धार्मिक नगरी के रूप में विश्व प्रसिद्ध वाराणसी के कबीर मठ में रखी एक पत्थर की चक्की कबीर पंथियों के लिए आर्कषण का केन्द्र बनी हुई है. अपने साहित्य से कबीर ने जन चेतना को जगा कर समाज में व्यवस्था परिवर्तन के बीज बोये थे.
अरब देश के बुखारा शहर में सुल्तान इब्राहीम ने कैदखाने में यह चक्की लगवायी थी जिसे उसके शासन में गिरफ्तार किए गये साधु संतों से चलवाया जाता था. सुल्तान इब्राहीम साधु संतों और फकीरों को अपने दरबार में बुलवाता था और उनसे अनेक प्रश्नों का समाधान पूछता था. साधु संत जब उसकी शंकाओं और जिज्ञासा का समाधान नहीं कर पाते थे तो उन्हें कैदखाने में डालकर इस भारी चक्की को चलाने का दंड दिया जाता था.
चक्की की कहानी
संत कबीरदास को पंजाब भ्रमण के दौरान उनके अनुयायियों ने बुखारा में संतों को दी जा रही यातना की जानकारी दी और उनसे इस बारे में कुछ करने को कहा. कबीरदास सच जानने के लिये बुखारा पहुंचे और वहां संतों और फकीरों को दी जा रही यातना देखकर बहुत दुखी हुए. कबीर ने उनसे कहा कि भगवत भजन कीजिए, जिसकी कृपा से यह चक्की अपने आप चलेगी और उन्होंने यह कह कर चक्की को छू दिया.
उनके छूते ही चक्की चलने लगी और माना जाता है कि तबसे वह चक्की लगातार चल रही है. बाद में कबीर पंथ के पांचवें संत लाल साहब उस चक्की को भारत लाये और कबीर मठ में स्थापित किया. जीवन के सत्य को दोहों और चौपाइयों में परिभाषित करने वाले संत कबीर दास की वह चक्की वाराणसी में दशकों से पर्यटकों को लुभा रही है.
जहां पड़े ‘बीजक’ के बीज
वाराणसी के सिद्धपीठ कबीर चौरा मठ परिसर में संत कबीर ने अपनी कई साहित्य रचनाएं की. ‘बीजक’ उनकी मूल रचना है और कबीर पंथ के संत और अनुयायी बीजक को ही अपना धर्मग्रंथ मानते हैं. कबीरदास के परिनिर्वाण के बाद ‘बीजक’ की हस्तलिखित पांडुलिपि को मंदिर के स्मृति कक्ष में उनकी जर्जर खड़ाऊं और उनके इस्तेमाल किए लकड़ी के बर्तन के साथ ही रखा गया है. वहां एक हजार से अधिक लकड़ी की मणिकाओं वाली एक माला भी है जो स्वामी रामानन्द ने संत कबीर को दी थी.
मठ में कबीर साहित्य और संत साहित्य का एक समृद्ध पुस्तकालय भी है. करीब सात सौ पांडुलिपियां भी पुस्तकालय में रखी गई है. कबीर चौरा मठ स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था. अंग्रेज गवर्नरों ने नाराज होकर तीन तीन बार मठ को तोड़कर अस्पताल में मिला देने का आदेश दिया. मठ में मौजूद कबीर के जीवन दर्शन पर आधारित मूर्तियां और तैल चित्र भी आकर्षण का केंद्र हैं. कबीर दास ने समाज में फैले पाखन्ड, कुरीतियों और अन्धविश्वासों का विरोध कर सद्भाव का संदेश दिया.