भोपाल 7 अप्रैल 2014। म.प्र स्टेट फार्मेसी कौंसिल के चुनाव गत सात वर्षों से अधर में लटके हुए हैं। पंजीकृत फार्मेसिस्टों से निर्वाचित होने वाली इस संस्था में अनुभव के आधार पर फार्मेसिस्ट बनकर पंजीयन कराने वालों का पिछले दो दशक से कब्जा हैं।
यहाँ निर्वाचन पद्धति से चुनाव नहीं कराकर मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद अनुभव के आधार पर पंजीकृत फार्मेसिस्टों में से 5 सदस्यों का मनोनयन 10 जुलाई 2012 को कर दिया हैजिसकाvनोटिफिकेशन राजपत्र में जारी नहीं होने से वैद्यानिकता पर प्रश्न चिन्ह है। इधर मध्यप्रदेश् केमिस्ट ड्रग्स्टि एसोसियेशन ने उच्च न्यायालय जबलपुर ने फार्मेसी कौंसिल म.प्र.स्वास्थय विभाग एवं नियंत्रक औशाधी प्रशासन को अनावेदक बनाया जाकर 8 नवम्बर 2012 को वोटर लिस्ट के अंतिम प्रकाशन तक निर्वाचित प्रक्रिया पर रोक लगाई है। प्रदेश के स्वास्थय विभाग ने उच्च न्यायालय जबलपुर में स्थगन आदेश हटाने की कार्यवाही नहीं की है। फार्मेसी कौंसिल में अनुभव के आधार पर पंजीकृत फार्मेसिस्टों की संख्या है लगभग बीस हजार है उसी तरह डिग्री, डिप्लोमा धारी ,योग्यता धारी फार्मेसिस्टों के पंजीकृत संख्या भी लगभग बीस हजार है। लगभग 40 हजार सदस्यों वाली इस संस्था में 5 हजार से अधिक अनुभव के आधार पर पंजीकृत फार्मेसिस्टों के रिर्काडस को आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरों के पास लम्बित हैं। फार्मेसी कौंसिल के निर्वाचित 6 सदस्यों के
निर्वाचन की प्रक्रिया 8 सितम्बर 2012 को रजिस्ट्रर फार्मेसी कौंसिल ने समाचार पत्रों में सूचना प्रकाशित कर जारी किया गया था।
म.प्र स्टेट फार्मेसी कौंसिल ने सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में बताया गया है कि निर्वाचित 6 सदस्यों के 5 वर्ष के कार्यकाल की अवधि 25 अक्टूबर 2007 को समाप्त हो गई है एवं मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल दिसम्बर 2011 में समाप्त हो गया है।
निर्वाचन नही होने के वाबजूद स्वास्थय विभाग ने जुलाई 2012 में बसंत गुप्ता, सेन्ट्रल मेडिको, विजय मार्केट, बरखेड़ा, भेल, भोपाल। रजि. नं. 2789, घनश्याम काकानी, बैंकटेश फार्मा, वैंकटेश नगर, इन्दौर, रजि. नं. 8214, ओमप्रकाश जैन, नाखोड़ा मेडिकल स्टोर, घटिया, उज्जैन, प्रदीप कुमार चैरसिया, एसोसिएट प्रोफेसर ऑफ फॉर्मेसी, व्ही.एन.एस. कॉलेज, भोपाल, एवं राजीव सिंघल, प्रभुकृपा 120 एस.आर. कम्पाउण्ड, लसुदिया, ए.बी.रोड़, इन्दौर को मनोनित किया है जो कि म.प्र.राजपत्र में प्रकाशित नही होने से इसकी वैद्यानिकता भी प्रश्न चिन्ह है। दूसरी और फार्मेसी कौंसिल में मृत हुए फार्मेसिस्टों का भी रिकार्ड नहीं है जब कि इसके लिए कौंसिल को रजिस्टर तैयार कर ऐसे लोगों की सूची तैयार करना चाहिए। वर्तमान में अनुभव प्राप्त कर पंजीकृत हुए फार्मेसिस्टों से कौंसिल का संचालन किया जा रहा है। इसका भी पूर्णतः राजनीतिकरण होकर एक भाजपा के नेता को पिछले सात वर्ष से अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई हैं। जिसका कार्यकाल जुलाई 2011 में 5 वर्ष पूर्ण हो चुका है और वर्तमान में पद पर बने रहना वैधानिक नहीं है।