महिला के घरवालों ने उस पर दुराचार का आरोप लगाकर ऐसा दुष्कर्म किया है। इस हत्या-कांड पर इस देश के महिला और मानवाधिकार संगठनों ने अपना आक्रोश प्रकट किया है और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने भी अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इस देश के कई सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने अपराधियों को कड़ा दंड देने की मांग की है और देश की सरकार से आग्रह किया है कि वह एक ऐसा नया कानून बनाए, जिसकी सहायता से धर्म या पुरानी व दकियानूसी परंपराओं के नाम पर महिलाओं पर अत्याचार करनेवालों पर शिकंजा कसा जा सके।
पाकिस्तान में हुए इस हत्या-कांड के बाद प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने काफ़ी कठोर रुख अपनाया है। लेकिन क्या “सम्मान हत्या” जैसी बुराई को जड़ से उखाड़ने के लिए पाकिस्तानी सरकार और देश के सामाजिक कार्यकर्ताओं के पास पर्याप्त साहस होगा? बात दरअसल यह है कि इस सामाजिक बुराई की जड़ें सदियों से मज़बूत की जाती रही हैं। इस बुराई की जड़ें पूरे समाज में गहरी हैं। अब सवाल पैदा होता है कि क्या समाज उस बोझ से छुटकारा पा सकता है जो पूरे देश को ही मध्य-युगीन बर्बरता की ओर वापस खींचता ले जा रहा है? इस संबंध में रेडियो रूस के टीकाकार सेर्गेई तोमिन ने कहा-
इस प्रकार की हिंसा के संबंध में अलग-अलग आँकड़े पेश किए जा सकते हैं, लेकिन अगर अंतर्राष्ट्रीय ग़ैर-सरकारी संगठनों की रिपोर्टों को देखा जाए तो यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि पश्चिमी एशिया और दक्षिणी एशिया के देशों में प्रतिवर्ष 20 हज़ार से अधिक तथाकथित “सम्मान हत्याएँ” की जाती हैं। यह आँकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जा रहा है। यह एक सच्चाई है। बात दरअसल यह है कि महिलाओं के विरुद्ध इस तरह के अपराध करनेवाले लोग और इन अपराधों का शिकार हुई महिलाओं के रिश्तेदार भी अपनी इज़्ज़त बचाने की ख़ातिर इन अपराधों को छिपाए रखना बेहतर समझते हैं। बस, कभी-कभी ही ऐसे अपराधों की ख़बर आम लोगों तक पहुँचाई जाती है।
पूर्वी देशों में महिलाओं के विरुद्ध अनुष्ठान बलात्कारों जैसी हिंसा भी की जाती है। किसी गाँव की पंचायत ऐसा फैसला कर सकती है कि किसी व्यक्ति की बहन, बेटी या उसकी पत्नी के साथ सरेआम बलात्कार किया जाए। इस सिलसिले में सेर्गेई तोमिन ने कहा-
पहली नज़र में तो ऐसा लग सकता है कि ऐसे अविकसित समाज में, जहाँ शिक्षा का स्तर बहुत नीचा है, महिलाओं के विरुद्ध इस तरह के अपराध किए जाते हैं। सोमालिया या अफ़गानिस्तान जैसे पिछड़े देशों में तो “सम्मान हत्या” लंबे समय से एक सामान्य-सी बात बन गई है। लेकिन महिला और मानवाधिकार संगठनों द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों में कहा गया है कि तुर्की, लेबनान और जॉर्डन जैसे अपेक्षाकृत आधुनिक और विकसित देशों में भी ऐसे अपराध किए जाते हैं।
पाकिस्तान में फ़रज़ाना परवीन की नृशंस हत्या के बाद अब भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के दूरदराज के एक गाँव में दो किशोरियों के साथ सामूहिक बलात्कार करने के बाद उन्हें एक वृक्ष पर लटकाकर फांसी देने जैसी बर्बरता की ख़बर आई है। यह शर्मनाक घटना दर्शाती है कि कई भारतवासी मानो अभी भी 21वीं सदी में नहीं बल्कि मध्ययुगीन बर्बरता के वातावरण में ही रहते हैं। उनके लिए देश के संविधान का कोई महत्त्व नहीं है। उनके लिए तो पुरातन, दकियानूसी परंपराएँ ही कोई मायने रखती हैं। ऐसी घटनाएँ आधुनिक दक्षिणी एशिया के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। दक्षिण एशियाई समाज ने अपना एक पैर तो 21वीं सदी के आधुनिक काल में रखा हुआ है, लेकिन उसका दूसरा पैर अभी भी मध्ययुगीन बर्बरता के माहौल में फंसा हुआ है। यह समस्या दक्षिण एशियाई देशों के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।