अनिल सिंह(धर्मपथ)- ” तन मारा , मन बस किया,सोधा सकल सरीर ।काया को कफनी किया,वाको नाम फकीर ।। “
नरसिंहगढ़ रियासत जो मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में स्थित है के महाराज भानुप्रकाश सिंह जी के पुत्र महाराज कुमार यशोवर्धन सिंह जो मात्र 22 वर्ष की उम्र में सन्यास पथ की ओर अग्रसर हुए और उत्तरप्रदेश में गंगा किनारे स्थित अघोर पीठ के स्थापक अवधूत भगवान राम जी से दीक्षित हो सन्यासी बन गये.
कीनारामी गुरु परंपरा में पथ पर चले
कीनारामी औघड़ साधुओं की परंपरा में पूज्य संत अवधूत भगवान राम जी से दीक्षा प्राप्त कर यशोवर्धन जी ने सन्यास ग्रहण किया और औघड़ गुरुपद संभव राम का नाम इन्हें गुरुदेव ने दिया.अवधूत भगवान राम जी के देहत्याग के उपरांत गुरु की वसीयत के अनुसार अघोर पीठ,पड़ाव,वाराणसी का पीठाधीश्वर घोषित किया गया,जिस पर आसीन हो ये गुरु के जनकल्याण के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं .
बचपन से 22 वर्ष का होने तक ये राजपरिवार की परंपराओं के अनुसार पले-बढ़े,सन्यासी बनने के बाद सन्यास के कठिन मार्ग पर गुरु-निर्देशन में चलना समाज के सामने एक प्रमाण है गुरु-भक्ति का,गुरु की सेवा करते हुए ये सन्यास पथ पर चलते रहे और सन 1992 में गुरु के शरीर अवसान उपरांत पीठाधीश्वर बने.वर्तमान में गुरुपद संभव राम जी पड़ाव स्थित मुख्यालय के अलावा देश भर में स्थित आश्रमों का कार्य देख रहे हैं,अवधूत भगवान राम जी के चलाये कार्यों को जिनमें कुष्ठ रोगियों का इलाज एवं आश्रम के 19 सूत्रीय कार्यों का संचालन शामिल है सुचारु रूप में आगे बढ़ा रहे हैं .
जशपुर में स्थित सोगड़ा आश्रम में चाय उत्पादन का कार्य सभी वैज्ञानिकों को चौंकाने वाला और वनवासियों की सेवा का एक अनुकरणीय उदाहरण है.
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