसंधान एवं विकास समूह स्थापित किए जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यह आवश्यक है कि देश के नवोन्मेष और शोध के “अंतिम परिणाम” का फैसला यह देखकर किया जाए कि इससे गरीबों का जीवन आसान हो रहा है या मध्य वर्ग से संबंधित लोगों की कठिनाइयां कम हो रही हैं।
उन्होंने आगे कहा कि उद्देश्य को निधार्रित करना तब आसान होगा, जब नवोन्मेष के अनुप्रयोगों से देश की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान हो।
मोदी ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि भारत के वैज्ञानिक और शोधकर्ता “अपनी अलग सोच” के साथ “रचनात्मक प्रौद्योगिकी समाधान” प्रदान करते रहेंगे, जोकि देश के आम लोगों के लिए बेहद लाभकारी होगा।
उन्होंने कहा कि देश को उनलोगों के जीवन व कार्यो से बहुत कुछ खीखने की जरूरत है, जिन्होंने शोधपरक शिक्षा और वैश्विक वज्ञानिक समुदाय से संपर्क का अभाव समेत अनेक बाधाओं के बावजूद सफलताएं हासिल कीं।
मोदी ने एस. एन. बोस को एक सुधारक के रूप में याद किया, जिन्होंने मातृभाषा में विज्ञान की शिक्षा की वकालत की थी। बंगाली विज्ञान पत्रिका शुरू करने में बोस के प्रयासों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “युवाओं में विज्ञान के प्रति समझ व रुचि पैदा करने के लिए यह जरूरी है कि हम विज्ञान की सूचना का संप्रेषण व्यापक रूप में करें। इस कार्य में भाषा बाधक नहीं, बल्कि सुविधाजनक होनी चाहिए।”