माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति कुठियाला का जाना तय
03 जुलाई को महापरिषद की बैठक में होगी नए कुलपति की ताजपोशी
भोपाल-माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति को लेकर 03 जुलाई 2014को महापरिषद की बैठक रखी गई है। महापरिषद की इस बैठक में मुख्यमंत्री कुलपति पद के लिए नए नाम की घोषणा कर सकते है। इसकी वजह प्रो. कुठियाला का विवादित कार्यकाल माना जा रहा है। प्रो. कुठियाला पर पत्रकारिता विश्वविद्यालय में फर्जी तरीके से नियुक्ति देने का आरोप है। इस मामले में जबलपुर हाईकोर्ट में कुलपति समेत महापरिषद के अध्यक्ष के तौर पर मुख्यमंत्री को भी पक्षकार बनाया गया था। बाद में विवाद से बचने के लिए विवि प्रशासन ने प्रोफेसर अशोक टंडन, प्रोफेसर राघवेन्द्र सिंह, ओएसडी सौरभ मालवीय के इस्तीफे ले लिए थे। यह मामला थमा भी नहीं था कि कुलपति कुठियाला नें डायरेक्टर प्रोडकशन प्रोडयूसर और प्रोडक्शन असिस्टेंट की अवैध नियुक्तियों को आजम दे डाला। वर्तमान में इन नियुक्तियों की जांच लोकायुक्त में चल रही है साथ ही यह मामला उच्च न्यायालय में भी विचाराधीन है। वहीं विश्वविद्यालय के ही प्रोफेसरों और कर्मचारियों का एक वर्ग प्रो. कुठियाला का विरोध कर रहा है।विश्वविद्यालय के सूत्रों के अनुसार इन्ही सब वजहों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कुलपति कुठियाला से खासे नाराज चल रहे है और कुठियाला का जाना लगभग तय माना जा रहा है ।
कुलपति की दौड में प्रमुख रूप से जो नाम सामने आये है उनमे प्रमुख है कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी का, सच्चिदानंद जोशी बीजेपी में अच्छी पैठ रखते है और संघ भी वैचारिक दृष्टि से इन्हें पत्रकारिता विश्वविद्यालय के लिए उपयुक्त पाता है । सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह भी इनके लिए एड़ी चोटी का जोर लगाये हुए है. इनके अलावा देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के प्रो. मानसिंह परमार, वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा और वरिष्ठ पत्रकार जगदीश उपासने भी इस दौड़ में शामिल हैं ।
अल्प मत में महा परिषद्:
वर्तमान में महापरिषद के आधे से ज्यादा सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो गया है। कुछ और सदस्यों का आगामी जुलाई माह में कार्यकाल पूरा हो जाएगा । कई स्थान अरसे से रिक्त हैं जिनको जान बूझकर नहीं भरा गया। सवाल यह उठता है कि ऐसी अल्प मत की महा परिषद् महत्वपूर्ण निर्णय कैसे ले सकती है?
विश्वविद्यालय में नहीं होता आडिट:
कुलपति बृज किशोर कुठियाला द्वारा अपने चहेतों को उपकृत करने के सैकड़ों मामले विवादास्पद हैं। कुलपति ने शासकीय आडिट ना होने के कारण विश्वविद्यालय में अपनी प्रशासनिक एंव वित्तीय तानाशाही स्थापित कर लिया है। इसका परीक्षण सामान्य प्रशासन और वित्त विभाग द्वारा करवाया जा सकता है । इसलिए स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि बिना सरकारी आडिट हुए विवि का हर कार्य गैर कानूनी कार्य की श्रेणी में ही आता है ।