पेंसठ साला भारतिय लोकतंत्र के निर्वाचन कि बात करेतो 13 वी लोकसभा का परिदृष्य बिलकूल अलग हे। बरसो से देश के विकास के मूद्दो पर जन प्रतिनिधियो व देश के नूमाईदो का निर्वाचन आम जनता अपने मताधिकार के द्वारा कर देश कि बागडोर सोपती आ रही हे लेकिन प्रथम लोकसभा से लेकर 2014 के वर्तमान निर्वाचन तक देश का परिदृष्य ईतना बदल चूका हे जन प्रतिनिधि अपने धनबल भूजबल का सहारा लेकर येन केन प्रकरेण सर्वोच्च संस्था लोकसभा मे प्रवेश पाने लगे हे ओर आम आदमी को हे कि इससे कोई सरोकार नही वह तो अपने आलम मे मस्त हे।
बर्तमान 2014 के आम चूनाव से आम जनता को काफी उम्मीददे थी कि उसकी मूल समस्या शिक्षा, बेरोजगारी,स्वच्छ पेयजल, बिजली,गरीबी,भ्रष्टाचार,
भूखमरी,सब के लिए सूलभ स्वाथ्य जेसे मूद्दो के साथ साथ देश की सीमा व सीमा के अन्दर हो रही आतंकी कारवाही पर राजनितिक दल अपना नजरीया देकर चुनाव लडेगे लेकिन विडम्बना की बात हे कि किसी भी राजनेतिक दल ने इन प्रमूख मुद्दो की ओर झांका भी नही वरन सभी राजनितिक दलो ने आपसी छिछले दार करने से ज्यादा कूछ नही किया। इससे आम जनता मे घोर निराशा हे इस आम चूनाव का परिणाम चाहे जो हो पर मूद्दो विहिन राजनिति ओर देश पर बरसो सत्ता का सूख भोगने वाली कांग्रेस पार्टी ने मोन रह कर देश कि विभिन्न संस्थाओ का अपने राजनितिक भविष्य को लेकर जो गलत इस्तमाल किया उसका जवाब भी आम जन मे आक्रोश बनकर उभरेगा।विगत वर्षो मे कांग्रेस ने सत्ता मे रहकर भारी भ्रष्टाचार व घोटाले करके जो दोहन किया हे उसका खामियाजा आम जनता को ही भूगतना हे। चाणक्य निति मे कहा गया हे कि सत्ता जब भ्रष्ट व निरंकूश हो जाए जो उसका परिवर्तन जरूरी हे।ऐसी सरकार को उतार फेक्ना चाहीए। सडी गली व्यवस्था मे परिवर्तन जरूरी हे
इस आम चूनाव मे भारतिय लेाकतंत्र की गरीमा को इतना कलूशित किया की लोकतंत्र की आत्मा ही छिन्न भिन्न होगई। बिना किसी मुद्दो के लडा गया यह चूनाव आम जन के साथ खिलवाड के अलावा कूछ नही हे।
अनिल श्रीवास्तव(झाबुआ से)लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं एवं विश्लेषक हैं