महाराष्ट्र में नासिक की थोक-मण्डी में हड़ताल ख़त्म हो गई है, लेकिन फिर भी इस सप्ताह प्याज की क़ीमतें बहुत ज़्यादा बढ़ सकती हैं। सरकार इस स्थिति से निबटने के लिए सक्रिय क़दम उठा रही है, लेकिन ये क़दम आर्थिक प्रकृति के नहीं हैं। रेडियो रूस के विशेषज्ञ बरीस वलख़ोन्स्की इस सिलसिले में चर्चा करते हुए कहते हैं :
प्याज की क़ीमतों में भारी तेज़ी आने की समस्या उन तीख़ी समस्याओं में से एक है, जिनकी वजह से मनमोहन सिंह की सरकार को जाना पड़ा है। पिछले साल की गर्मियों में प्याज का मूल्य सन् 2012 के इसी दौर के मुक़ाबले दुगुने से भी अधिक बढ़ गया था। अपना चुनाव-प्रचार करते हुए सरकार ने भी और भारत के विपक्षी दलों ने भी ’प्याज’ को तुरूप का पत्ता बना रखा था। तत्कालीन सरकार ने खाद्य सब्सिडी पाने वालों की संख्या 40 करोड़ से बढ़ाकर 80 करोड़ कर दी थी। जबकि विपक्ष ने बाज़ार क़ीमत से आधी क़ीमतों पर प्याज की बिक्री करने का लोकप्रिय क़दम उठाया था।
और, जैसाकि हमें मालूम है, प्याज की क़ीमतें बढ़ने का सारा फ़ायदा विपक्ष को ही मिला। लेकिन प्याज की क़ीमत ही वह अकेली समस्या नहीं है, जिसकी वजह से पिछली सरकार को जाना पड़ा है। सिर्फ़ प्याज की क़ीमत से जुड़ी समस्या में ही वे दूसरी आर्थिक समस्याएँ भी जुड़ी हुई हैं, जिनसे भारतीय समाज आज तक दुखी है।
भारत में विरोधाभासपूर्ण स्थिति पैदा हो गई है। राष्ट्रीय कृषि अनुसन्धान संस्थान द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार भारत में प्याज का काफ़ी भण्डार है और बाज़ार में प्याज की कमी नहीं होगी। लेकिन बाज़ार पर ऐसे दबाव दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें आर्थिक दबाव नहीं कहा जा सकता है। जैसे व्यापारी जानबूझकर बाज़ार में कम प्याज उतार रहे हैं और इस तरह देश में प्याज की कमी पैदा कर रहे हैं ताकि प्याज की क़ीमतें बढ़ाई जा सकें। पिछले साल जैसी हालत पैदा करने के लिए व्यापारी अपने भण्डारों में ही प्याज को रोक रहे हैं।
इसके अलावा मौसम विशेषज्ञ मानसून की जो भविष्यवाणियाँ कर रहे हैं उनका असर भी बाज़ार पर पड़ रहा है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल बारिश पिछले साल के मुकाबले 7 प्रतिशत कम होगी। और ऊपर से भारत की प्याज की सबसे बड़ी मण्डी नासिक में थोक व्यापारियों ने दो दिन की हड़ताल कर दी।
इस परिस्थिति में सरकार को तत्काल क़दम उठाने पड़ रहे हैं। सरकार ने व्यापारियों को हड़काया है कि यदि कृत्रिम रूप से प्याज की कमी पैदा करने के लिए उन्होंने प्याज का भण्डारण किया तो उनके विरुद्ध कड़े क़दम उठाए जाएँगे। दूसरे, सरकार ने मंगलवार को प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 300 डालर प्रति टन तय कर दिया है। विदेशी व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, न्यूनतम निर्यात मूल्य तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। इस तरह दुनिया के बाज़ार में भारतीय प्याज अब पहले से कुछ कम प्रतियोगिता सक्षम हो गया है। इसका असर यह होगा कि विदेशों को भारतीय प्याज का निर्यात कम होगा और घरेलू बाज़ार में प्याज की आगत बढ़ जाएगी।
प्याज की क़ीमतों में वृद्धि की समस्या अपने आप पैदा नहीं हो जाती है, बल्कि वह देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति को अभिव्यक्त करती है। अभी नरेन्द्र मोदी की सरकार में जनता का विश्वास बना हुआ है। लेकिन आने वाले ज़्यादा से ज़्यादा दो सालों के भीतर मोदी सरकार अगर लोगों को मजबूर किए बिना स्थिति में बदलाव नहीं ला सकी तो मोदी सरकार में जनता का विश्वास ख़त्म हो जाएगा और फिर उसकी भी वही हालत होगी, जो मनमोहन सरकार की हुई थी।